रांची (Ranchi)। झारखंड (Jharkhand) में इंडिया ब्लॉक (India Block) के अहम घटक JMM ने केंद्र द्वारा 25 जून को संविधान हत्या दिवस (Constitution Assassination Day) मनाने की अधिसूचना का विरोध किया है. पार्टी ने राष्ट्रपति (President) से इस अधिसूचना को रद्द यानी निरस्त करने की भी मांग की है. पार्टी के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य (Party General Secretary Supriyo Bhattacharya) का आरोप है कि बीजेपी (BJP) बौखला गई है. दरअसल वो 400 का आंकड़ा पार करके संविधान बदलना चाहती थी लेकिन 303 से भी नीचे 240 पर ही रह गई. लिहाजा अब बौखलाहट में फैसले ले रही है।
सुप्रियो का कहना है कि चीन से युद्ध और पाकिस्तान से युद्ध के वक्त भी इमरजेंसी यानी आपातकाल लगा था, 1962 और 1971 में. 25 जून 1975 को संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल लगा था. 2 साल तक नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को सस्पेंड किया गया था. बेशक ये काला अध्याय था लेकिन फैसला परिस्थितियों के हिसाब से और संविधान के तहत लिया गया था. भाजपा ने सविधान के अनुच्छेद 365 का प्रयोग कर कई बार राष्ट्रपति शासन लगाया वो भी आपातकाल है।
JMM ने नोटबंदी को बताया ‘आर्थिक आपातकाल’
पार्टी का आरोप है कि देश में लोकतंत्र की हत्या पर पहली मुहर तब लगी थी जब 25 मई 2014 को बतौर पीएम नरेंद्र मोदी ने शपथ ली थी. आर्थिक आपातकाल तब लगा था जब 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी करके लोगो को बैंक और एटीएम के सामने सड़क पर खड़ा कर दिया गया था. कोरोना काल में संपूर्ण लॉकडाउन नागरिक आपातकाल था. तब लाखों लोग सड़क पर मरने को मजबूर थे।
बीजेपी सरकार पर साधा निशाना
जेएमएम ने कहा, ‘तीन काले कृषि कानून को लाकर किसान आपातकाल भी लगाया गया. सैकड़ों किसान मरे थे. मणिपुर जब जल रहा था तब आदिवासियों पर आपातकाल लगाया गया. फिर नीट घोटाले ने छात्रों पर आपातकाल लगा दिया. हाथरस और मणिपुर की घटना महिला आपातकाल थी. PSU को औद्योगिक घरानों को बेचने की मुहिम विकास के खिलाफ आपातकाल है. सभी संवैधानिक संस्थाओं पर हमला संविधान के खिलाफ आपातकाल है।
बीजेपी ने किया पलटवार
वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की प्रेस वार्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 25 जून, 1975 को संविधान की हत्या का प्रयास किया था. देश के सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकार छीन लिए गए थे. आज झारखंड मुक्ति मोर्चा को इमरजेंसी की तिथि को संविधान हत्या दिवस मनाने पर इतनी मिर्ची लग रही है कि वह बौखला गई है।
प्रतुल ने कहा कि यह दरअसल सिर्फ और सिर्फ सत्ता में बने रहने का लोभ है जो झारखंड मुक्ति मोर्चा को उसके पुराने इतिहास को भी भूलने को मजबूर कर रहा है. प्रतुल ने आश्चर्य व्यक्त किया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा आज यह भूल गया है कि शिबू सोरेन इसी इमरजेंसी के दौर में सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ जंगलों में छिपकर आंदोलन किया करते थे।
‘उस दौर को भूल गया जेएमएम…’
प्रतुल ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता की फर्जी दुहाई देने वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा इमरजेंसी के उसे काले दौरा को भूल गया जब अखबारों के पहले पन्ने को केंद्र सरकार का पीआरडी डिपार्मेंट अप्रूव करता था. तब वह छपते थे. बिना बेल के प्रोविजन वाले मीसा कानून के अंतर्गत लाखों राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी और पत्रकारों को वर्षों तक जेल में बंद करके रखा गया. आरएसएस जैसे सामाजिक संगठनों को टारगेट किया गया और उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. आरएसएस प्रमुख की गिरफ्तारी हो गई. जुडिशरी को भी बड़े पैमाने पर टारगेट किया गया. तीन सबसे सीनियर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वरीयता को नजरअंदाज करते हुए वरीयता क्रम में चौथे वरीय न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया।
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