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    Jharkhand: BJP को भारी पड़ी आदिवासी मतदाताओं की नाराजगी, 28 में गवां बैठी 26 सीटें

  • June 05, 2024

    रांची (Ranchi.)। झारखंड (Jharkhand) में आदिवासी मतदाताओं (Tribal voters) की नाराजगी भाजपा (BJP) पर भारी पड़ी। साल 2019 के विधानसभा चुनाव (2019 assembly elections) के परिणामों की राह पर ही लोकसभा चुनाव का परिणाम (Lok Sabha Election Result ) भी रहा। विधानसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित सीटों (Tribal reserved seats) पर भाजपा 28 में 26 सीटें गवां बैठी थी।

    आदिवासी वोटरों को जोड़ने के लिए भाजपा ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम का विलय भाजपा में कराया। पहले उन्हें भाजपा विधायक दल का नेता बना बड़ा प्रोफाइल दिया। बाद में वह प्रदेश अध्यक्ष भी बने। लेकिन, बीते चार सालों से संताल वोटरों को जोड़ने की कवायद में लगे बाबूलाल मरांडी को नाकामी मिली।


    संताल की आरक्षित सीटों पर पार्टी पिछड़ गई। वहीं, कांग्रेस से गीता कोड़ा और झामुमो से सीता सोरेन को भाजपा में लाकर चुनाव लड़ाने का दांव भी उल्टा पड़ गया। साल 2019 में आदिवासी आरक्षित खूंटी और लोहरदगा में जीत दर्ज करने वाली भाजपा इस बार पांचों आरक्षित सीटों पर बड़े अंतराल से हारी।

    असफल रही आदिवासी मतदाताओं को साधने की रणनीति
    – झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु को भाजपा ने राष्ट्रपति बनाया। आदिवासी बेटी को सम्मान देने का संदेश झारखंड में भरपूर तरीके से देने की कोशिश की गई। खूंटी में पहली बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु भगवान बिरसा मुंडा के गांव आयीं। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भगवान बिरसा की जयंती को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया। उन्होंने बिरसा जयंती भगवान बिरसा के गांव उलिहातू का दौरा किया। साथ ही खूंटी से आदिम जनजातीय समूहों के लिए पीएम जनमन योजना भी लांच की। बावजूद इसके खूंटी में भाजपा के दिग्गज नेता व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा चुनाव हार गए।

    – संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ व आदिवासी आबादी में डेमोग्रामी बदलने की चर्चा प्रत्येक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। संताल आदिवासियों की जमीन हड़पने को लेकर लैंड जिहाद के टर्म का इस्तेमाल भी भाजपा ने किया। लेकिन, यह मुद्दा भी संताल में गौण साबित हुआ।

    – 2019 विधानसभा में हार के बाद आदिवासी चेहरे के तौर पर बाबूलाल मरांडी को पार्टी में शामिल कराकर मुख्य चेहरा बनाया गया। इसी तरह आदिवासी समुदाय को साथ जोड़ने के लिए गीता कोड़ा, सीता सोरेन को पार्टी में लाया गया, लेकिन बावजूद इसके आदिवासी मतदाताओं का साथ भाजपा को नहीं मिला।

    भाजपा के लिए क्या रहा बिग फैक्टर
    – पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल भेजने के बाद उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर उत्पन हुई। आदिवासियों खासकर संताल परगना में मतदाताओं के बीच संदेश गया कि ‘इंडिया’ गठबंधन जीतेगा तो हेमंत सोरेन जेल से बाहर आएंगे। संताल की सारी आरक्षित सीटें खिसक गईं। दुमका में शिबू सोरेन की पुत्र वधू सीता सोरेन को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था, इससे कैडरों में नाराजगी का असर भी रहा। कल्पना सोरेन दुमका और राजमहल दोनों सीटों पर प्रभावी रहीं।

    – आदिवासी सीटों पर कोई तीसरा कोण नहीं बन पाया। खूंटी में कुर्मी-आदिवासी वोटरों की नाराजगी का सामना अर्जुन मुंडा को करना पड़ा। महज सात प्रत्याशी इस बार चुनावी समर में थे। क्षेत्र में कम रहना भारी पड़ा। झापा की अर्पणा हंस व निर्दलीय बसंत लोंगा प्रभाव नहीं छोड़ पाएं। वोटों का बंटवारा नहीं हुआ। सीधे मुकाबले में बड़े अंतर से हारे।

    – लोहरदगा में चमरा लिंडा फैक्टर नहीं बने, ऐसे में सुखदेव भगत ने बाजी मारी। आदिवासी, मुस्लिम व ईसाई वोटरों की एकजुटता लोहरदगा सीट पर रही, ऐसे में भाजपा 2009 के बाद से हैट्रिक लगाने के बाद चौथी बार बड़े अंतर से इस सीट को गंवा बैठी।

    – चाईबासा में भाजपा ने जनवरी 2023 में ही मिशन 2024 का आगाज किया था। इस सीट पर भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी थी। लेकिन, कांग्रेस से गीता कोड़ा को लाकर भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया। भाजपा इस सीट पर बड़े मार्जिन से पिछड़ी। चाईबासा लोकसभा की सभी विधानसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है। इंडिया गठबंधन के विधायकों ने यहां पूरी ताकत झोंक दी। इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। हो और संताल मतदाताओं ने भी यहां ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में एकजुटता दिखायी।

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