झाबुआ। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के आदिवासी जिले झाबुआ (Jhabua tribal district) के ग्रामीण अंचलों (Rural areas) में दिवाली के दूसरे दिन गायों की पूजा करने के साथ गाय-गोहरी का पर्व (Cow-Gohri festival ) मनाया जाता है। इस पर्व में लोग सुख-समद्धि की कामना को लेकर मन्नत मांगते हैं। इसके बाद मन्नतधारी जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से गायों के झुंड को गुजारा जाता है। इस साल भी जिले में शुक्रवार को यह पर्व धूमधाम से मनाया गया। गया।
गोवर्धन नाथ मंदिर में शुक्रवार को दोपहर 3.00 बजे दोपहर से श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हुआ और शाम चार बजे गोवर्धन पूजा आरम्भ हुई। इसके बाद मन्नतधारी जमीन पर उलटे लेटे और गायों का झुंड उनके ऊपर से गुजरा। इसके बाद भी मनन्तधारी हंसते-हंसते उठ खड़े हुए। मनन्तधारी जोगड़िया भाई ने बताया कि घर में मंगल होने की कामना से उन्होंने यह रस्म निभाई और उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई।
उल्लेखनीय है कि झाबुआ जिले में करीब 150 वर्षों से गाय-गोहरी पर्व मनाने की परम्परा चली आ रही है। इतिहासकार डॉ. केके त्रिवेदी के अनुसार, झाबुआ के राजा गोपालसिंह गोर्वधन नाथ जी के परम भक्त थे और 1868 में राजस्थान के तीर्थ नाथुद्धारा से श्रीनाथजी की मूर्ति लाकर उन्होंने झाबुआ में गोवर्धन नाथ मंदिर की स्थापना की थी। उसी समय से गोर्वधन पूजा करते हुए गोबर से प्रतीक के रूप में गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है। आस्थापूर्वक गायों को सजाते हुए पूजा में गोपालक लाते और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके नीचे लेटते। मंगल कामना या अन्य संकल्प पूर्ण होने पर मन्नतधारी हर वर्ष स्वजन की मदद से गायों को अपने ऊपर से निकलवाने लगे और स्थायी रूप से इस परंपरा ने आकार ले लिया। (एजेंसी, हि.स.)
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