– देवेंद्रराज सुथार
आज संघ की चर्चा सर्वत्र है। संघ को जानना है तो संघ मंत्र के उद्गाता डॉ. हेडगेवार को जानना होगा। आजादी के संघर्ष में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने वालों में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। हिंदू जागरण और हिंदू समाज के संगठनकर्ता के रूप में डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। देश सेवा और समाज सेवा के उद्देश्यों पर आधारित आज इस संघ के लाखों-करोड़ों स्वयंसेवक हैं। जो देश, काल और परिस्थिति के अनुसार अपनी सेवाएं राष्ट्र को दे रहे हैं।
डॉ. हेडगेवार का जन्म सन 1890 में एक सनातनी ब्राह्मण परिवार में नागपुर में हुआ था। बचपन में ही उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। जब उनकी अवस्था 8 वर्ष की थी। तब उनके स्कूल में रानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक के अवसर पर मिठाइयां बांटी जा रही थी। उन्होंने उस मिठाई को कूड़े के ढेर में फेंक दिया। बारह वर्ष की अवस्था में नागपुर के सीताबर्डी किले से अंग्रेजों का झंडा उतारकर भगवा झंडा लहराने के लिए किले तक सुरंग खोदने का प्रयास किया। कक्षा दसवीं में पढ़ते समय स्कूल के निरीक्षक के सामने वन्देमातरम का घोष करते हुए उनका स्वागत किया। परिणामस्वरूप उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। इसके पश्चात यवतमाल की राष्ट्रीय पाठशाला में प्रवेश लेने पर उन्हें ब्रिटिश सरकार ने बंद करवा दिया। पूना के नेशनल स्कूल में प्रवेश लेकर उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। कलकत्ता जाकर उन्होंने क्रांतिकारियों से भेंट कर मध्य भारत में क्रांतिकारी कार्यों का सूत्रपात किया।
गांधीजी के नेतृत्व में उन्होंने दो बार सत्याग्रह करके जेल यात्रा की। घोर आर्थिक संकट के बावजूद अविवाहित रहकर देशकार्य के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। हिंदुओं को संगठित करने हेतु विजयादशमी के दिन सन 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। सन 1940 तक देश का अखंड प्रवास कर संघ के कार्यों को गति दी। 1921 में अंग्रेजों ने तुर्की को परास्त कर वहां के सुल्तान को गद्दी से उतार दिया था। वही सुल्तान मुसलमानों के खलीफा/ मुखिया भी कहलाते थे। ये बात भारत व अन्य मुस्लिम देशों के मुसलमानों को नागवार गुजरी जिससे जगह-जगह आंदोलन हुए। हिंदुस्तान में खासकर केरल के मालाबार जिले में आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया। तत्पश्चात नागपुर व अन्य कई स्थानों पर हिंदू-मुस्लिम दंगे प्रारंभ हो गये। नागपुर के कुछ हिंदू नेताओं ने समझ लिया कि हिंदू एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है। ऐसी स्थिति में कई हिंदू नेता केरल की स्थिति जानने एवं वहां के लुटे-पिटे हिंदुओं की सहायता के लिए मालाबार-केरल गये। इनमें नागपुर के प्रमुख हिंदू महासभाई नेता डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, डॉ. हेडगेवार, आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी आदि थे। उसके थोड़े समय बाद नागपुर तथा अन्य कई शहरों में भी हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए। ऐसी घटनाओं से विचलित होकर नागपुर में डॉ. मुंजे ने कुछ प्रसिद्ध हिंदू नेताओं की बैठक बुलाई। जिनमें डॉ. हेडगेवार एवं डॉ. परांजपे भी थे। इस बैठक में उन्होंने एक हिंदू-मिलीशिया बनाने का निर्णय लिया। उद्देश्य था- ‘हिंदुओं की रक्षा करना एवं हिंदुस्तान को एक सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाना।’ इस मिलीशिया को खड़े करने की जिम्मेवारी धर्मवीर डॉ. मुंजे ने डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार को दी।
डॉ. साहब ऐसे व्यक्ति थे। जिन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिये नये-नये तौर-तरीके विकसित किये। हालांकि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रांति और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी। डॉ. हेडगेवार ने यह स्पष्ट किया कि ‘हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व है।’ हिंदुओं ने ही अपने पुरुषार्थ के बल पर इस देश को ‘सोने की चिड़िया’ बनाया। जाति-पांति एवं छुआछूत के भेद का शिकार होकर असंगठित दुर्बल होने के कारण हिंदू समाज को मुट्ठी भर लुटेरों के हाथों हार खानी पड़ी। हमारी मां-बहिनों को घोर अपमान सहना पड़ा और हमें गुलामी का अभिशाप। उन्होंने निर्भीक स्वर में हिंदू राष्ट्र की घोषणा की। 21 जून 1940 को शरीर छोड़ने से पूर्व श्री गुरुजी को सरसंघ चालक का दायित्व देकर देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति की। राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ हिंदू समाज को संगठित, अनुशासित एवं शक्तिशाली बनाकर खड़े करना अत्यंत आवश्यक है। हिंदू समाज के स्वार्थी जीवन, छुआछूत, ऊंच-नीच की भावना, परस्पर सहयोग की भावना की कमी, स्थानीय नेताओं के संकुचित दृष्टिकोण को वे एक भयंकर बीमारी मानते थे।
इन बुराइयों से दूर होकर देश के प्रत्येक व्यक्ति को चरित्र निर्माण और देश सेवा के लिए संगठित करना ही संघ-शाखा का उद्देश्य है। हिंदुत्व के साथ-साथ देशाभिमान का स्वप्न लेकर आज देश-भर में इसकी शाखाएं लगती हैं। जिसमें सेवाव्रती लाखों स्वयंसेवक संगठन के कार्य में जुटे हैं। संगठन का उदय तो होता है लेकिन अस्त होने में भी समय नहीं लगता! इसीलिए डॉ. हेडगेवार के संगठन के तंत्र और मंत्र को जानना साधारण से लेकर ख़ास तक सबके लिए ज़रूरी है जिसके कारण संघ आज यहां तक पहुंच पाया। उनमें व्यक्तिगत पद और प्रतिष्ठा की कोई लालसा नहीं थी। जो आजतक संघ में दिखती है। व्यक्ति को नहीं ‘भगवा ध्वज’ को गुरु माना, ‘मैं नहीं तू ही’ का विचार दिया, शाखा को जुड़ने का साधन बनाया। शाखा मतलब एक जगह पर सब कार्यकर्ता एकत्रित होंगे और खेल खेलकर देशभक्ति के गीत गाकर चर्चा करके अपना शारीरिक और बौद्धिक विकास करेंगे। इसमें सबसे विशेष यह था कि शाखा की गतिवधियां इस प्रकार से नियोजित की गईं जिसमें हर आयु के लोग सम्मलित हो सकें। जाति-भेदभाव से संघ को दूर रखने के लिए नाम के पीछे जाति की जगह जी शब्द का प्रयोग करना सिखाया। व्यक्ति तक सीमित ना रहकर परिवार को विचार से जोड़ने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया।
अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों को कभी महत्त्व नहीं दिया। समाज और संगठन के लिए समर्पित हो गए। उनका व्यक्तिगत समर्पण देखकर संघ से जुड़ने वाले युवाओं को प्रेरणा मिली और बड़ी संख्या में युवाओं ने अपना पूरा जीवन राष्ट्र और संघ के नाम करने का सोचा। वह कहते थे- ‘पढ़ो, अपने व्यक्तित्व को जितना निखार सकते हो निखारो और फिर अपनी इच्छा से अपना जीवन, राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा दो।’
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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