– योगेश कुमार गोयल
30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र में नासिक के निकट त्रयंबकेश्वर में जन्मे दादा साहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक माना जाता है, जो केवल फिल्म निर्देशक ही नहीं बल्कि जाने-माने प्रोड्यूसर और स्क्रीन राइटर भी थे। नासिक के एक संस्कृत विद्वान के घर जन्मे धुन्धी राज गोविन्द फाल्के, जिन्हें बाद में दादा साहेब फाल्के के नाम से जाना गया, उनकी पहली फिल्म थी ‘राजा हरिश्चन्द्र’, जिसे भारत की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म का दर्जा हासिल है। उस दौर में फाल्के साहब की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ का बजट 15 हजार रुपये था। 3 मई 1913 को रिलीज हुई यह फिल्म भारतीय दर्शकों में बहुत लोकप्रिय हुई और उसकी सफलता के बाद से ही दादा साहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक कहा जाने लगा।
‘राजा हरिश्चन्द्र’ की जबरदस्त सफलता के बाद फाल्के साहेब का हौसला इतना बढ़ा कि उन्होंने अपने 19 वर्ष लंबे कैरियर में एक के बाद एक 100 से भी ज्यादा फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें 95 फीचर फिल्में और 27 लघु फिल्में शामिल थीं। उनकी बनाई धार्मिक फिल्में तो दर्शकों द्वारा बेहद पसंद की गई।
दादा साहेब की जिंदगी में वह दिन उनके कैरियर का टर्निंग प्वाइंट माना जाता है, जब उन्होंने ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ नामक एक मूक फिल्म देखी थी, जिसे देखने के बाद उनके मन में कई विचार आए। उसे देखने के पश्चात् उन्होंने दो महीने तक शहर में प्रदर्शित सारी फिल्में देखी और तय किया कि वे फिल्में ही बनाएंगे। आखिरकार उन्होंने पत्नी से कुछ पैसे उधार लेकर पहली मूक फिल्म बनाई।
दादा साहेब फाल्के अक्सर कहा करते थे कि फिल्में मनोरंजन का सबसे उत्तम माध्यम हैं, साथ ही ज्ञानवर्द्धन के लिए भी बेहतरीन माध्यम है। उनका मानना था कि मनोरंजन और ज्ञानवर्द्धन पर ही कोई भी फिल्म टिकी होती है। उनकी इसी सोच ने उन्हें एक ऊंचे दर्जे के फिल्मकार के रूप में स्थापित किया। उनकी फिल्में निर्माण व तकनीकी दृष्टि से बेहतरीन थी, जिसकी वजह यही थी कि फिल्मों की पटकथा, लेखन, चित्रांकन, कला निर्देशन, सम्पादन, प्रोसेसिंग, डवलपिंग, प्रिंटिंग इत्यादि सभी काम वे स्वयं देखते थे और कलाकारों की वेशभूषा का चयन भी अपने हिसाब से ही किया करते थे। फिल्म निर्माण के बाद फिल्मों के वितरण और प्रदर्शन की व्यवस्था भी वे स्वयं संभालते थे। उन्होंने अपनी कुछ फिल्मों में महिलाओं को भी कार्य करने का अवसर दिया। उनकी एक फिल्म ‘भस्मासुर मोहिनी’ में दुर्गा और कमला नामक दो अभिनेत्रियों ने कार्य किया था।
दादा साहेब की आखिरी मूक फिल्म ‘सेतुबंधन’ थी और उन्होंने कोल्हापुर नरेश के आग्रह पर 1937 में अपनी पहली और अंतिम बोलती फिल्म ‘गंगावतरण’ बनाई थी। दादा साहेब द्वारा बनाई गई फिल्मों में राजा हरिश्चंद्र, मोहिनी भस्मासुर, सत्यवान सावित्री, लंका दहन, श्रीकृष्ण जन्म, कालिया मर्दन, बुद्धदेव, बालाजी निम्बारकर, भक्त प्रहलाद, भक्त सुदामा, रूक्मिणी हरण, रुक्मांगदा मोहिनी, द्रौपदी वस्त्रहरण, हनुमान जन्म, नल दमयंती, भक्त दामाजी, परशुराम, श्रीकृष्ण शिष्टई, काचा देवयानी, चन्द्रहास, मालती माधव, मालविकाग्निमित्र, वसंत सेना, बोलती तपेली, संत मीराबाई, कबीर कमल, सेतु बंधन, गंगावतरण इत्यादि प्रमुख थी।
16 फरवरी 1944 को इस महान शख्सियत ने दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उन्होंने भारतीय सिनेमा को शानदार फिल्मों की ऐसी सौगात सौंपी, जिसकी महत्ता आने वाली सदियों में भी कम नहीं होगी। 1971 में भारतीय डाक विभाग ने दादा फाल्के के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था।
फिल्मों में उनके अविस्मरणीय योगदान के मद्देनजर उनकी स्मृति को जीवंत बनाए रखने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1969 में ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ की स्थापना की गई और तभी से प्रतिवर्ष भारतीय सिनेमा के विकास में आजीवन उत्कृष्ट योगदान देने वाली किसी एक शख्सियत को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता रहा है। यह पुरस्कार फिल्म इंडस्ट्री के तमाम फिल्मकारों, निर्देशकों और कलाकारों की आजीवन उपलब्धियों का समग्र मूल्यांकन करने के पश्चात् किसी एक फिल्मकार, निर्देशक अथवा कलाकार को प्रदान किया जाता है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्थापित ‘फिल्म महोत्सव निदेशालय’ द्वारा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में प्रतिवर्ष दादा साहेब फाल्के के नाम पर यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा और उसके विकास में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्तियों को वर्ष 1969 से नियमित प्रदान किया जा रहा है, जिसे भारतीय सिने जगत के सर्वोच्च पुरस्कार का दर्जा प्राप्त है। वर्तमान में इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाली शख्सियत को 10 लाख रुपये नकद, स्वर्ण कमल पदक एवं शाल प्रदान की जाती है। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, मनोज कुमार, पृथ्वीराज कपूर, बी आर चोपड़ा, श्याम बेनेगल, देवानंद, शशि कपूर, लता मंगेशकर, मन्ना डे, गुलजार, रजनीकांत, प्राण सहित कई नामी कलाकारों को मिल चुका है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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