नई दिल्ली । राष्ट्रीय लोक दल (Rashtriya Lok Dal)ने भाजपा (BJP)के दबाव के चलते हरियाणा का मैदान छोड़(Leaving the field of Haryana) दिया है। रालोद जिसकी राजनीति मुख्यत: वेस्ट यूपी के किसानों और जाटों पर केंद्रित है वो हरियाणा (जहां जाट और खेती-किसानी से ताल्लुक रखने वालों की अच्छी-खासी तादाद है) चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को लेकर काफी उत्सुक थी। लेकिन फिलहाल पार्टी इस राज्य में अपने लिए सीटों की मांग से पीछे हट गई है। इस बीच, रालोद की नजर आगे आने वाले विधानसभा चुनावों पर है। पार्टी ने झारखंड और महाराष्ट्र में लड़ने के लिए भाजपा के साथ अपनी चर्चा तेज कर दी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक रालोद ने हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ने की अपनी मांग छोड़ दी है। यह घटनाक्रम कई राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों में सहयोगियों पर भाजपा की बढ़त को दर्शाता है। रालोद सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होने से पहले रालोद हरियाणा में कम से कम दो सीटों की मांग कर रही थी। जाट और किसानी पर निर्भर मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद वाले इस राज्य की राजनीति में प्रवेश की रालोद की योजना थी। सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने यूपी के आने वाले उपचुनावों में मीरापुर विधानसभा सीट से भी अपना दावा छोड़ने का भी प्रस्ताव रखा है। यह सीट पार्टी विधायक चंदन चौहान के बिजनौर लोकसभा सीट से सांसद चुने जाने के चलते खाली हुई है।
भाजपा ने 2019 में हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़कर 36.49 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 40 सीटों पर जीत हासिल की थी। जानकारों का कहना है कि जयंत चौधरी का अपनी मांग से पीछे हटना प्रमुख चुनावों में रालोद जैसे छोटे सहयोगी दलों को लेकर भाजपा की रणनीति को दर्शाता है। इस तरह गठबंधन की संरचना पार्टी के व्याप्क हितों के अनुरूप है। यह लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई राज्यों में अपनी राजनीतिक ताकत को बढ़ाकर करने की भाजपा की बड़ी रणनीति का हिस्सा भी लगता है। याद दिला दें कि लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बनने से पहले रालोद ने सपा और कांग्रेस से गठबंधन किया था और उस दौरान जयंत, यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे तत्कालीन भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व प्रमुख बृजभूषण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों के समर्थन में खुलकर आ गये थे।
हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में रालोद जहां अपनी मांग से पीछे हटा है वहीं जम्मू कश्मीर में 10 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है। आरएलडी सूत्रों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला अपनी चुनावी पहचान को लेकर पार्टी की बड़ी रणनीति का एक का हिस्सा है। वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह दोहरा दृष्टिकोण- यूपी जैसे प्रमुख राज्यों में रणनीतिक गठबंधन बनाए रखना और अन्य में स्वतंत्रता का दावा करते हुए आगे बढ़ना रालोद की अपने मूल हितों की रक्षा करते हुए राजनीतिक परिदृश्य बदलने की कोशिश का प्रतीक है।
रालोद के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) त्रिलोक त्यागी ने से कहा कि भाजपा के साथ उनका गठबंधन मुख्य रूप से यूपी तक ही सीमित है। उन्होंने कहा, ”दूसरे राज्यों में हम अपनी चुनावी आवश्यकताओं के बारे में सोच-विचार कर निर्णय ले रहे हैं। फिर भी, हमें संयुक्त रूप से और एकजुट होकर रणनीति बनाने की जरूरत है। रालोद ने पहले जम्मू-कश्मीर में ग्राम पंचायत चुनाव लड़ा था। इस बीच, रालोद ने झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के साथ अपनी चर्चा तेज कर दी है। रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनुपम मिश्रा, जो 11 सितम्बर से झारखंड के दौरे पर जाने वाले हैं कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखना पहला उद्देश्य है।
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