नई दिल्ली। स्वतंत्रता (Freedom) के बाद भारत (India) को सुरक्षित रखने में हमारे जवानों की अहम भूमिका रही है। भारत की अखंडता, संप्रभुता के लिए लड़े गए सभी युद्धों और सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों (terrorist activities) में सशस्त्र बलों ने चुनौतियों का मुंहतोड़ जवाब दिया है। कई बहादुरों ने सर्वोच्च बलिदान दिया और कई सैनिक शारीरिक रूप से अक्षम हो गए। उनमें से कई अपने परिवार के अकेले कमाने वाले थे। परिवार के मुखिया की मृत्यु या उनकी शारीरिक अक्षमता के मामले में परिवारों की स्थिति की कल्पना करना मुश्किल है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Defense Minister Rajnath Singh) ने देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों और उनके परिवार वालों की मनोदशा का जिक्र मंगलवार को सशस्त्र सेना ध्वज दिवस के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) कॉन्क्लेव के चौथे संस्करण में किया। केन्द्रीय सैनिक बोर्ड की ओर से आयोजित सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि रक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर जोर देते हुए कहा कि कई संस्थान पूंजी का निवेश करते समय नेशनल सिक्युरिटी का ध्यान नहीं रखते, जबकि यह सबसे जरूरी है। उन्होंने आह्वान किया कि नए इन्वेस्टमेंट में कैपिटल पूंजी, मानव संसाधन, तकनीक विकास के साथ-साथ अपने देश की सीमा की रक्षा के लिए भी अलग से बजट निर्धारित करना चाहिए।
रक्षा मंत्री ने कहा कि पूंजी निवेश में तमाम तरह के जोखिमों का आकलन करते समय यह भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि हमारे देश पर कहीं कोई टेढ़ी नजर तो नहीं रख रहा है, जिससे हमारा निवेश प्रभावित हो सकता है। इसकी चिंता हम नहीं करते, जबकि यह सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर (important factor) है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आपको भरोसा है कि देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर सेनाएं मुस्तैदी के साथ खड़ी हैं। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक (psychological) कारण भी है कि जिस ओर से हम निश्चिंत रहते हैं, उस ओर हमारा ध्यान नहीं जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यह ठीक वैसे ही है, जैसे बच्चे इसलिए निश्चिंत रहते हैं कि उनके ऊपर माता-पिता का हाथ रहता है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि हम सुबह उठकर यह सूची नहीं बनाते कि दिन भर में कितनी बार सांस लेना है, जबकि यह हमारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज है। हम इस ओर इसलिए निश्चिंत रहते हैं, क्योंकि हमें पता है कि प्रकृति ऑक्सीजन देने का कार्य भली-भांति कर रही है। ठीक इसी तरह देश का हर नागरिक सीमा पर तैनात जवानों (troops deployed) के भरोसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर बेफिक्र रहता है लेकिन क्या हम सबका कर्तव्य नहीं बनता है कि जिनकी वजह से हम चैन का जीवन जी रहे हैं, उन्हें कुछ सहयोग किया जाए। उन्होंने कहा कि सैन्य सेवा को हमेशा प्रभावशाली बनाए रखने लिए एक सैनिक की औसत आयु 35-40 वर्ष रखी गई है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि एक तरफ 15 लाख सैन्यकर्मी सेवारत हैं, तो दूसरी तरफ करीब 32 लाख सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी हैं। हर साल लगभग 60 हजार सैन्यकर्मियों (military personnel) के रिटायर होने से यह संख्या लगातार बढ़ रही है। पूर्व सैनिकों की देखभाल करना राष्ट्रीय दायित्व है, इसलिए यह समाज के सभी वर्गों की सामूहिक जिम्मेदारी से संभव हो सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे सैनिकों या उनके परिवारों की किसी भी मुसीबत के समय उनकी सहायता करना हम सबकी सिविक ड्यूटी बनती है। पूर्व सैनिकों, विधवाओं और उनके आश्रित परिजनों के पुनर्वास और कल्याण के लिए किये जा रहे प्रयासों को और बढ़ाने की जरूरत है। सेनाओं की सहायता, देखभाल, पुनर्वास, चिकित्सा आदि के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना प्रत्येक नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी है।
रक्षा मंत्री ने इस मौके पर सशस्त्र सेना ध्वज दिवस कोष (एएफएफडीएफ) की एक नई वेबसाइट लांच की। यह नई वेबसाइट परस्पर संवाद के लिए उपयोगी होगी, जिसे एएफएफडीएफ के लिए ऑनलाइन योगदान को प्रोत्साहित करने के लिए विकसित किया गया है। इस अवसर पर राजनाथ सिंह सशस्त्र सेना ध्वज दिवस के लिए इस वर्ष के प्रचार अभियान का गीत भी जारी किया। साथ ही इस कोष में योगदान करने वाले प्रमुख लोगों को सम्मानित भी किया।
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