नई दिल्ली (new delhi)। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने गुजरात (Gujrat) में 2002 से 2006 के बीच कथित फर्जी मुठभेड़ मामलों (fake encounter cases) से जुड़ी याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की। इन मामलों की निगरानी के लिए अदालत ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एचएस बेदी (Retired Justice HS Bedi) की अगुआई में एक समिति गठित की थी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में 2002 से 2006 के बीच कथित फर्जी मुठभेड़ मामलों से जुड़ी याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की। जिसमें गीतकार और कवि जावेद अख्तर (Javed Akhtar) उन भी याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं, जिनकी अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 2002 और 2006 के बीच गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड़ों के 17 मामलों की जांच का आदेश दिया था। जावेद अख्तर ने बुधवार को समिति की रिपोर्ट को स्वीकृति प्रदान की। रिपोर्ट में बहुमत में यह कहा गया कि मुठभेड़ वास्तिक थीं लेकिन उनमें से तीन मामलों में हत्या के आरोपों के तहत पुलिवालों के ट्रायल चलने चाहिए।
जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच के समक्ष अपने वकील के माध्यम से पेश हुए जावेद अख्तर ने जस्टिस एचएस बेदी समिति की रिपोर्ट को स्वीकृति प्रदान की. रिपोर्ट में निष्कर्ष यह निकाला गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत स्पेशल टास्क फोर्स (STF) की ओर से जांच में पाया गया कि 17 मुठभेड़ों में से तीन पहली नजर में फर्जी थीं! जावेद अख्तर का पक्ष रखने वाले वकील सुरूर मंडेर (Suroor Mander) ने बेंच के समक्ष कहा कि ‘समिति को केवल तीन मामलों में फर्जी एनकाउंटर के केस मिले हैं। बेंच में जस्टिस एएस ओका और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी शामिल थे।
बता दें कि 2007 में पत्रकार बीजी वर्गीज और जावेद अख्तर ने मामले को लेकर अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस बेदी को गुजरात के कथित फर्जी मुठभेड़ों के मामले में जांच कर रही एसटीएफ पर नजर रखने वाली निगरानी समिति का प्रमुख नियुक्त किया था। पूर्व जस्टिस बेदी ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में एसटीएफ की ओर जांच की गईं 17 मुठभेड़ों में से ज्यादातर को मंजूरी दे दी जबकि तीन मामलों में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की।
[relpsst]
रिपोर्ट में कहा गया कि तीन लोग- समीर खान, कासम जाफर और हाजी इस्माइल प्रथम दृष्टया गुजरात पुलिस अधिकारियों की ओर से फर्जी एनकाउंटर में मारे गए समिति ने तीन इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों समेत नौ के खिलाफ आरोप लगाया. समिति ने इन मामलों में किसी भी आईपीएस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश नहीं की और न ही मामले में किसी राजनीतिक हस्ती के शामिल होने के बारे में कुछ कहा.
जनवरी 2019 में शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह अभी 221 पन्नों की रिपोर्ट न तो स्वीकार कर रही है और न ही खारिज कर रही है. तब कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के साथ रिपोर्ट को साझा करने का आदेश दिया था। बुधवार को जब बेंच ने जब याचिकाओं पर विचार किया तो गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए वकील रजत नायर ने कहा कि राज्य सरकार को उन दस्तावेजों को समझना है, जिनके आधार पर जस्टिस बेदी समिति निष्कर्ष पर पहुंची। रजत नायर ने जावेद अख्तर पर ‘चयनात्मक जनहित’ का आरोप लगाया और कहा कि कथित फर्जी मुठभेड़ों की आड़ में एक एक विशेष राज्य को बदनाम करने की कोशिश की गई।
वहीं, जावेद अख्तर के वकील मंदर ने समिति की फाइनल रिपोर्ट पर संतोष व्यक्त किया। इस बीच वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और मनिंदर सिंह कुछ पुलिस अधिकारियों की ओर से पेश हुए, जिनसे समिति ने मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी। उन्होंने अदालत से रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करने का आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया कि सभी दस्तावेज मिलने के बाद वे इसमें गंभीर त्रुटियों को बताएंगे. शीर्ष अदालत ने कहा कि आखिरकार यह मामला अब तीन मुठभेड़ों के आसपास सुलझता हुआ लगता है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved