टोक्यो: जापान की सरकार 2011 की मेगासुनामी में बर्बाद हुए फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में मौजूद रेडियोएक्टिव पानी को प्रशांत महासागर में डंप करने की योजना बना रही है. इसके लिए जापान के न्यूक्लियर रेगुलेटर ने प्रारंभिक अनुमति भी दे दी है. जापान यह काम अगले साल बंसत के मौसम तक पूरा करेगा.
जापान के न्यूक्लियर रेगुलेशन अथॉरिटी (NRA) ने पिछले साल ही परमाणु संयंत्र के वेस्ट वॉटर को ट्रीट करके प्रशांत महासागर में फेंकने की अनुमित मांगी थी. जिसके लिए जापान सरकार की कैबिनेट ने एक बिल पास किया था. अब अनुमति मिल चुकी है. लेकिन जापान में कायदा है कि कोई नया काम करने से पहले, जिसमें लोगों के जनजीवन पर असर पड़ता हो, उसके बारे में लोगों से राय ली जाती है.
जनता बताएगी रेडियोएक्टिव पानी समुद्र में फेंकना है या नहीं
अभी एक महीना लोगों से इस बारे में पूछताछ होगी. कि क्या जनता चाहती है कि परमाणु संयंत्र का कचरा पानी प्रशांत महासागर में छोड़ा जाए. लोगों को 18 जून तक इस मामले में अपनी राय देने की बात कही गई है. जनता की राय जानने के बाद आगे का फैसला किया जाएगा. वैसे NRA का प्लान है कि रिएक्टर के पानी को अगले साल बंसत ऋतु तक प्रशांत महासागर में छोड़ दिया जाए.
हालांकि, NRA को उम्मीद है कि जनता उनका साथ नहीं देगी. क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान हो सकता है. जबकि रिएक्टर को संचालित करने वाली कंपनी टेप्को (TEPCO) पहले इस रेडियोएक्टिव वाटर को ट्रीट करके उसका रेडिएशन कम करेगी. उसके बाद इसे प्रशांत महासागर में फेंकेगी.
सबसे खतरनाक हादसों में एक था फुकुशिमा न्यूक्लियर डिजास्टर
फुकुशिमा न्यूक्लियर रिएक्टर का हादसा दुनिया सबसे खतरनाक परमाणु हादसों में गिना जाता है. सुनामी के टकराने से प्लांट के तीन रिएक्टर बंद हो गए थे. बिजली नहीं होने की वजह से रिएक्टर्स के कूलर्स बंद हो गए. गर्मी से तीनों के कोर पिघल गए. जिसकी वजह से काफी ज्यादा मात्रा में रेडिएशन फैला था. इसका रेडियोएक्टिव पानी निकालने का प्रयास बहुत दिनों से किया जा रहा है, लेकिन स्थानीय लोग और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लोग इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं.
हालांकि, कई स्टडीज में इस बात का खुलासा किया गया है कि टेप्को का ये प्लान सुरक्षित है. इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने जापान के इस प्लान को सही ठहराया है. इस काम को लेकर इस साल की शुरुआत में एक मॉडलिंग स्टडी आई थी. जिसमें कहा गया था. अगर रिएक्टर के रेडियोएक्टिव पानी को ट्रीट करके प्रशांत महासागर में डालेंगे तो यह 1200 दिनों में उत्तरी प्रशांत महासागर में फैल जाएगा. ये उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच जाएगा.
40 साल लगेंगे रेडियोएक्टिव पानी को साफ होने में यानी बड़ी तबाही
3600 दिन पूरा होते-होते रेडियोएक्टिव पानी में मौजूद पॉल्यूटेंट्स पूरे प्रशांत महासागर को घेर लेंगे. इसके बाद प्रशांत महासागर से इन प्रदूषणकारी रेडियोएक्टिव पदार्थों जैसे ट्राइटियम (Tritium) को खत्म होने करीब 40 साल लगेंगे. या फिर पूरी तरह से डाइल्यूट होने में इतना समय लग जाएगा.
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