नई दिल्ली। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष (US House Representatives Speaker) नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) की ताइवान यात्रा (taiwan travel) और उस पर चीन (China) के आक्रामक रुख से आने वाले दिनों में चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अब इस विवाद में चीन का धुर विरोधी देश जापान (Japan) भी कूद पड़ा है। उसने न सिर्फ चीन के रवैये की आलोचना की है, बल्कि ताइवान के निकट चल रहे युद्धाभ्यास पर भी आपत्ति प्रकट की है। विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध नहीं भी हुआ तो इसी बहाने चीन की घेराबंदी की कोशिशें तेज होंगी। इसमें भारत का फायदा है, क्योंकि इससे आने वाले समय में क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों में बदलाव आएगा।
चीन के आक्रामक रुख से साफ नजर आ रहा है कि अमेरिका उसे ताइवान में उलझाने की कोशिशों में सफल हो रहा है। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि यदि चीन ताइवान में उलझता है तो यह उसके लिए नुकसानदायक होगा। इसी प्रकार ताइवान पर हमला करने से भी चीन का ज्यादा नुकसान है। चीन को इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए।
चीन के रुख पर नाराजगी भरी पहली प्रक्रिया जापान की आई है। भारत ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है, लेकिन जिस प्रकार अमेरिका के बाद जापान ने चीन को घेरा है, उसी प्रकार कुछ और देश में आने वाले दिनों में चीन के रवैये के खिलाफ मुखर होते हैं तो इसमें भारत फायदा है। पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर जिस प्रकार पिछले दो साल से चीन आक्रामक रुख अपनाए हुए है, ताइवान से उलझने की स्थिति में उसे लंबे समय तक एलएसी पर टकराव को कायम रखना मुश्किल होगा। ऐसे में चीन पर एलएसी से अपनी सेनाओं को पीछे हटने का दबाव होगा।
अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत क्वाड समूह में शामिल हैं। मूलत: जापान की पहल पर बना क्वाड समूह चीन की रणनीतिक घेराबंदी करता है। अमेरिका और जापान के बाद आस्ट्रेलिया भी चीन के रुख के खिलाफ है। ऐसे में यदि क्वाड फोरम पर चीन के खिलाफ कोई प्रस्ताव आता है तो उसमें भारत भी उसका समर्थन करने से नहीं चूकेगा। भारत व्यक्तिगत तौर पर अपनी विदेश नीति को ध्यान में रखते हुए भले ही कोई प्रतिक्रिया नहीं दे, लेकिन क्वाड या किसी अन्य फोरम के सदस्य के रूप में इस मुद्दे पर राय दे सकता है। इस प्रकार परोक्ष रूप से भारत भी चीन की घेराबंदी करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा।
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