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    जम्‍मू-कश्‍मीर विधानसभा चुनाव : निर्दलीय उम्‍मीदवार उस्मान मजीद बोले, दोस्‍ती परमानेंट नहीं !

  • September 29, 2024

    नई दिल्‍ली। जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir Assembly Elections) में तीसरे और आखिरी फेज का मतदान 1 अक्टूबर को होना है. अब उन विधानसभा क्षेत्रों में हलचल बढ़ गई है, जहां वोटिंग होनी है. इसी क्रम में उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा (Bandipora) में सभी दलों की ओर से जोरदार प्रचार अभियान चल रहा है. यहां बांदीपोरा से उस्मान मजीद 2 बार चुनाव जीत चुके हैं, वह तीसरी बार चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं. निर्दलीय कैंडिडेट उस्मान का कहना है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, इंजीनियर राशिद की पार्टी इस क्षेत्र में उस्मान का चुनावी वर्चस्व खत्म करने की कोशिश में पूरी ताकत लगा रहे हैं.



    उस्मान मजीद ने अपनी कहानी सुनाई. साथ ही पूरा भरोसा दिखाया कि वे बांदीपोरा से फिर से जीतेंगे. उस्मान के लिए बांदीपोरा में उनकी सफलता का राज विकास के मुद्दों पर पूरा ध्यान केंद्रित करना है. उस्मान ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को जल्द से जल्द राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए.

    उस्मान ने कहा कि पहले लोग कैंपेनिंग में नहीं आते थे, लोगों में खौफ था, जलसे-जुलूस करने में दिक्कत आती थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की दोस्ती परमानेंट नहीं है. उन्होंने कहा कि हम कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस से पूछते हैं कि सबसे पहले तो आप ये बताएं कि आपने किस आधार पर गठबंधन किया है.

    उस्मान ने कहा कि लोग मुझे सिर्फ ये कहते हैं कि हमारे विकास की बात करो. उन्होंने कभी पाकिस्तान, रूस-यूक्रेन को लेकर कुछ नहीं कहा है. लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है. उनके वोट कटने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सभी विरोधी मेरे खिलाफ एक हो गए हैं. मुझे इसकी खुशी है कि लोग मुझे प्यार करते हैं.

    पूर्व विधायक और बांदीपोरा से उम्मीदवार उस्मान मजीद की कहानी काफी दिलचस्प है, क्योंकि वह कभी कश्मीर उग्रवाद का चेहरा हुआ करते थे. वह 90 के दशक की शुरुआत में हथियारों की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान गए थे, वहां से लौटकर एक खूंखार आतंकी कमांडर बन गए, हालांकि जल्द ही मन बदल गया और फिर कुख्यात इखवान के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गए, जो उग्रवाद को कुचलने के लिए सेना द्वारा समर्थित एक विद्रोही मिलिशिया था. जब 2001 में इखवान को भंग कर दिया गया, तो उन्होंने राजनीति में हाथ आजमाने की कोशिश की. 2002 में वह बांदीपोरा से चुनाव लड़े और जीते.

    फिर 2014 में कांग्रेस के टिकट पर वह पीडीपीएस निजामुद्दीन भट को हराकर दूसरी बार विधायक बने, हाल ही में उन्होंने अपनी पार्टी से इस्तीफा दे दिया और फिर से एक निर्दलीय कैंडिडेट के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. एक विद्रोही के रूप में उनकी भूमिका के लिए उस्मान लगातार आतंकवादी संगठनों का निशाना रहे हैं, उन पर कई बार हमले हुए हैं, सबसे क्रूर हमला 2006 में हुआ था, जब वे कांग्रेस-पीडीपी गठबंधन सरकार में मंत्री थे, उनके काफिले को लालचौक में एक आत्मघाती कार हमलावर ने निशाना बनाया था, वे बुलेट प्रूफ कार की बदौलत बच गए, हालांकि उनके चेहरे और हाथों पर गंभीर चोटें आई थीं. इसके बाद उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई थी.

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