– अशोक टंडन
भारतीय जनसंघ (भाजपा से पूर्व का संगठन ) के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर के भारत में संपूर्ण विलय को लेकर एक अहिंसक आंदोलन चलाया और इस आंदोलन में अपनी जिंदगी की आहुति दे दी । 10 मई, 1953 को डॉक्टर मुखर्जी ने जम्मू -कश्मीर सरकार के परमिट के साथ कश्मीर जाने के आदेश को मानने से इनकार करते हुए अपनी गिरफ्तारी दी। उन्होंने यह नारा लगाया कि ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान’ नहीं चलेंगे। तब उन्हें तनिक भी आभास नहीं था कि भारतीय जनता पार्टी की दूसरी पीढ़ी के दो नेता गुजरात से आकर पार्टी का नेतृत्व करेंगे, केंद्र में बहुमत के साथ एक मजबूत सरकार बनाएंगे और उनके मिशन को पूरा करेंगे।
05 अगस्त, 2019 को नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को समाप्त कर वास्तव में भारत के साथ कश्मीर का पूर्ण रूप से विलय कराया। राष्ट्रपति के ऐतिहासिक आदेश से बने नए कानून के अनुसार जम्मू-कश्मीर को प्राप्त सारे विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए हैं और राज्य पुनर्गठन विधेयक (2019) के जरिए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया। हालांकि पिछले एक साल में केंद्र की एनडीए सरकार ने जम्मू-कश्मीर के मामले में कई चुनौतियों का सामना किया। जिसमें सीमा की सुरक्षा, कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ परस्पर सकारात्मक विचार-विमर्श बनाए रखना और अपना पक्ष प्रस्तुत करना। साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के रूप में बांटे जाने पर घरेलू स्तर पर राजनीतिक विरोधों का सामना करना शामिल है। फिर भी सबसे बड़ी चुनौती दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में चतुर्दिक विकास, शांति बहाली, सामाजिक उत्थान की योजनाएं और भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था कायम करने की थी।
प्रधानमंत्री ने भटके हुए युवकों से व्यक्तिगत अपील करते हुए कहा कि वे भी इस ऐतिहासिक यात्रा के भागीदार बनें और एक महान काम में हमारे साथ चलें। इस अपील ने धरातल पर शानदार परिणाम दिखाए। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर ( फिलहाल अस्थाई व्यवस्था) और लद्दाख की व्यवस्था सीधे केन्द्र के अधीन आने के बाद मोदी सरकार ने पूरे क्षेत्र के लिए शांति व समृद्धि की महत्वाकांक्षी योजनाए ंशुरू कीं और एक समावेशी विकास व पारदर्शी शासन व्यवस्था कायम कर दी। टीम मोदी ने आधुनिक ढांचागत सुविधाएं स्थापित करने व द्रुतगामी समाज कल्याण की योजनाओं के साथ रोजगार सृजन, खासकर मध्यम, लघु व सूक्ष्म उद्यम के जरिए, हेतु योजनाएं एवं कार्यक्रम बनाने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया।
सभी मौसमों के लिए उपयुक्त अच्छी सड़कों का निर्माण और नेशनल हाईवे के विस्तार से राज्य के भीतर की आवाजाही सुगम तो हुई ही, साथ ही अन्य राज्यों से भी बेहतर जुड़ाव हो गया। राज्य के दो केंद्रशासित प्रदेश में विभाजन के बाद रोड सेक्टर के जरिए नए रोजगार का सृजन भी हुआ और अवसर भी बने। मोदी सरकार ने अपने वायदे के अनुसार पिछले एक साल में क्षेत्रवार कार्यों का मूल्यांकन किया और इसे अपेक्षा से अधिक संतोषजनक पाया । लेकिन जब सारी योजनाएं, खासकर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण व दुरूह क्षेत्रों की सड़क व टनल योजनाएं, पूरी हो जाएंगी, तो फिर जम्मू कश्मीर का दृश्य पटल ही बदल जाएगा।
कश्मीर
आस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध शोधकर्ता एवं लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन, जिन्होंने कश्मीर पर कई किताबें लिखी हैं, उन्हें हम कश्यप मीर का एक छोटा नाम भी कह सकते हैं, के अनुसार पर्यटन कश्मीर की अर्थव्यवस्था की लाइफ लाइन है और बुनियादी सुविधाओं में विस्तार ने ना सिर्फ पर्यटन व्यवसाय को सफल बनाया है बल्कि घाटी से निर्यात को भी बढ़ावा मिलने लगा है।
सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय अपने एनएचएआई व एनएचआईडीसीएल जैसे संस्थानों को बीआरओ (बाॅर्डर रोड आर्गेनाइजेशन) व स्टेट पीडब्लूडी के साथ जोड़कर कई ऐसी श्रृंखलाबद्ध परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जो आने वाले दिनों में रेशमकीट पालन, ठंडे पानी में मछली पालन, बढ़ईगिरी, क्रिकेट बैट का उत्पादन, केसर उत्पादन, हस्तशिल्प और बागवानी में लगे स्टार्टअप को बढ़ावा देने और उन्हें निर्माता कंपनी बनाने में काफी मददगार सिद्ध होंगी। ऐसी जो परियोजनाएं चल रही हैं उनमें श्रीनगर-जम्मू-लखनपुर हाईवे, काजीगुंड-बनिहाल टनल और श्रीनगर रिंग रोड शामिल हैं।
जम्मू
यह सुंदर शहर कभी जम्बूपुरा के नाम से जाना जाता था। यह राजा जम्बू लोचन की राजधानी थी। राजा जम्बू लोचन के भाई बाहु लोचन ने रावी नदी के किनारे बाहु किले का निर्माण कराया था। जम्मू इस समय रेल और सड़क नेटवर्क के जरिए देश के बाकी हिस्सों से तेजी से जुड़ता जा रहा है। जम्मू रिंग रोड ना सिर्फ यहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने में महत्वूपर्ण योगदान कर रहा है, बल्कि यहां के काष्ठकला, दूध और बासमती चावल, गलीचे व इलेक्ट्रानिक सामानों के निर्माताओं और व्यापारियों को भी इससे खूब लाभ मिल रहा है।
लद्दाख
लद्दाख को लाडवाग यानी उचे टीले की जमीन, और मरयूल यानी नीचे खाई की जमीन वाला क्षेत्र भी कहते हैं, लेकिन इसका सामरिक महत्व बहुत ज्यादा है। कश्मीर घाटी के सत्ताधारी खानदान लद्दाख के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार करते रहे हैं। लद्दाख को एक अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाने का मोदी सरकार का फैसला यहां के शांति प्रिय लोगों के लिए शांति, समृद्धि और विकास का एक नया क्षितिज प्रदान कर रहा है, जिसमें क्षेत्रीय असंतुलन को दूर कर विकास और आर्थिक संवृद्धि के अवसर का निर्माण हो रहा है। लद्दाख इस समय बुनियादी सुविधाओं में अभूतपूर्व बढ़ोतरी का साक्षी बना हुआ है। यहां के सामरिक महत्व और दूरूह क्षेत्रों में नेशनल हाईवे का निर्माण हो रहा है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने के कारण लद्दाख के विकास को चार चांद लग गए हैं। केंद्र से सीधे मदद मिलने के कारण यहां कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में विकास की असीम संभावनाएं दिखने लगी हैं। लद्दाख के बागवानी और नकदी फसल के किसानों को सिचाई की बेहतर सुविधा मिलने के कारण उनकी उत्पादकता बढ़ गई है और आय में अतिरिक्त वृद्धि हो रही है।
अंत में यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने से तीनों क्षेत्रों की जनता में सार्वजनिक हितों के फैसलों सें जुड़ने का एक सुखद अहसास हो रहा है। यह गर्व की बात है कि जम्मू-कश्मीर के युवा अब पहले से ज्यादा सुरक्षा बलों या पब्लिक सर्विस कमीशन से जुड़ने की आकांक्षा प्रदर्शित रहे हैं। शिक्षा और खेलकूद में भी उनकी भागीदारी बढ़ रही है।
अब लोग स्थानीय प्रशासन को असमाजिक तत्वों को खत्म करने में सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं और उन राजनीतिज्ञों की असलियत लोगों के सामने उजागर कर रहे हैं जो युवकों को भटकाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य हैं।)
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