देवबंद(सहारनपुर)। उत्तराखंड (Uttarakhand) में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने पर जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-e-Hind) ने फैसले को नैनीताल हाईकोर्ट (nainital high court) और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती देने का निर्णय लिया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि ऐसा करके न केवल नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला किया गया है, बल्कि यह कानून पूरी तरह से भेदभाव और पूर्वाग्रह पर आधारित है।
मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) ने सोमवार को दी प्रतिक्रिया में कहा कि हमें कोई ऐसा कानून स्वीकार्य नहीं जो शरीयत के खिलाफ हों। मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन अपनी शरीयत से कोई समझौता नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता कानून में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366, खंड 25 के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों को छूट दी गई है तथा तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उन के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है।
मदनी ने सवाल उठाया कि यदि संविधान की एक धारा के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखा जा सकता है तो हमें संविधान की धारा 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती है। जिसमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देकर धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। इस प्रकार देखा जाए तो समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सच तो यह है कि किसी भी धर्म का अनुयायी अपने धार्मिक मामलों में किसी तरह का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता मुसलमानों के लिए अस्वीकार्य है और देश की एकता और अखंडता के लिए भी हानिकारक है।
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