मास्को। रूस-यूक्रेन युद्ध (Russo-Ukraine War) को खत्म कराने के लिए भारत (India) विशिष्ट रूप से मजबूत और प्रभावशाली स्थिति में है। रूस का रणनीतिक साझीदार (strategic partner) होने के साथ रूस का पुराना और सच्चा दोस्त (old and true friend of russia) होने के अलावा विश्व राजनीति में बढ़ती धमक के बूते भारत ने आठ माह पुराने संघर्ष की समाप्ति की उम्मीद जगा दी है। इन उम्मीदों के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर (External Affairs Minister S Jaishankar) सात और आठ नवंबर को रूस का दौरा करेंगे। इस दौरान रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और उप प्रधानमंत्री एवं व्यापार और उद्योग मंत्री डेनिस मंटुरोव के साथ बातचीत करेंगे। जयशंकर के मॉस्को दौरे से राहत की खबर मिलने पर पूरी दुनिया की निगाह है।
युद्ध की शुरुआत से पहले फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सुलह के काफी प्रयास किए थे। यहां तक कि हमले से एक सप्ताह पहले वे पुतिन से मिलने मॉस्को पहुंचे थे। इसी दौरान मैक्रों ने अपने पश्चिमी साथियों के सामने प्रस्ताव रखा था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शांति वार्ता का नेतृत्च और मेजबानी का अनुरोध किया जाए, लेकिन यह प्रयास कभी अमल में ही नहीं लाया गया। बहरहाल, न्यूक्लियर डिप्लोमेसी में पीएचडी कर चुके भारत के विदेश मंत्री जयशंकर इसी सप्ताह रूसी अधिकारियों और नेतृत्व से मिलने मॉस्को जा रहे हैं। वे इस वक्त भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांतकार और उसे लागू भी करने वाले शख्स हैं। वे पूरी दुनिया में मौजूदा दौर के सबसे माहिर कूटनीतिज्ञों में शुमार हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वे वहां से पूरी दुनिया के लिए अच्छी खबर देंगे।
इन उम्मीदों के पीछे असल में कई ऐसे वाकये हैं, जब भारत ने खामोशी से काम करते हुए दुनिया को बड़ी मुसीबतों से बचाया है। अनाज सौदे को लेकर भारत ने भले ही तुर्की की तरह मुनादी कर पूरी दुनिया को अपनी भूमिका के बारे में नहीं बताया हो। लेकिन, पूरी दुनिया में अनाज का संकट पैदा होने पर भारत ने ही रूस को इस करार में शामिल होने के लिए राजी किया।
परमाणु हादसे का खतरा टाला
अगस्त-सितंबर में जब परमाणु संयंत्र पर कब्जे के लिए रूस जपोरिझिया में भीषण बमबारी कर रहा था, तो पूरी दुनिया परमाणु हादसे की आशंका से भयभीत थी। संयुक्त राष्ट्र ने तमाम प्रयास किए, लेकिन रूस और यूक्रेन दोनों ही पीछे हटने को तैयार नहीं हुए। भारत ने रूस को रोकने की जिम्मेदारी ली और अमेरिका से कहा गया कि यूक्रेन को पीछे हटाया जाए। इस तरह से दुनिया के ऊपर मंडरा रहा परमाणु हादसे का खतरा टला।
सर्दियों में संकट गहराएगा
वाशिंगटन स्थित द हैरिटेज फाउंडेशन के एशियन स्टडीज सेंट के शोधकर्ता जेफ एम स्मिथ कहते हैं, अभी यूक्रेन युद्ध के मैदान में बढ़त बनाए हुए है, लेकिन जब तापमान गिरेगा तो दोनों तरफ मुश्किलें बढ़ेंगी।
चुनौती नहीं, भारत का साथ दे पश्चिम
सितंबर में उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में पीमए मोदी ने जिस अंदाज में रूस के राष्ट्रपति को नसीहत दी कि यह दौर युद्ध का नहीं, उससे पूरी दुनिया में यह संदेश साफ गया कि भारत भले ही पश्चिम के दबाव के बावजूद सार्वजनिक तौर पर रूस की आलोचना नहीं कर रहा है, लेकिन रूस को काबू करने वाली वास्तविक ताकत वही है। फिलहाल, अमेरिका और पश्चिमी देशों को भारत के सामने रूस या उन्हें चुनने की चुनौतियां खड़ी करने के बजाय भारत की मदद से युद्ध से युद्ध को खत्म करने पर ध्यान देना चाहिए।
भारत शांति और नियम आधारित विश्व व्यवस्था के साथ :
पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत नॉन अलाइनमेंट की नीति से बहुत दूर ऑल अलाइनमेंट की नीति पर काफी आगे बढ़ा चुका है। जब भारत कहता है कि वह नियम आधारित विश्व व्यवस्था में यकीन करता है, तो उसके प्रयासों में यह झलकता है कि अपनी स्थिति और प्रभाव का इस्तेमाल विश्व कल्याण की भावना के साथ करने को तैयार है। पिछले महीने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर न्यूजीलैंड में कह चुके हैं कि भारत इस युद्ध को खत्म करने के लिए जो भी संभव होगा करेगा।
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