- जिम्मेदार अधिकारी यदि बार बार बिल लगाए तो पकडऩे के लिए डिजिटल व्यवस्था में कोई सिस्टम नहीं
- कटनी, भिंड, अलीराजपुर, इंदौर, देवास सभी जगह डिजिटलाइजेशन के बाद बड़े पैमाने पर घोटाले
उज्जैन। उज्जैन में धार्मिक स्नान करने के लिए 12 साल में एक बार सिंहस्थ का मेला लगता है, वहीं दूसरी ओर घोटालों का भी सेंट्रल जेल भैरवगढ़ गबन कांड दूसरा सिंहस्थ है। इसके पहले कोषालय से संबंधित स्टाम्प घोटाला हुआ था। खूब हल्ला मचा था लेकिन बाद में इसमें कोई बड़ी कार्रवाई संबंधित पर नहीं हुई, जिन्होंने घोटाला किया वे आराम से घूम रहे हैं। सेंट्रल जेल भैरवगढ़ में जो गबन कांड हुआ है, वैसा गबन कांड पूरे प्रदेश में चल रहा है लेकिन पकड़ में नहीं आ रहा है। वर्तमान में सरकार ने कोषालय से पैसा निकालने के लिए डिजिटल व्यवस्था कर रखी है। इस डिजिटल व्यवस्था के अंतर्गत रुपया निकालने के लिए सिस्टम में तीन स्तरों पर काम होता है। इनमें एक स्तर क्रिएटर जो बिल बनाता है, दूसरा प्रोसेसर जो प्रोसेस करता है और तीसरा अनुमोदन करने वाला होता है। तीनों व्यक्ति अलग-अलग होने चाहिए लेकिन सेंट्रल जेल भैरवगढ़ में वर्षों से एक ही व्यक्ति यह सब काम कर रहा था लेकिन देखने वाला कोई नहीं था। वह डीपीएफ के बिल सिस्टम में बैलेंस को संशोधित कर फर्जी तरीके से बढ़ाता था। इस पर वहाँ पदस्थ जेल अधीक्षक एवं ट्रेजरी के अधिकारियों ने कभी ध्यान नहीं दिया कि तीनों काम एक ही व्यक्ति कैसे कर रहा है। डीडीओ को बैलेंस में संशोधन करने की जो सुविधाएं दी गई थी वह सुविधा ही इस घोटाले का सबसे बड़ा कारण बनी। इतना ही नहीं आरोपी रिपुदमन ने खुद की सैलरी जो कि कांस्टेबल पद तृतीय श्रेणी कर्मचारी की रहती है लेकिन उसने कई महीनों से अधिकारियों की सैलरी के बराबर सैलरी निकाली लेकिन इसे भी किसी ने नहीं पकड़ा। उसने वर्दी धुलाई भत्ता और अन्य प्रकार के भत्ते के बिल भी लगाएं। इस डिजिटलाइजेशन सिस्टम में कोई व्यक्ति यदि दूसरी बार वही बिल लगाए तो पकडऩे का कोई सिस्टम नहीं है।
अधिकारी यदि लापरवाह हो जाए और अकाउंटेंट मिल जाए तो बार-बार एक ही व्यक्ति की भविष्य निधि की राशि निकाल सकता है एवं अन्य बिल भी भुगतान करा सकता है। सरकार ने डिजिटलाइजेशन तो करा दिया लेकिन सभी विभागों में दक्ष अमला अभी भी डिजिटलाइजेशन का काम करने वाला नहीं है। कोषालय में जब से डिजिटलाइजेशन की व्यवस्था हुई है तब से ही घोटाले हो रहे हैं। पहले जब यह व्यवस्था मैन्युअल थी तो कभी भी इस प्रकार के घोटाले देखने को नहीं मिले। वर्तमान में कटनी, भिंड, अलीराजपुर, इंदौर, देवास सभी जगह इस प्रकार के घोटाले हो रहे हैं तो पकड़े गए घोटाले हैं। इसके अलावा और भी कई जगह ऐसे घोटाले हो रहा है लेकिन वह पकड़ में नहीं आ रहे हैं। उज्जैन में भी वर्ष 2011 में स्टाम्प घोटाला हुआ था, करोड़ों रुपए का यह स्टाम्प घोटाला था। कुछ दिन मामला गर्म रहा और बाद में अदालती मामला चला और जो आरोपी थे वह आराम से घूम रहे हैं। हर विभाग के अधिकारी अपने आईडी और पासवर्ड संबंधित बाबू को देते हैं और उनके मोबाइल पर जो ओटीपी आता है वह मोबाइल भी बाबू को ही दे देते हैं, क्योंकि उन्हें विभाग के अन्य कामों से फुर्सत नहीं रहती है। ऐसे में जिस पर यह अधिकारी विश्वास करते हैं वही यदि धोखा करने लग जाए तो फिर इस प्रकार के घोटाले होते हैं। कुल मिलाकर डिजिटलाइजेशन सिस्टम की खामी के कारण यह घोटाला हुआ है। पुलिस ने पहले भी स्टाम्प घोटाले में शहर के सब स्टाम्प वेंडरों से खूब भ्रष्टाचार किया था और चांदी काटी थी। इसी प्रकार सेंट्रल जेल भैरवगढ़ मामले में भी कई बड़े लोगों के नाम आ रहे हैं। उन्हें पूछताछ कर उनसे भी पुलिस लेनदेन कर रही है ऐसी खबरें आ रही हैं, वहीं ऐसा भी बताया जाता है कि कोषालय से जुड़े अधिकारियों से भी पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने उन्हें छोडऩे के एवज में बड़ी राशि की मांग की है। क्योंकि पुलिस अब आरोपियों से पूछताछ कर चुकी है और बड़े लोगों को बुलाकर उनसे बातचीत हो गई है। अब पुलिस की ट्रेजरी बैंक और अन्य लोगों पर है। इस पूरे मामले की जांच भी हो जाएगी और रिकवरी तो अभी तक 4-5 लाख रुपये ही हुई है। ऐसे में जिन कर्मचारियों का डीपीएफ खाता माइनस हुआ है उन कर्मचारियों को अपने रुपए वापस लेने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, क्योंकि यह कार्रवाई बहुत लंबी रहती है।