नई दिल्ली। उत्तर पश्चिमी जिले के जहांगीरपुरी (Jahangirpuri) में बुधवार को अतिक्रमण पर बुलडोजर (Bulldozer on encroachment) चला। रेहड़ी खोखा पर रोजी रोटी कमाने वालों (bread earners) की आंखों में सिर्फ आंसू थे। उनका कहना था कि जनाब यहां तो दंगे की आड़ में सिर्फ गरीब ही पीस रहा है। बुलडोजर ने हमारी छोटी दुकानों एवं खोखा (small shops and kiosks) को ही तोड़ दिया है। अब हम कैसे अपने परिवार का पेट भरेंगे।
बुलडोजर अमीरों की बिल्डिंग पर चले तो माने कि कार्रवाई सही है। जिनकी अवैध दुकान और घर बना है उनके यहां बुलडोजर चले तो माने। यह कहना था मोहम्मद हुसैन का।
हुसैन सीडी पार्क में रहते हैं। घर के सामने ही उनकी कबाड़ी की दुकान है, जिसे एमसीडी ने तोड़ दिया। पास में ही उनका भाई सलीम रहता है। जिनके परिवार में 10 लोग हैं। सिर्फ इसी दुकान से सबको रोटी मिलती थी। हुसैन का कहना था कि वह पिछले 30 साल से यहां रह रहे हैं। उन्होंने कभी ऐसा मंजर नहीं देखा। अब उन्हें चिंता इस बात की है कि वो अपने बच्चों को क्या खिलायेंगे।
चौपाल पर बैठकर सभी धर्म के लोग करते थे बातचीत
सीडी पार्क इलाके में एक चौपाल थी, जिसपर बुलडोजर चला। पूरी तरह से चौपाल को तोड़ दिया गया। यह चौपाल कई सालों पहले लोगों ने खुद ही बनाई थी। इसपर किसी का कोई कब्जा नहीं है। शाम को सभी धर्मों के लोग यहां पर बैठकर आपस में बातचीत करते थे। यहीं से हर साल ताजिया बनकर निकाले भी जाते थे। पिछले करीब 11 साल से यहां से ताजिया बनकर निकल रहे हैं जिसको बनाने में हर कोई मदद करता था। जिसको टूटते हुए सभी ने देखा और दुख जाहिर किया।
कबाड़ी मार्केट में 30 से 35 दुकानों पर चला बुलडोजर
बुधवार को सबसे पहले कबाड़ी मार्केट से बुलडोजर चलना शुरू हुआ। कबाड़ी मार्केट में 30 से 35 दुकानों पर बुलडोजर चला। जिसमें सबसे पहले दुकान गणेश कुमार गुप्ता जूस वाले की थी। गणेश मूलत: उप्र, गोरखपुर के धर्मशाला के रहने वाले हैं। गणेश के अनुसार, सन 1977 से वह दिल्ली में रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि डीडीए ने यहां 13 दुकानें पास की थी। जिसमें से एक उनकी थी। बुलडोजर चलते समय वह वरिष्ठ अधिकारियों से कहते रह गये कि उनके पास दुकान के कागज हैं, लेकिन उनकी किसी ने एक नहीं सुनी। इस दुकान से चार लोगों के परिवार चलते हैं। उनका कहना है कि वह इस बात को लेकर कोर्ट जायेंगे।
फुटपाथ पर छोले कुल्चे बनाकर पेट भर लिया करते थे, अब वो भी खत्म हुआ
लालचंद नामक व्यक्ति ने बताया कि दिल्ली वह परिवार को लेकर रोजी रोटी के लिये आया था। सब ठीक चल रहा था, लेकिन दंगे ने उनको पूरी तरह से खत्म कर दिया है। अब उनकी छोले कुल्चे की रेहड़ी को बुधवार को बुलडोजर ने तोड़ दिया है, जिसको उसने किराये पर ले रखा था। अब मालिक भी बोल रहा है। उसको नहीं पता कि वो कैसे रेहड़ी देगा। साहब हमारा तो बस यहीं कमाने का साधन था। अब परिवार का पेट कैसे भरेगा, पता नहीं।
नोटिस बिना ही बुलडोजर चढ़ा दिया दुकान पर
आशु नामक दुकानदार ने बताया कि उसकी बाइक रिपेयरिंग की दुकान है। उसको एमसीडी ने कोई नोटिस नहीं दिया था। बुधवार को बुलडोजर आया और उसको बिना बताए उसकी दुकान को तोड़कर चला गया। अधिकारियों से नोटिस के बारे में पूछने पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मेरा करीब दो लाख रुपये का नुकसान हो गया है। पहले ही तीन दिन से दंगों की वजह से दुकान नहीं खोली थी। अब ये हो गया है।
अपने अस्थाई आशियाने को टूटा देखकर बस रोते रहे
काफी लोग ऐसे थे, जिन्होंने फुटपाथ पर ही अपने आशियाने बना रखे थे। इनमें रहने वाले परिवार कूड़ा बिनने का काम करके पेट भरते हैं लेकिन बुधवार को बुलडोजर ने उनके आशियानों को पूरी तरह से कुचल दिया।
कोलकाता की रहने वाली आसिमा नामक महिला ने बताया कि वह कुछ साल से अपने पति और दो बेटों के साथ यहां रह रही है। दंगों के बाद पता नहीं था कि उनपर मुसीबत का पहाड़ टूट जाएगा। अब वह कहां पर परिवार के साथ रहेगी, उसको नहीं पता है। उन्होंने कहा कि दंगा जिसने किया उसको सजा मिले, हम गरीबों को क्यों पुलिस परेशान कर रही है। दंगे वाले दिन हम तो खुद अपना आशियाना छोड़कर दूसरे इलाके में चले गए थे।
गर्मी में अपने बचे कुछ सामान के साथ परिवार फुटपाथ पर बैठकर तमाशा देखता रहा
कोलकाता निवासी शाबिर नामक व्यक्ति फुटपाथ पर अपनी पत्नी और तीन बच्चों को लेकर कुछ घरेलू सामान को लेकर फुटपाथ पर बैठा रहा। बस वो आने जाने वाले लोगों को देख रहा था। उसने बताया कि गर्मी में उसके पास पानी पीने के लिये गिलास व बोतल भी नहीं है। सब बुलडोजर ने कुचल दिया है। साहब हमारा कसूर क्या है। बस कोई ये बता दे। हम तो सुबह मजदूरी के लिये निकलते हैं और शाम को तीन साढ़े तीन सौ रुपये कमा कर परिवार की रोटी का इंतजाम करते हैं। बुलडोजर बिल्डिंगों को छोड़कर हमारे आशियानों पर ही क्यों चला है।
लोहे के दरवाजों के पीछे से देखते रहे लोग अपनी दुकान, घर व रेहड़ी को टूटते हुए
गलियों में लगे लोहे के दरवाजों के पीछे से लोग बुलडोजर से होने वाली कार्रवाई को देखते नजर आए। उनके सामने ही उनकी दुकान, रेहड़ी और आशियाने तोड़े जा रहे थे। उनका कहना था कि पुलिस ने उनको सामान उठाने के लिये भी नहीं बोला। अगर हमने कोशिश की तो उनको धमकी देकर अंदर ही रहने के लिये कहा गया था। डर के कारण वो कुछ नहीं कर पाए।
अब 30 दंगाइयों की तलाश में पुलिस की छापेमारी तेज
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि फुटेज को खंगालने पर अभी भी तीस से ज्यादा दंगाइयों के बारे में पता करने के लिये पुलिस टीमें काम पर लगी हुई हैं। जिनके बारे में जानकारी लेकर उनके ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि काफी दंगाई दंगे के बाद फरार हो गए हैं। उनके फोन को सर्विलांस पर लगाकर उनकी लोकेशन को ट्रेस किया जा रहा है।
रेलवे और बस अड्डों पर भी दंगाइयों की तलाश
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि दंगाइयों को पकड़ने के लिये रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर भी जानकारी शेयर की गई है। आरपीएफ को भी दंगाइयों के फोटो भेजे गए हैं। आरपीएफ कोलकाता और बिहार की तरफ जाने वाली ट्रेनों की सवारियों पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। रेलवे स्टेशनों पर लगे सीसीटीवी कैमरों को गंभीरता से देखा जा रहा है। हर एक जाने वाली सवारी पर निगाह रखी जा रही है। पुलिस आरपीएफ आदी टीम के 24 घंटे संपर्क में है। । (एजेंसी, हि.स.)
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