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    रामनगरी पहुंचे जगदगुरु रामभद्राचार्य ने दिया बयान, बोले-काशी और मथुरा के लिए भी लूंगा संकल्प

  • January 21, 2024

    अयोध्या (Ayodhya) । रामनगरी में जगदगुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) सबसे बड़ी रामकथा कर रहे हैं। खूबसूरत सा पंडाल है। उन्होंने संकल्प किया था, मंदिर बनने तक अयोध्या रामकथा (Ramkatha) करने नहीं आएंगे। संकल्प पूरा हुआ है। आजकल हर दिन 10 हजार लोग उन्हें सुनने आते हैं। वह देश के लोकप्रिय संत हैं। उनसे मिलने आ रही हस्तियों को हैंडल करने ‘टीम रामभद्राचार्य’ में एक सेलिब्रिटी मैनेजर भी है। इनमें नेता, अभिनेता, संत और ब्यूरोक्रेट्स जैसे भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग शामिल हैं। वे अंग्रेजी मीडिया वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं। उनके कमरे के बाहर सिर्फ भक्तों ही नहीं, कैमरे और क्रू से लैस मीडिया वालों की भी उतनी ही लंबी कतार है। किसी फिल्म के सेट सा माहौल है। एक इंटरव्यू खत्म, पैकअप…तो दूसरा तैयार खड़ा है। रोल कैमरा मीडियावाले बोलते हैं, लेकिन कट रामभद्राचार्य जी की टीम को कहना पड़ता है। वक्त की बेहद कमी है। इसी वक्‍त मीडिया ने उनसे कुछ सवाल पूछे…


    जन्मभूमि से जुड़ा जो संघर्ष रहा है, वो कैसे याद आता है?
    आज बहुत याद आ रहा है। 2 लाख लोगों ने जो अपने प्राण दिए। इसी अयोध्या की राजकुमारी ने भी अपने प्राण दिए, उन हुतात्माओं की बहुत याद आ रही है। आज उनकी आत्माएं थिरक कर नाच रही हैं यहां।

    राममंदिर पर जब जिरह करने जाते थे तो पूछा जाता था, तर्क दिए जाते थे?
    441 प्रमाण मैंने दिए थे, एक दो नहीं। और सब सत्य निकले। मुस्लिम जज आलम साहब ने भी कहा था, सर यू आर डिवाइन पावर।

    संकल्प लिया था, अयोध्या में तब तक कथा नहीं करूंगा, जब तक मंदिर नहीं बन जाता। काशी-मथुरा के लिए?
    जल्दी ही संकल्प लूंगा। बिल्कुल। कोर्ट बुलाएगी तो मैं जाऊंगा।

    देश सेवा की बात आती है तो राजनेता या संत बन जाना, क्या बड़ा होगा?
    राजनेताओं का संतों से समन्वय हो तभी कल्याण होगा। संत ही समस्याओं का अंत करता है। स मतलब समस्या और अंत यानी संत। जिनके चरणों में बैठकर समस्याओं का अंत हो वही संत है।

    शंकराचार्य खुद को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं, सबसे बड़े धार्मिक ओहदे की बात करते हैं?
    नहीं। ये उनका भ्रम है। छह आचार्य समान हैं। शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य और चैतन्यमहाप्रभु सभी समान हैं। शंकराचार्यों के कुछ भी कहने बोलने से धर्म को कोई हानि नहीं होगी। उन्हें बोलने दीजिए।

    अयोध्या का उत्सव दुनिया मना रही और कांग्रेस इस पर एक अलग राजनीति कर रही है?
    उनको अपनी रोटी सेंकनी है। उनका अभ्यास हो गया है रोटी सेंकने का। विनाश काले विपरीत बुद्धि वाली ही बात है।

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