चैतन्य भट्ट
भारतीय रेलवे जबलपुर – पुणे – जबलपुर के नाम से एक साप्ताहिक स्पेशल ट्रेन चलाती है। बेहद महंगे किराए और बदहाल कोच वाली यह ट्रेन यात्रियों को ख़ून के आंसू रुला रही है। यह प्रति रविवार चलने वाली पुणे के लिए इकलौती सीधी ट्रेन है जो आठ-दस सालों से चलने के बावजूद अभी तक नियमित नहीं हुई है। स्पेशल के ठप्पे के चलते यात्री इस ट्रेन में ड्योढ़ा किराया भुगतने पर मजबूर हैं। बिहार/उत्तर प्रदेश के शहरों और पुणे और के बीच चलने वाली अन्य ट्रेनें भी शहर से गुजरती हैं मगर उनमें जगह मिल पाना लगभग असंभव सा है।
यह ट्रेन ड्योढ़े किराए के मामले में तो स्पेशल है मगर अन्य मामलों में बदहाल। जबलपुर से छूटने और पुणे पहुंचने का निर्धारित समय क्रमश: दोपहर 1.50 और सुबह 6.30 है। मगर पिछले छह माह का औसत डाटा बताता है कि जबलपुर से यह ट्रेन कभी समय पर रवाना नहीं होती और औसतन 5 घंटे के विलंब से सुबह 11 बजे के बाद ही पुणे पहुंचती है। इसका पुणे से जबलपुर वापसी यात्रा का समय 11.30 बजे का है नतीजतन ट्रेन को रिशेड्यूल कर दिखावटी साफ़ सफाई के बाद वापस जबलपुर रवाना कर दिया जाता है।
आई टी कंपनियों के लिए विख्यात पुणे में शहर के अधिसंख्य परिवारों के बच्चे कार्यरत हैं। उनके और उनके नाते रिश्तेदारों के लिए यह इकलौती सीधी ट्रेन है। ड्योढ़ा किराये और लंबी वेटिंग लिस्ट वाली इस बदहाल ट्रेन की सवारी उनकी दुर्भाग्य बन कर रह गई है। आरक्षण न मिलने पर यात्रियों के पास मुंबई जाकर वहां से पुणे जाने के अन्य विकल्प ढूंढने का रास्ता ही शेष रहता है जो महंगा है और समय भी ज्यादा लेता है।
कहने को पश्चिम मध्य रेलवे के मुख्यालय वाले जबलपुर में एक रेलवे सलाहकार समिति है जिसकी बैठकों की खबरें जब तब छपती रहती हैं। लगता है कि नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए इस समिति में मनोनीत अशासकीय सदस्यों ने सरकारी चाय बिस्कुट उड़ाने और चहेतों को डीआरएम कोटे से आरक्षण दिलाना ही अपना कर्तव्य समझ लिया है। वरना इतने सालों से स्पेशल के रूप में चल रही यह ट्रेन कब की नियमित हो गई होती। यात्रियों का बहुमूल्य पैसा बचता। नियमित ट्रेनों को उपलब्ध निर्धारित समय सारिणी से चलने पर समय की बचत भी होती।