इंदौर। जिस वक्त महात्मा गांधी और कई स्वतंत्रता सेनानी देश को आजाद कराने की जद्दोजहद में थे वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति भारत का एक नया अध्याय लिख रहा था उसके साथियों ने उन्हें पागल करार कर दिया, लेकिन उसने इसकी परवाह किए बगैर भारत के उस सुनहरे भविष्य की नींव रखी जिस पर आज भारतीय सिनेमा टिका हुआ है, आज उन्ही भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फालके की पुण्यतिथि है ।
दादा साहब का असली नाम धुंढीराज गोविंद फालके था वे महाराष्ट्र के नासिक में जन्मे, धुंढीराज के पिता संस्कृत के प्रोफेसर थे। दादा साहब ने मूर्तिशिल्प, इंजीनियरिंग, ड्रॉइंग, पेंटिंग और फोटोग्राफी का अध्ययन किया। इसके बाद वर्ष-1909 में उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला और वहां पर रहकर उन्हें सिनेमाई कला से जुड़ी मशीनों को जानने का मौका मिला। दादा साहब ने वहां फिल्मों का गहन अध्ययन किया और 5 पाउंड में कैमरा खरीद कर उस पर 20 घंटे से ज्यादा समय तक अभ्यास कर फि़ल्म राजा हरिशचंद्र बनाने का अपने आप में एक बड़ा फैसला लिया। फालके ने अपनी पत्नी सरस्वती बाई के गहने तक बेच दिए। पुरूष अभिनेता भी मिल गए लेकिन तारामती का किरदार निभाने के लिए कोई अभिनेत्री नहीं मिल रही थी। दादा साहेब मुंबई के रेड लाइट एरिया में गए लेकिन महिलाओं मना कर दिया। एक गोरे-पतले लडक़े सालुंके को तारामती का किरदार अदा करने के लिए तैयार किया गया। 21 अप्रैल 1913 को यह ऐतिहासिक फिल्म दिखाई गई। 74 वर्ष की उम्र में 16 फरवरी 1944 को आज ही के दिन फिल्म जगत के जनक बाबा साहब फालके ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved