– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
यह बेहद चिंतनीय है कि केवल एक साल में बैंकिंग लोकपाल के पास बैंकों के खिलाफ 3 लाख 41 हजार से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुई हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश शिकायतें शहरी क्षेत्र से है तो क्रेडिट कार्ड और रिकवरी एजेंटों के दुर्व्यवहार को लेकर अधिक शिकायतें प्राप्त हुई हैं। विचारणीय यह भी है कि शिकायतों का सिलसिला निजी क्षेत्र के बैंकों का अधिक है। इस मामले में राहत की बात यह है कि सरकारी क्षेत्र या यों कहें कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की शिकायतें तुलनात्मक रूप से कम हैं। हालांकि एसबीआई में अन्य बैंकों के मर्जर के बाद हालात तेजी से बदले हैं और अब एसबीआई बैंक कर्मियों के व्यवहार को लेकर भी लोगों की सोच में बदलाव आया है और यह माना जा रहा है कि एसबीआई कर्मियों का व्यवहार भी रुखा होने लगा है।
चौंकाने वाली बात यह है कि ताजा आंकड़ों के अनुसार चंडीगढ़ में सबसे अधिक शिकायतें दर्ज हुई हैं। कानपुर, दिल्ली, पटना, रायपुर और रांची एक-दूसरे के पीछे ही चल रहे हैं। मेट्रो सिटीज में सबसे अधिक 97 फीसदी शिकायतें क्रेडिट कार्ड से जुड़ी होने के साथ ही 80 प्रतिशत से ज्यादा शिकायतें रिकवरी एजेंटों की है। एक बदलाव और देखने को मिला है कि अब लोग ई मेल के साथ ही ऑनलाइन शिकायतें दर्ज कराने में भी आगे आए हैं। यह सब तस्वीर आरबीआई लोकपाल कार्यालय के 2020-21 के जारी आंकड़ों के अनुसार है। यह तय माना जाना चाहिए कि 2021-22 में भी हालात लगभग वही है और कोई खास बदलाव नहीं दिखता है। सबसे गंभीर यह कि बैंकों द्वारा बिना किसी सूचना के चार्जेज के नाम से सीधे खातों से रकम काट ली जाती है। अब हालात यह हो गए हैं कि आए दिन किसी ना किसी नाम से खातों से चार्जेंज के नाम पर कटौती होने लगी है।
पिछले सालों में खासतौर से डीबीटी सिस्टम चालू होने और जनधन खातों के बाद बैंकों की पहुंच आम आदमी तक आसान हुई है। कोरोना काल ने लोगों को और अधिक ऑनलाइन पेमेंट व पेटीएम आदि एप्स के माध्यम से भुगतान को बढ़ावा मिला है। हालांकि साइबर ठगों ने इन साधनों से लोगों के खातों में सेंधमारी भी तेजी से शुरू कर दी है। कभी किसी नाम से तो कभी किसी और तरीके से बैंक खातों में साइबर ठगी के मामले दिन-प्रतिदिन आने लगे हैं तो इस तरह के समाचार भी समाचार पत्रों के स्थाई कॉलम की तरह आने लगे हैं। आए दिन समाचार पत्रों के माध्यम से पता चलता है कि लिंक या किसी और बहाने से ओटीपी प्राप्त कर खातों से पैसे निकाल कर ठगी होने लगी है। हालांकि बैंकों ने इन मामलों में सतर्कता अभियान चलाकर लोगों को सचेत किया है पर परिणाम वही ढाक के तीन पात वाले ही हैं।
एक ओर जब से बैंकों से आसानी से ऋण मिलने लगे हैं तो लोगों की आवश्यकताएं भी पूरी होने लगी है। कोई मकान के लिए तो कोई कार, व्हीकल, एलईडी या अन्य साधनों के लिए ऋण लेने लगे हैं। कोरोना के कारण लोगों की नौकरी प्रभावित हुई है तो वेतन भत्तों में कटौती के कारण आय प्रभावित हुई है। इससे ऋण की किस्त भी समय पर जमा नहीं होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वहीं बैंकों द्वारा जो रिकवरी एजेंट नियुक्त किए गए हैं उनका व्यवहार बेहद चिंताजनक होता जा रहा है। ऐन केन प्रकारेण वसूली के लिए डराने-धमकाने से लेकर कार आदि बीच रास्ते उठा ले जाना आम होता जा रहा है। बैंकों की तुलना में इस तरह की घटनाएं ज्यादातर वित्तदायी संस्थाओं द्वारा अधिक हो रहा है। पर है यह बेहद चिंतनीय। एक और यह कि पर्सनल लोन की सहज सुलभता भी लोगों को कर्जें के बोझ के नीचे दबाती जा रही है। कहने को तो रुपए पैसे की जरूरत तत्काल पूरी हो जाती है पर एक तो इसकी ब्याज दर और फिर किस्त समय पर नहीं चुकी तो दण्डनीय ब्याज दर पुराने जमाने के किसी साहूकार से कम नहीं है। ऐसे में एक बार इस चक्रव्यूह में फंसने के बाद निकलना मुश्किल हो जाता है।
एक समय था जब बैक की नौकरी सफेदपोश व प्रतिष्ठित नौकरी मानी जाती थी तो बैंक कर्मियों का व्यवहार अनुकरणीय माना जाता था। मामूली शिकायत पर तत्काल कार्यवाही होती थी तो एक सीट से दूसरी सीट पर बदलाव होता रहता था। इससे बैंक स्तर पर किसी तरह की गड़बड़ी की संभावना नहीं के बराबर होती थी। आज तो आए दिन बैंक कर्मियों द्वारा भी गबन घोटालों की खबर आम होती जा रही है। ऐसे गिने-चुने कर्मचारी ही हैं पर व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह तो उभर ही रहे हैं। समस्या की एक जड़ बैंकिंग क्षेत्र की कॉल सेंटर्स भी है। जब चाहे तब फोन करने में इन्हें महारत हासिल होने के साथ ही लुभावने वादों में लेकर लोगों को साध लेते हैं।
भले ही आज एक साल में 3 लाख 41 हजार शिकायतें बैंकिंग लोकपाल के पास दर्ज होना कम लग रही हो पर यह अपने आप में चेताने के लिए काफी है। बैंकों को भी अपनी व्यवस्था को सुधारना होगा। एक और बैंकों को पब्लिक और कस्टमर फ्रैण्डली बनना होता तो दूसरी और साइबर अपराध जैसे सेंध लगाने के तरीकों की तोड़ खोजनी होगी। बैंकों को अपनी प्रतिष्ठा स्वयं बनानी होगी तो पब्लिक ग्रिवेंस के प्रति संवेदनशील होना होगा। शिकायत एक हो या एक हजार शिकायत आखिर शिकायत ही होती है इसलिए ऐसे हालात आने से रोकने होंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज लोगों में बैंकों के प्रति विश्वास बढ़ा है अब इस विश्वास पर खरा उतरने की जिम्मेदारी भी बैंकों की हो जाती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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