हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि के बाद विजय दशमी का विशेष महत्व (special importance) होता है। इस दिन दशहरा पूजा के दौरान असत्य और अधर्म के प्रतीक रावण का पुतला जलाया जाता है। लोग पुतले की राख को घर लाते हैं। कहा जाता है कि पुतले की राख घर लाने से घर में सुख-शांति और समृद्धि (Prosperity) बनी रहती है। इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करने से सफलता प्राप्त होती है। दशहरा के पर्व पर शस्त्र पूजन का भी विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लंकापति रावण के वध और लंका विजय के प्रमाण स्वरूप राम की सेना ने लंका की राख अपने साथ लाई थी। इसी समय से रावण के पुतले की राख को घर लाने का चलन शुरू हुआ।
कहा जाता है कि सोने की लंका का निर्माण धनपति कुबेर (Dhanpati Kuber) ने की थी। इसलिए लंका की राख तिजोरी में रखने से तिजोरी में कुबेर का वास होता है। घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है। धन का आगमन होता है। इसी कारण से लोग विजय दशमी के दिन रावण के पुतले के दहन के बाद उनकी अस्थियों के अवशेष या राख लाकर घर में रखते हैं। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता।
दशहरा पर नीलकंठ दर्शन होता अति शुभकारी
धार्मिक मान्यता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ (Neelkanth) के दर्शन शुभ लाभ की प्राप्ति होती है। सारे कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दशहरे के सर्वसिद्धि मुहूर्त में शमी वृक्ष की पूजा (worship) करना या घर में शमी का पेड़ लगाकर नियमित रूप से दीपदान करना बहुत ही शुभ कारी होता है। मान्यता के अनुसार, दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को सोने का बना दिया था। तभी से शमी के पौधे को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है।
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