नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि किसी शैक्षणिक संस्थान के लिए (For an Educational Institution) केवल संविदा शिक्षण कर्मचारियों के साथ (Only with Contractual Teaching Staff) काम करना (To Work) अस्वीकार्य और अवांछनीय है (Is Unacceptable and Undesirable) ।
न्यायमूर्ति एस.के. कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि यह “चिंता का विषय” है, क्योंकि जब शिक्षण कर्मचारियों की निरंतर आमद और निकासी होती है तब संस्थानों में उत्कृष्टता की उम्मीद नहीं की जा सकती है। क्योंकि उन्हें अनुबंध के आधार पर काम पर रखा जाता है।
कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताया कि जोधपुर में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने शिक्षण कर्मचारियों को पूरी तरह से अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया है, जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार उच्च शिक्षा संस्थानों में किसी भी मामले में अनुबंध पर कर्मचारियों की संख्या 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कानून विश्वविद्यालय से “स्थिति सुधारने” के लिए कहा, जब उसे बताया गया कि हालिया संशोधन, जो अभी लागू नहीं हुए हैं, केवल 50 प्रतिशत स्थायी कर्मचारियों के लिए प्रस्तावित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि एक राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, जो कानूनी शिक्षा में अग्रणी संस्थान हैं, को केवल संविदा शिक्षकों के साथ काम करना चाहिए। इसने विश्वविद्यालय द्वारा उठाए गए इस तर्क को नहीं माना कि यह एक सहायता प्राप्त संस्थान नहीं है।
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