लखनऊ। प्रदेश में 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने का मामला गरमाया हुआ है लेकिन ऐसा होना आसान नहीं है। संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 या 1976 में इसमें किए गए संशोधन की व्याख्या या स्पष्टीकरण भी संसद के अलावा कोई और नहीं कर सकता।
इन 17 जातियों के संबंध में राज्य सरकार की ओर से भेजा गया प्रस्ताव दो बार भारत सरकार अस्वीकार कर चुकी है, इसलिए भविष्य में भेजे जाने वाले प्रस्ताव को अधिक तर्कों के साथ औचित्यपूर्ण साबित करना होगा। ताकि, मामले को संसद में ले जाया जा सके।
प्रदेश में काफी समय से ओबीसी में शामिल 17 जातियों-निषाद, केवट, मल्लाह, बिंद, कहार, कश्यप, धीमर, रैकवार, तुरैहा, बाथम, भर, राजभर, धीवर, प्रजापति, कुम्हार, मांझी व मछुआ को अनुसूचित जाति में शामिल कराना एक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। संविधान का अनुच्छेद 341 स्पष्ट तौर पर कहता है कि संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 और यथा संशोधित 1976 के तहत जारी हो चुकी अधिसूचना में कोई नाम जोड़ना या हटाना ही नहीं, उसकी किसी तरह की व्याख्या भी सिर्फ संसद ही कर सकती है।
अनुच्छेद-341 के तहत अधिसचना राष्ट्रपति जारी करते हैं और एक बार यह जारी हो जाने पर इसमें किसी तरह का बदलाव करने या स्पष्टीकरण का अधिकार राष्ट्रपति के पास भी नहीं है। उच्चपदस्थ सूत्रों के अनुसार, प्रदेश सरकार ने इन जातियों को एससी में शामिल करवाने के लिए मसौदा तैयार करने का फैसला जरूर किया है लेकिन अभी इसके औचित्य को साबित करने के लिए पुख्ता तर्क जुटाए जा रहे हैं।
सरकार के नुमाइंदे और शासन के अधिकारी भी मानते हैं कि मजबूत तर्कों के बिना प्रस्ताव केंद्र केपास भेजे जाने का मतलब होगा कि इसका एक बार और रद्द होना। आम तौर पर भारत सरकार तीसरी बार इस तरह केप्रस्तावों पर विचार करना स्वीकार नहीं करती है। इसलिए भी तर्कों के लिहाज से प्रस्ताव को सुदृढ़ किया जाना आवश्यक है।
परिभाषित करने की हो रही मांग
इन जातियों को एससी में शामिल कराने के पक्षधर लोगों का कहना है कि राष्ट्रपति की ओर से जारी 1950 की अधिसूचना में उत्तर प्रदेश की अनुसूची के क्रमांक-18 पर अंकित बेलदार, 36 पर अंकित गोंड, 53 पर अंकित मझवार, 57 पर अंकित पासी, तड़माली, क्रमांक-65 पर अंकित शिल्पकार व 66 पर अंकित तुरैहा को परिभाषित कर देने से इस समस्या का हल हो जाएगा।
17 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल करवाने के लिए ड्राफ्ट पर काम हो रहा है। इस संबंध में मंथन के बाद निश्चित प्रक्रिया पूरी की जाएगी।-असीम अरुण, समाज कल्याण मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार
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