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शिवराज को भुलाना आसान नहीं! इन वजहों से चर्चा में रहा ‘मामा’ का कार्यकाल

December 11, 2023

भोपाल: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में एक हफ्ते से चल रहा सस्पेंस सोमवार को खत्म हुआ. तय हुआ कि उज्जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे (Mohan Yadav will be the Chief Minister of Madhya Pradesh). इसी घोषणा के साथ शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) का लगातार चौथी बार से चला आ रहा मुख्यमंत्री पद का सफर खत्म (journey to the post of Chief Minister is over) हो गया. शिवराज सिंह चौहान भले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं होंगे, लेकिन उनकी छवि को भुलाना आसान नहीं होगा. मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पिछले डेढ़ दशक (decade and a half) के सफर में कई ऐसे पड़ाव आए जिसके लिए शिवराज को आगे भी जाना जाएगा.

लाडली योजना से लेकर व्यापमं घोटाले समेत कई ऐसे टर्निंग पाॅइंट रहे जिसने भाजपा को लोगों से सीधे जोड़ा तो वहीं कांग्रेस को भाजपा के वोटों में सेंध लगाने का मौका भी दिया. जानिए वो बड़ी बातें जिसके लिए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह याद किया जाएगा. 28 जनवरी, 2023 को प्रदेश में मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना को लागू किया गया. योजना के जरिए महिलाओं को हर माह 1 हजार रुपए दिए जाने लगे. बाद में इस राशि को बढ़ाकर 1250 रुपए किया गया. इससे महिलाओं के स्वास्थ्य और उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना गया. यह योजना इस बार के चुनावों में बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुई. इसके जरिए प्रदेश में एक करोड़ 31 लाख महिलाओं को नकद सहायता दी जा रही है.

संशय था की भाजपा की जीत के बाद उनके अकाउंट में पैसे आएंगे या नहीं. इसको लेकर शिवराज ने ट्विटर पर सीधा ऐलान किया. 10 दिसम्बर को उन्होंने ट्विटर में लिखा- लाडली बहना, आज 10 तारीख है…इससे तय हो गया कि योजना का लाभ मिलता रहेगा. कई ऐसे मौके आए जब शिवराज की साफसुथरी छवि के सामने व्यापमं घोटाला भारी पड़ता दिखा. कांग्रेस ने इसे हमेशा मुद्दा बनाया. समय-समय व्यापमं घोटाले का जिन्न बाहर निकला और शिवराज के लिए मुश्किलें बढ़ाईं. एक समय ऐसा भी आया जब शिवराज को विधानसभा में यह कहना पड़ा कि एक हजार से अधिक फर्जी भर्तियां हुईं. 18 जुलाई, 2013 में इस घोटाले में शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम उमा भारती समेत आरएसएस से जुड़े कई लोगों के नाम सामने आए. कई बड़े नेता और अधिकारी इसमें उलझते दिखे.


व्यापमं का गठन 1982 में हुआ. शुरुआत से ही यह विवादों में रहा. यही वजह रही कि 2016 में इसका नाम बदलकर प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड रखा गया. हालांकि बदनामी का सफर नहीं रुका. शिवराज सिंह चौहान की छवि एक नेता से ज्यादा प्रदेश के ऐसे मुखिया की रही है जिसे महिलाएं अपना भैया मानती हैं और युवा अपना मामा. उनकी यह छवि कैसे बनी इसका खुलासा खुद उन्होंने एक इंटरव्यू में किया था. शिवराज ने कहा था कि ‘मैंने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना बनाई और स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 फीसदी तक आरक्षण दिया. इसके बाद बेटियों और बेटों ने मुझे मामा कहना शुरू कर दिया और महिलाओं ने भैया.’ प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा नेता रहा हो जिसका लोगों से ऐसा इमोशनल जुड़ाव हो.

29 नवंबर 2005 को पहली बार शिवराज का नाम प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित किया. हालांकि यह पद उन्हें आसानी से नहीं मिला. यह वो साल था जब भाजपा को तय करना था कि प्रदेश के नेतृत्व की कमान किसके हाथ में होगी. एक ही नाम सबसे ज्यादा चर्चा में था वो था बाबू लाल गौर. भाजपा उनकी जगह किसी नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी, लेकिन संगठन के ज्यादातर लोगों को लगता था कि मुहर बाबू लाल के नाम पर लगेगी. दूर-दूर तक शिवराज का नाम ही नहीं था, लेकिन प्रमोद महाजन ने सबको चौंका दिया था. उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए शिवराज का नाम लिया. तमाम उथल-पुथल के बीच शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने.

3 दिसम्बर को मध्य प्रदेश में प्रचंड बहुमत के बाद फिर चर्चा हुई कि क्या अब मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज अपनी चौथी पारी शुरू करेंगे या नहीं. सोमवार को साफ हो गया है कि प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव होंगे. प्रदेश के सीहोर जिले के 5 मार्च 1959 को जन्मे शिवराज के पिता प्रेमसिंह चौहान और सुंदरबाई चौहान खेती-किसानी से जुड़े रहे हैं. यही वजह रही है उनकी छवि किसान के बेटा के तौर पर भी बनी. भोपाल की बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में गोल्ड मेडल के साथ पोस्ट ग्रेजुएशन किया. साल 1975 में भोपाल के आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल) के छात्रसंघ अध्यक्ष बने.

शुरुआती दौर में शिवराज को हमेशा आम लोगों से जुड़े मुद्दे उठाने और उस पर सवाल करने के लिए जाना गया. 1976-77 आपातकाल का विरोध किया. कई आंदाेलनों का हिस्सा बनने के बाद वो जेल भी गए. 1972 में मात्र 13 साल की उम्र में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल हो गए. 1975-82 तक एबीवीपी में कई अहम पदों पर रहे और इसके बार राजनीति में अपनी पारी शुरू की. भारतीय जनता के कई संगठनों के लिए काम करते हुए 1990 में बुधनी से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने. 1991 में विदिशा से लोकसभा का चुनाव जीता और संसद तक पहुंचे. 1996 में दोबारा सांसद बने. लेकिन इन्हें सबसे ज्यादा पहचान मिली जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

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