– दीपक कुमार त्यागी
भारत में पिछले कुछ दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों से तेजी के साथ शहरों की तरफ बड़ी आबादी का पलायन हुआ है, जिसके चलते देश में जगह-जगह अंधाधुंध अव्यवस्थित शहरीकरण हुआ है। हालांकि किसी क्षेत्र को शहरी क्षेत्र माने जाने के लिए कुछ आवश्यक मानदंड हैं, जिनके अनुसार उस क्षेत्र में 5000 या इससे अधिक व्यक्तियों की आबादी का निवास करना जरूरी है, वहां की 75 फीसदी आबादी गैर-कृषि व्यवसाय करती हो, वहीं इस क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व भी 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होना चाहिए। शहरी क्षेत्र के लिए कुछ अन्य विशेषताएँ भी होती हैं, जिसमें उस क्षेत्र में उद्योग-धंधे, व्यवस्थित आवासीय क्षेत्र, सुनियोजित ढंग से बिजली-पानी, सीवरेज की व्यवस्था और सार्वजनिक परिवहन जैसी मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था होती है, ऐसे आबादी वाले क्षेत्र को ही शहर के अंतर्गत मानते हैं।
इन सुविधाओं से आकर्षित होकर व ग्रामीण क्षेत्रों की कठिन जीवनशैली के चलते देश में पिछले कुछ दशकों में लोगों ने रोजी-रोटी व सुविधाओं की तलाश में बड़े पैमाने पर गांव से शहरों की तरफ पलायन किया है, जिसके चलते आज आलम यह है कि पुराने शहरों के अव्यवस्थित विस्तार के साथ कुकुरमुत्ते की तरह जगह-जगह अंधाधुंध वैध व अवैध शहरी क्षेत्र बन गये हैं, जिन क्षेत्रों के सभी निवासियों को गुणवत्तापूर्ण मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना हमारे सिस्टम के सामने बड़ी चुनौती बन गयी है।
वैसे, शहरीकरण से संबंधित अगर कुछ आँकड़े देखें तो साफ नजर आता है कि कभी गांवों का देश माने जाने वाला भारत अब तेजी से शहरों में बदल रहा है। इन आँकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2001 तक हमारी आबादी का 27.81 फीसदी हिस्सा शहरों में रहता था। जबकि वर्ष 2011 के आँकड़ों के अनुसार यह स्थिति बदल कर 31.16 फीसदी तक पहुंच गई और वर्ष 2018 में तेजी के साथ बदलते हुए शहरीकरण का यह आँकड़ा बढ़ कर 33.6 फीसदी तक पहुंच गया। देश में शहरी आबादी में तेजी से हुई यह बढ़ोत्तरी बेहद आश्चर्यजनक है। वहीं देश में वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार शहर-कस्बों की कुल संख्या 5,161 थी, जो कि वर्ष 2011 की जनगणना में तेजी से बढ़ कर 7,936 हो गई, वहीं अब नयी जनगणना में इस स्थिति में फिर से वृद्धि देखने को नजर आयेगी।
देखें तो संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में विश्व की करीब आधी आबादी शहरों में निवास करने लगी है, वहीं जिस तेजी के साथ भारत में गांवों से रोजी-रोटी व सुविधाओं की तलाश में पलायन अनवरत चल रहा है, उसको देखकर लगता है कि वर्ष 2050 तक हमारे देश की भी आधी आबादी शहरों-कस्बों के क्षेत्र में आकर के निवास करने लगेगी। जो यह दर्शाती है कि भारत में शहरीकरण बहुत तेजी से बढ़ रहा है। देश में तेजी के साथ होते इस शहरीकरण का सबसे दुखद पहलू यह है कि हम लोग नित-नयी समस्याओं से जूझने के चलते औसत स्तर का जीवन जीने से भी वंचित होते जा रहे हैं। आज देश में शहरी क्षेत्रों में आलम यह है गया है कि शहरी आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा लगभग 17.4 फीसदी लोग तो सुविधाओं के भारी अभाव के साथ ही झुग्गी-झोपड़ियों में जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं।
बाकी बची शहरी आबादी की बात करें तो उसके सामने भी तरह-तरह की ज्वलंत समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। देश में तेजी के साथ होते शहरीकरण के चलते ही आज देश के अधिकांश शहर अव्यवस्थित शहरीकरण के गंभीर रूप से शिकार होकर के समस्याओं के अंबार से बुरी तरह से घिर गये हैं। शहरों के मूलभूत सुविधाओं के ढांचे पर तेजी से बढ़ती शहरी आबादी का बोझ इतना अधिक बढ़ गया है, उस बोझ को उठाने में अब हमारे शहरों का सिस्टम जवाब देने लगा है। आज सिस्टम अपने शहर के निवासियों को गुणवत्तापूर्ण एक औसतन जीवन शैली देने में विफल होता जा रहा है। आज शहर के लोगों के सामने ‘सुरसा’ की तरह गंभीर समस्याएं मुंह खोल कर तैयार खड़ी हैं, शहरों का इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ती आबादी का बोझा उठाने में बार-बार विफल हो रहा है। हाल ही में दिल्ली सहित देश के कुछ अन्य भू-भागों में आयी बाढ़ भी इस स्वरूप का एक हिस्सा था।
आज शहरों में तेजी से बढ़ती आबादी को गुणवत्तापूर्ण रोजी-रोटी, शिक्षा, चिकित्सा, आवास, स्वच्छ पेयजल, सुरक्षित कचरा निस्तारण प्रबंधन, स्वच्छ वायु, प्रदूषण मुक्त आवोहवा उपलब्ध करवाना, बेहतर परिवहन व्यवस्था, पार्किंग, सीवरेज सिस्टम उपलब्ध करवाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है। सिस्टम के सामने शहरों को झुग्गी-झोपड़ियों, गंदी मलिन बस्तियों की समस्या से निजात दिलवाने की बहुत बड़ी चुनौती खड़ी है, आज शहरों में सुचारू यातायात व्यवस्था, कानून व्यवस्था, सामाजिक सुरक्षा का माहौल बनाकर रखना एक बड़ी चुनौती है। तेजी से शहरीकरण की प्रक्रिया के चलते आज संयुक्त परिवार एकाकी परिवार में बदल रहे हैं, देश के शहरों में परिवारों का आकार बहुत तेजी के साथ सिकुड़ता जा रहा है, आपसी रिश्ते व नातेदारी के संबंध बेहद कमजोर हुए हैं, जिसके चलते तेजी से विघटित होते परिवारों की अपनी ही बेहद गंभीर समस्याएं हैं, उनका निदान करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता और निर्धनता के चलते लोगों व सिस्टम के सामने विभिन्न प्रकार की गंभीर समस्याएं हर वक्त खड़ी रहती हैं। देश में शहरों के अव्यवस्थित विकास के चलते प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, जिससे चलते गंभीर प्रवृत्ति की पर्यावरण व प्रकृति से जुड़ी नित-नयी गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं। शहरीकरण के चलते गांव व शहर दोनों जगहों पर लैंगिक अनुपात में अंतर पैदा हो रहा है, जो परिवार व समाज में विभिन्न समस्याओं की जननी है।
हालांकि तेजी से होते शहरीकरण की प्रक्रिया ने देश में कुछ बेहद आवश्यक सकारात्मक बदलाव करने के कार्य भी किये हैं, शहरों में आकर लोगों की आय में वृद्धि तो हुई है। उनका परिवार पढ़ाई-लिखाई, महिलाओं व बच्चों के घरेलू व सामाजिक हालात को बेहतर करने पर ध्यान देता है, जिसके चलते शहरी क्षेत्रों में महिलाओं व बच्चों की परिस्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी बेहतर है, वहीं शहरीकरण ने तेजी के साथ सकारात्मक रूप से देश की राजनीतिक परिस्थितियों में व्यापक बदलाव करते हुए, देश के चुने हुए जनप्रतिनिधियों को आम जनमानस के प्रति जवाबदेह बनाने का एक कार्य भी किया है। लेकिन देश को विकसित बनाने के लिए अब यह आवश्यक है कि हम शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास के लिए दोनों जगह पर लोगों के जीवन को सुविधा युक्त करने का कार्य करें और दोनों जगह की आबादी में संतुलन बनाए रखने का कार्य समय रहते ही शुरू कर दें।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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