– डॉ. अनिल कुमार निगम
पाकिस्तान भारत में येन केन प्रकारेण अशांति फैलाना चाहता है। जम्मू-कश्मीर में औंधे मुंह गिरने के बाद वह हार मारने को तैयार नहीं है। अब उसने पंजाब में आतंकवाद के माध्यम से अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ दिया है। खालिस्तानी समर्थक रहे जसवंत सिंह ठेकेदार का दावा बेहद अहम है। ठेकेदार ने पूरे भरोसे के साथ कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पंजाब में सिखों को टूल की तरह इस्तेमाल कर रही है। पंजाब में आज जो कुछ भी हो रहा है, राज्य सरकार उससे निपटने में सक्षम नहीं है। जसवंत सिंह के इस बयान में तीन पहलू निहित हैं जिन पर गंभीर चिंतन आवश्यक है। पहला यह कि पाकिस्तान इस आंदोलन को हवा दे रहा है। दूसरा, पाकिस्तान सिखों का इस्तेमाल टूल किट की तरह कर रहा है और तीसरा अहम बिंदु यह है कि पंजाब की सरकार इससे निपटने में नकारा है।
जसवंत सिंह ठेकेदार वही शख्स है जो लंदन में एक अलगाववादी गुट चलाते रहे हैं। उन्होंने मार्च 2013 में लंदन में एक इंटरव्यू में कहा था कि सिख भारत में दोयम दर्जे के नागरिक हैं और उन्हें अलग देश मिलना चाहिए। जसवंत सिंह के इस बयान की पुष्टि हाल ही में घटी कुछ घटनाओं से होती है। भारत के हिंदू नेताओं और बड़े राजनेताओं की टारगेट किलिंग की साजिश की खबरें भी आई हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार इस तरह की साजिश में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। एजेंसियों का मानना है कि आईएसआई ने खालिस्तानी आतंकियों और पंजाब से फरार होकर विदेश में बैठे अपराधी तत्वों के जरिए पंजाब में हिंदू नेताओं को मारने की साजिश रची है। इसी प्रकार आईएसआई के इशारे पर विदेश में बैठे लोग खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह की साजिश कर रहे हैं। इस जनमत संग्रह में अधिसंख्य लोग भारतीय नहीं बल्कि कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के नागरिक हैं।
निस्संदेह, इसमें सच्चाई है कि पाकिस्तान सिखों को टूल किट की तरह इस्तेमाल कर रहा है। भारत से सीधी जंग में बार-बार मात खाने के बाद पाकिस्तान अब भारत से सीधा संघर्ष नहीं करना चाहता। इसलिए वह अपनी नई रणनीति के माध्यम से भारत के सीमावर्ती राज्य पंजाब में अशांति फैलाना चाहता है। वह सीमा पार से खालिस्तानी समर्थक छोटे-छोटे समूहों को फंडिंग कर रहा है ताकि वे पंजाब में माहौल खराब करने के लिए छोटी-छोटी वारदात को अंजाम दे सकें। पाकिस्तान सरकार ने इसी वर्ष जनवरी में आईएसआई के एक अधिकारी को प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट का सीईओ नियुक्त किया है। वर्ष 2020-21 किसान आंदोलन के दौरान खालिस्तान समर्थक समूहों द्वारा विदेशी फंडिंग की बात पहले ही साबित हो चुकी है। यही नहीं, पाकिस्तान पंजाब के युवाओं को भड़का और भटका कर नशे की तस्करी में भी धकेल रहा है।
यह भी बात सोलह आने सच है कि पंजाब की प्रदेश सरकार इस समस्या से निपटने में पूरी तरह से विफल है। फरवरी महीने में जिस तरीके से अमृतसर के अजनाला में बवाल हुआ था, वह सभी ने देखा था। अजनाला पुलिस स्टेशन पर भारी संख्या में खालिस्तान समर्थकों ने धावा बोल दिया था। समर्थकों के हाथ में तलवारें-बंदूक और लाठी-डंडे थे। ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकों ने अपने सदस्य लवप्रीत तूफान की रिहाई की मांग को लेकर जमकर बवाल काटा। हथियारबंद उपद्रवियों के समक्ष पुलिस लाचार दिखी। अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकों ने पुलिस स्टेशन को कब्जे में ले लिया। अमृतपाल सिंह के करीबी लवप्रीत को पुलिस ने अगवा और मारपीट के आरोप में हिरासत में लिया था, जिसकी रिहाई को लेकर हमलावर लोग दबाव बनाने में सफल रहे थे। अब पंजाब सरकार को होश आया है।
ध्यातव्य है कि लगभग एक साल से खालिस्तान आंदोलन फिर से चर्चा में आ गया है। पंजाब ने आतंकवाद का अत्यंत डरावना और काला दौर देखा है। वर्ष 1980 और 90 के दशक में पंजाब का प्रशासन और आम जनजीवन बुरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया था। सुबह घर से निकला व्यक्ति शाम को घर वापस आएगा भी, इसकी कोई गारंटी नहीं होती थी। पंजाब केसरी अखबार के संपादक लाला जगत नारायण और उनके पुत्र रमेश समेत हजारों लोगों की हत्या कर दी गई थी। सरकार बहुत ही मशक्कत के बाद पंजाब को आतंकवाद से मुक्त करा सकी थी।
भारत के समृद्ध प्रदेश पंजाब में और विदेश की धरती कनाडा, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और ब्रिटेन में खालिस्तान आंदोलन को हवा देने की साजिश चल रही है, वह भारत की संप्रभुता एवं अस्मिता पर बहुत बड़ा आघात है। इस प्रकार की गतिविधियों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि भारत सरकार इस बात को लेकर सजग तो है पर इसमें महज सजगता की आवश्यकता नहीं है बल्कि इससे निपटने के लिए उसे और अधिक आक्रामक होना पड़ेगा। चूंकि यह मामला भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता का है, इसलिए केंद्र सरकार को न केवल कानून और व्यवस्था की दृष्टि से बल्कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक तरीके से एक्सपोज करना चाहिए ताकि उसकी द्वेषपूर्ण मंशा पर अंकुश लगाया जा सके।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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