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    कोरोना से डरना और लड़ना दोनों जरूरी

  • April 09, 2021

    – ऋतुपर्ण दवे

    कोरोना घातक है, पता है। कोरोना जानलेवा है, पता है। कोरोना पास-पास रहने से फैलता है, यह भी पता है। कोरोना की कोई दवा नहीं जो फौरन फायदा पहुँचाए, पता है। कोरोना से बचाव मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ही है,यह भी पता है! हर बार कोरोना नए-नए रूप में हमारे शरीर पर अटैक करता है, पता है। कहीं कोई मर गया तो उसकी लाश पॉलीथिन में पैक होकर मिलती है और सीधे शमसान या कब्रिस्तान भिजवाई जाती है, यह भी पता है। जब सब पता है तो यह क्यों नहीं पता है कि मास्क लगाना ही अपनी सुरक्षा है। बस यही वो सवाल है जिसका न तो लोग सही जवाब दे पाते हैं और न ही खण्डन कर पाते हैं। यही कारण है कि कोरोना के बारे में सबकुछ जानकर भी लोग अनजान बन आ बैल मुझे मार वाली स्थिति खुद ही निर्मित कर रहे हैं।

    दरअसल इसके पीछे की सच्चाई यह है कि लंबे लॉकडाउन और कोरोना की पहली लहर के दौरान बेबसी का आलम झेल चुके लोग न तो कुछ समझ पाने की स्थिति में हैं और न ही कोई उन्हें सही-सही समझा पाने की स्थिति में है। कोरोना को लेकर इतने तर्क और कुतर्क हो चुके हैं कि सच में इससे संक्रमण को ही बढ़ावा मिला है वरना काफी हद इस पर भारत ने काबू पा लिया था। इस सच्चाई को भले देर से ही सही लोग मानने लगे हैं कि भारत में सही समय पर लॉकडाउन का लिया गया फैसला ही वो वजह थी जो कोरोना तब पैर पसारते-पसारते रह गया। बस चूक यहीं हुई कि एक तो एकदम से लॉकडाउन लगा और प्रवासी कामगार दूर दराज से काफी तकलीफों से लौट पाए वहीं अनलॉक होते ही वो ढिलाई हुई कि कोरोना ने दोबारा पूरी ताकत और चुनौती के साथ मात दे दी। अब जिस तेजी से लाख से सवा लाख और जल्द ही इससे भी ज्यादा मामले रोजाना आने शुरू हो गए हैं उससे स्थिति की विकटता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

    अप्रैल के दूसरे हफ्ते से देश में बन रहे नए-नए रिकॉर्ड के बाद भी यदि आँखें नहीं खुलीं तो कोई संदेह नहीं कि हम खुद महामारी को दावत दे रहे हैं। हो सकता है कि लोग समझ रहे हों कि कहीं एकबार फिर संपूर्ण लॉकडाउन जैसी स्थिति बन रही है। बीते दो-चार दिनों से देश के महानगरों से प्रवासी कामगारों के तेजी से घर वापसी भी हो रही है। यह उनकी समझदारी कहें या विवशता या नियोक्ताओं की हिदायत, इतना तो उन्हें समझ आ ही रहा है कि जान है तो जहान है। शायद इसीलिए पलायन जैसी स्थिति फिर बननी शुरू हो गई है। आँकड़े बताते हैं कि देश में महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, तामिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान यानी आधे से भी ज्यादा हिस्सों में कोरोना संक्रमण जाहिर तौर पर तो शेष में गुपचुप फैल रहा है। दो राय नहीं कि पूरा देश ही इसकी जबरदस्त चपेट में है। ऐसे में सतर्कता के साथ वैक्सीन को लेकर भी लोगों को सारे भ्रम तोड़ने होंगे और वैक्सीनेशन के लिए आगे आना होगा। भारत में वैक्सीनेशन का प्रतिशत संतोषजनक कहा जा सकता है लेकिन बीच-बीच में कई जगह से वैक्सीन खत्म होने की आती हकीकत थोड़ी चिन्ता पैदा करने वाली है। जाहिर है 130 करोड़ की आबादी में 45 वर्ष से ऊपर के लोगों का प्रतिशत भी अच्छा खासा है और सबके लिए व्यवस्था बड़ी चुनौती है। सरकार निश्चित रूप से वैक्सीन को लेकर न केवल सजग है बल्कि चिन्तित है जो हमारे देश के लिए सुकून की बात है। वैक्सीनेशन से शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के दावे भी भरोसेमंद हैं। बस मास्क उतार फेंकना ही भारी पड़ गया। अब आगे ऐसा न हो इस पर एकमत जरूरी है।

    दबी जुबान ही सही यह कहा जाने लगा है कि लॉकडाउन ही कोरोना को फैलने से रोकने का वह विकल्प था और अब भी है जिसने पहली लहर को रोके रखा। हो सकता है पुरानी सख्ती या कई तरह के हादसों के बाद इतना कड़ा फैसला ले पाने से केन्द्र बच रहा हो और राज्यों पर छोड़ रहा है। राज्य जिला प्रशासन पर छोड़ एक तरह से खुद को बरी कर रहे हैं लेकिन इससे संक्रमण थमने वाला नहीं क्योंकि काबू आया कोरोना खुद कई चरणों में अनलॉक के दौरान चेहरे से मास्क हटते ही ऐसे मुक्त हो गया जैसा कोरोना गया। लेकिन वही उतरा मास्क अब और गुल खिला रहा है। कोरोना के नित नए रूप या अटैक की तासीर को देखते हुए यह तो समझ आ गया कि मास्क ने ही कई लोगों को बचाया लेकिन उसके बाद भी मास्क न पहनना किसी बहादुरी का परिचय नहीं है। यह हालात सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया में कई जगह दिखे। कई देशों में तो मास्क और लॉकडाउन हटाने को लेकर आन्दोलन भी हुए। लेकिन जब कोरोना की कहीं दूसरी, कहीं तीसरी तो कहीं और भी अगली लहर ने कहर बरपाया तो वापस लॉकडाउन ने ही स्थिति को संभाला। सच तो यह है कि लॉकडाउन को लेकर एक केन्द्रीकृत निर्णय हो जो पूरे देश में समानता से लागू हो। राज्य, जिले, नगर के लिए अलग फैसलों में जहाँ लोगों को असहजता दिखती है वहीं हवा के जरिए फैलने वाले संक्रमण के लिए रात-दिन के अलग-अलग फैसले मजाक से लगने लगते हैं। अब वजह जो भी हो नहीं मालूम लेकिन कोरोना को लेकर वन नेशन वन डायरेक्शन जैसा फैसला ही हो जिससे इसे काबू किया जा सके।

    इसी बीच तेजी से बढ़ते मामले और बीते बुधवार को देश में अबतक के सर्वाधिक 1,26,789 आए कोरोना मामले चिन्ताजनक हैं। संख्या निश्चित रूप से कहीं ज्यादा ही होगी क्योंकि देखने में आ रहा है कि कई लोग जाँच से भी कतराने लगे हैं। ऐसे में कैसे कोरोना को मात दे पाएँगे? देशभर में तमाम अस्पतालों की कोरोना मरीजों के बढ़ने से दबाव में दिख रही तस्वीरें किसी से छुपी नहीं है। महाराष्ट्र के बीड जिले के अम्बाजोगई से सामने आई एक तस्वीर ने न केवल बेहद चौंका दिया बल्कि कोरोना के खौफ से वाकिफ भी करा दिया, जहां नगर के श्मशान में लोगों ने अंतिम संस्कार का विरोध किया तो 2 किमी दूर एक अस्थाई श्मशान में एक ही चिता पर कोरोना से मृत आठ लोगों के शवों का मजबूरन एक साथ अंतिम संस्कार किया गया। कोरोना के लेकर सारे सच सामने हैं, तस्वीरें गवाही दे रही हैं। आँकड़े सच से सामना करा रहे हैं और हम हैं कि जानते हुए भी मानते नहीं। मेरा नहीं, देश का नहीं, दुनिया का नहीं, इँसानियत का सवाल है कोरोना को मात देना है या नहीं? तो फिर कोरना को देना है मात तो पहनें मास्क और बनाएँ आपसी दूरी दो हाथ।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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