नई दिल्ली (New Dehli)। इल्सा (Ilsa) यानी इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी। इसका काम अपने चिप व सेंसरों (sensors) से चंद्रमा पर होने वाली भूकंपीय (seismic) गतिविधियों को मापना (measure) है। प्रज्ञान रोवर की तरह इल्सा भी लैंडर विक्रम (lander vikram) से बाहर निकाल कर काम करेगा।
चंद्रयान-3 के साथ भेजा गया रोवर प्रज्ञान अपने लैंडर विक्रम से बाहर आ गया है। इसने चंद्रमा पर चहलकदमी की, जिसे इसरो ने ‘चंद्रमा पर भारत की चहलकदमी’ बताया। कहा, वह जल्द नए अपडेट जारी करेगा। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद यह सवाल पूछे जा रहे हैं कि इसके साथ भेजे सात उपकरण क्या काम करेंगे, इनसे हमें क्या फायदे होंगे और भविष्य के अभियानों को क्या मदद मिलेगी? इसरो ने दक्षिणी ध्रुव पर उतारे 1,752 किलो वजनी लैंडर विक्रम में चार प्रमुख उपकरण लगाए हैं। इसमें 26 किलो का प्रज्ञान रोवर भी था, जिसमें दो और उपकरण हैं, तो वहीं एक उपकरण चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे प्रोपल्शन मॉड्यूल में है। इनके काम, उपयोग और फायदों के बारे में विस्तार से जानें…
शेप : पृथ्वी के बाहर जीवन की खोज में आएगा काम
पृथ्वी के बाहर जीवन की तलाश खगोल विज्ञान का सबसे रोचक विषय है। इसी में मदद करेगा, चंद्रयान-3 के साथ भेजा गया शेप यानी स्पेक्ट्रो-पोलरीमेट्री ऑफ हेबिटेबल प्लेनेट अर्थ। यह प्रोपल्शन मॉड्यूल में लगा इकलौता उपकरण है। इसका काम पृथ्वी से करीब चार लाख किमी दूर चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी से जुड़ी जानकारियां जुटाना है, जिन्हें पृथ्वी के उपग्रह बेहतर ढंग से नहीं दे पाते। शेप हमें उन ग्रहों के बारे में भी बताएगा, जो पृथ्वी की तरह हो सकते हैं, यानी जहां जीवन हो सकता है।
शेप पृथ्वी से आ रही रोशनी व तरंगों से विश्लेषण करेगा ताकि पुख्ता तौर पर बता सके कि अगर उसे किसी ग्रह पर जीवन की संभावना नजर आ रही है, या जो ग्रह पृथ्वी की तरह दिख रहा है, क्या वहां सच में जीवन है? या फिर क्या मानव वहां जीवन को बसा सकता है? इससे कई अहम रहस्य खुलेंगे।
इल्सा : कांपते क्यों हो? चंद्रमा से पूछेगा
इल्सा यानी इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी। इसका काम अपने चिप व सेंसरों से चंद्रमा पर होने वाली भूकंपीय गतिविधियों को मापना है। प्रज्ञान रोवर की तरह इल्सा भी लैंडर विक्रम से बाहर निकाल कर काम करेगा। हालांकि, यह रोवर की तरह चलेगा नहीं, केवल वायर के जरिये विक्रम से जुड़ा रहेगा। चंद्रमा पर अगर भूकंप आते भी हैं तो हम इनके बारे में क्यों जानें? वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप हमें चंद्रमा के भीतर की संरचना को जानने में मदद कर सकते हैं। यह चंद्रमा पर मानव बस्ती बसाने के कई देशों को संभावित खतरों के बारे में बताएगा।
रंभा-एलपी : पदार्थ के चौथे रूप का अध्ययन
यह नाम भले अप्सरा जैसा है, लेकिन लैंडर में लगे इस रेडियो एनाटमी ऑफ मून बाउंड हाइपर सेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमोस्फीयर का काम चंद्रमा पर प्लाज्मा का अध्ययन है। द्रव्य, गैस व ठोस के बाद किसी पदार्थ की चौथी अवस्था प्लाज्मा है। बहुत ज्यादा ताप मिलने पर पदार्थ के इलेक्ट्रॉन अलग हो जाते हैं, वह आवेशित कणों में बदल जाता है, यही प्लाज्मा है। सूर्य से चंद्रमा पर यह प्लाज्मा लगातार आता रहता है क्योंकि उसके पास न अपना वायुमंडल है न चुंबकीय क्षेत्र। यह छड़ नुमा उपकरण हमें चंद्रमा पर घातक प्लाज्मा और विकिरणों की पहचान व उनकी मात्रा का अनुमान देगा। हम समझ पाएंगे कि अगर भविष्य में मानव को यहां पहुंचाने की जरूरत पड़ी तो क्या सुरक्षा इंतजाम करने होंगे।
चास्टे : चांद के तापमान और गर्मी का असर परखेगा
चांद पर कितनी गर्मी है? तापमान में कितना उतार चढ़ाव आते हैं? यह जानकारियां हमें लैंडर विक्रम में लगा चंद्रा सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट यानी चास्टे देगा। इस उपकरण का एक छोटा सिरा चंद्रमा की सतह में घोंपा जाएगा, जैसे हम तापमान मापने के लिए मुंह में थर्मामीटर लगाते हैं। इस दौरान चास्टे परीक्षण भी करेगा, वह अपने चंद्रमा की सतह को गर्म करेगा। इससे पता चलेगा कि सतह पर गर्मी का क्या असर होता है? चंद्रमा पर मानव बस्ती बसाने का वैज्ञानिकों का दूरगामी लक्ष्य है। इस काम में सतह के तापमान को गहराई से परखना जरूरी है। भारत पहला देश है जो चंद्रमा की सतह पर जाकर यह डाटा दर्ज कर रहा है।
एलआरए : चंद्रमा पर लेजर रिफ्लेक्शन होगा
नासा का उपकरण लेजर रेट्रो-रिफ्लेक्टर ऐरे लैंडर में भेजा गया है। इस उपकरण में लगे 8 रेट्रो-रिफ्लेक्टर पृथ्वी से चंद्रमा पर भेजी गई शक्तिशाली लेजर किरण को वापस पृथ्वी पर परावर्तित करेंगे। चंद्र सतह पर यह छठवां एलआरए है, इससे पहले यहां अमेरिका तीन बार और रूस दो बार एलआरए पहुंचा चुके हैं। चीन का कोई एलआरए चंद्रमा पर नहीं है। इस्राइली कंपनियां इस काम में नाकाम रहीं। विशिष्ट वैज्ञानिक संस्थान उच्च शक्ति की लेजर एक तय समय और चंद्रमा व पृथ्वी की तय स्थिति में चंद्रमा पर लेजर भेजते हैं, तो एलआरए वापस पृथ्वी पर लौटा देगा। इसे किसी निश्चित समय पर पृथ्वी व चंद्रमा की दूरी की सही गणना हो पाएगी।
एपीएक्सएस रासायनिक संरचना के बारे में बताएगा
रोवर में लगा अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर का काम चंद्र सतह की रासायनिक संरचना जानना है। इसमें दुर्लभ रेडियो एक्टिव तत्व क्यूरियम 244 लगा है। यह एक्स-रे व अल्फा कण की रेडिएशन छोड़ता है। चांद पर मौजूद मैग्नीशियम, कैल्शियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, आयरन, टाइटेनियम की पहचान हो सकेगी।
लिब्स लेजर से सतह को जलाएगा
लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप भी रोवर में लगा है। इसके जरिये उच्च ऊर्जा वाली लेजर किरणें चंद्रमा की सतह पर छोड़ीं जाएंगी। यह चंद्र मिट्टी या चट्टानों को तेजी से गर्म करेगा, इससे मिले रासायनिक डाटा को दर्ज करेगा। इससे चंद्र सतह पर मौजूद तत्वों, मात्रा व गुणवत्ता का विश्लेषण होगा। यह दुर्लभ खनिजों की पहचान में मदद करेगा।
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