नई दिल्ली (New Delhi) । पूरा भारत (India) देश अपने मून मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की सफल लॉन्चिंग की आस में बैठा हुआ है. चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग (soft landing) से हर किसी को उम्मीद है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) चंद्रयान-3 से जुड़ पल-पल की जानकारी शेयर कर रहा है. ये मिशन भारत के लिए काफी अहम है. क्योंकि इससे पूर्व दो मिशन फेल हो गए थे. जो कि भारत के लिए एक बड़ा झटका था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसरो ने साल 2019 के चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग से पहले एक और चंद्रयान भेजा था, जिसे जानबूझकर नष्ट कर दिया गया था.
2008 में भारत ने चांद पर भेजा था एक अंतरिक्ष यान
एक रिपोर्ट के मुताबिक दरअसल, इससे पहले नवंबर, 2008 को इसरो ने जानबूझकर चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यान को नष्ट कर दिया था. अपने मिशन के तहत भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान मिशन लॉन्च करने के साथ ही भारत ने दुनिया को पृथ्वी की कक्षा के बाहर, किसी अन्य खगोलीय पिंड पर मिशन भेजने की अपनी क्षमताओं की घोषणा कर दी थी. तब तक केवल चार अन्य देश चंद्र दुनिया में एक मिशन भेजने में कामयाब रहे थे. उन चार देशों में अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान शामिल था. भारत पांचवें स्थान पर रहा. इसरो को भले ही अपने यान को जानबूझकर नष्ट करना पड़ा था. लेकिन भारत के चंद्रयान मिशन के जरिए चांद की सतह पर पानी पाया गया और फिर भारत का भी नाम इस ऐतिहासिक लिस्ट में शामिल हो गया.
जानबूझकर यान को किया गया था नष्ट
अंतरिक्ष यान के अंदर 32 किलोग्राम का एक जांच छिपा हुआ था, जिसका एकमात्र उद्देश्य यान को दुर्घटनाग्रस्त करना था. उन्होंने इसे मून इम्पैक्ट प्रोब कहा. 17 नवंबर, 2008 की रात को लगभग 8:06 बजे, इसरो के मिशन नियंत्रण में बैठे इंजीनियरों ने चंद्रमा प्रभाव जांच को नष्ट करने वाले आदेशों को मंजूर किया. कुछ ही घंटों में चांद की खामोश दुनिया धमाके को महसूस करने वाली थी. चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई से, मून इम्पैक्ट प्रोब ने अपनी अंतिम यात्रा शुरू की. जैसे ही जांच चंद्रयान ऑर्बिटर से दूर जाने लगे, इसके ऑनबोर्ड स्पिन-अप रॉकेट सक्रिय हो गए और चंद्रमा की ओर जाने वाले मिशन का मार्गदर्शन करने लगे.
अंतरिक्ष यान में लगे डिवाइस ने दी कई अहम जानकारी
ये इंजन इसे तेज करने के लिए नहीं, बल्कि इसे धीमा करने के लिए, और इसे पिच-परफेक्ट क्रैश के लिए कर रहे थे. चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ते हुए, जूते के डिब्बे के आकार का जांच उपकरण सिर्फ धातु का एक टुकड़ा नहीं था, बल्कि इसके अंदर तीन उपकरणों को ले जाने के लिए एक जटिल रूप से डिजाइन की गई मशीन थी. एक वीडियो इमेजिंग सिस्टम, एक रडार अल्टीमीटर और एक मास स्पेक्ट्रोमीटर ताकि वे इसरो को बता सकें कि वे क्या खोजने वाले हैं. जबकि वीडियो इमेजिंग प्रणाली को तस्वीरें लेने और उन्हें बेंगलुरु वापस भेजने के लिए डिजाइन किया गया था.
2008 की कोशिश ने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 की रखी नींव
जैसे ही सतह ऊपर आने लगी, अंदर पैक किए गए उपकरणों ने ऑर्बिटर के ऊपरी हिस्से में डेटा संचारित करना शुरू कर दिया, जिसे इसकी रीडआउट मेमोरी में रिकॉर्ड किया गया और बाद में गहन विश्लेषण के लिए भारत भेजा गया. चंद्रयान से निकलने के लगभग 25 मिनट बाद, मून इम्पैक्ट प्रोब को अपने भाग्य का सामना करना पड़ा. चंद्रमा की सतह पर एक कठिन लैंडिंग करनी पड़ी. यह मिशन बहुत मुश्किलों से पूरा किया गया. इसरो ने एक ऐसे अंतरिक्ष यान को दूसरी दुनिया में दुर्घटनाग्रस्त करके इतिहास रच दिया, जो प्राचीन काल से मानव प्रजाति के लिए एक पहेली बनी हुई थी. लेकिन इससे क्या हासिल हुआ? इन तीन उपकरणों का डेटा संभावित रूप से 2019 में चंद्रयान -2 और चंद्रयान -3 मिशन की नींव रखी.
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