जेरुसलम (Jerusalem)। इस्राइल ( Israel) कहे जाने वाले लेवंट (पश्चिमी एशिया व पूर्वी भूमध्य क्षेत्र) में 10 हजार से 4.5 हजार ईसा पूर्व (4.5 thousand BC) मानव बस्तियों के साक्ष्य मिलते हैं। कांस्य व लौह युग (Bronze and Iron Age) में इन इलाकों में मिस्र के अधीन कैनाइट राज्य बने। इन कैनाइट लोगों (Cainite people) की एक शाखा से यहूदी समुदाय (jewish community) की उत्पति मानी जाती है, जो एक ईश्वरवादी थे। यहूदियों के वंशजों ने 900 वर्ष ईसा पूर्व यहां राज्य स्थापित किया, इसे यहूदियों का संयुक्त राज्य भी कहा गया है।
लौह युग में ही फिलिस्टाइन नामक एक और समुदाय के इसी क्षेत्र में रहने की जानकारी कुछ पुरातत्ववेत्ता देते हैं। इनकी उत्पत्ति ग्रीक लोगों से मानी जाती है। वे कई ईश्वरों में विश्वास करते थे। इसी वजह से एकेश्वरवादी यहूदियों से उनके संघर्ष होते। फिलिस्टाइन राज्य को मिस्र साम्राज्य ने खत्म किया, जो लोग बचे वे स्थानीय समुदायों में घुल-मिल गए। वहीं नव-असीरियाई और नव-बेबिलोनियाई साम्राज्य के हमलों से परेशान हो यहूदियों को कई बार पलायन करने पड़े।
विवाद की नई शुरुआत
साल 1917 में ब्रिटिश अफसर आर्थर बाल्फोर ने कहा कि ब्रिटेन पराजित ओटोमन साम्राज्य से छीने क्षेत्र में यहूदियों के लिए राष्ट्र बनाएगा। अरब मूल के नागरिक इस क्षेत्र को फिलिस्तीन मानते थे तो यहूदियों को इसमें अपनी हजारों वर्षों की संस्कृति को फिर से जीवित करने का अवसर दिख रहा था। इससे फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद को हवा मिली। दंगों और हिंसा से नया संघर्ष शुरू हुआ। यूरोप में नाजियों द्वारा यहूदियों का नरसंहार हुआ, जो बचे, वे इस्राइल पहुंचने लगे। अरब नागरिकों ने विरोध किया, लेकिन कमजोर अरब सत्ता इसे रोक नहीं सकी।
यूएन का प्रस्ताव और इस्राइल की स्थापना
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 29 नवंबर 1947 को प्रस्ताव पारित किया कि फिलिस्तीन का बंटवारा अरब राज्य, यहूदी राज्य व जरुशलम शहर में होगा। परिणाम, अरब और यहूदियों में हिंसा का नया दौर। अरब कमजोर हो चुके थे। यहूदियों ने 14 मई 1948 को इस्राइल राष्ट्र की घोषणा कर दी। इसी वर्ष अरब-इस्राइल युद्ध हुआ, जिसमें 15 हजार लोग मारे गए। 1956 में दूसरा अरब-इस्राइल युद्ध हुआ, जिसमें इस्राइल ने गाजा पट्टी पर पूरी तरह कब्जा कर फिलिस्तीन सरकार को निर्वासित कर दिया। हालांकि बाद में कब्जा छोड़ उसने फिलिस्तीन सरकार फिर से स्थापित की।
शांति के प्रयास विफल हुए
1993 में ओस्लो शांति समझौता, 2000 में कैंप डेविड समझौता, 2001 में ताबा समिट, 2007 में अरब शांति पहल, आदि से संघर्ष रोकने के प्रयास हुए, लेकिन विफल रहे। प्रमुख वजह हमास जैसे आतंकी संगठन हैं, जो इस्राइली सेना व नागरिकों पर हमले करते हैं। 1881 में यहूदियों ने यरुशलम व आसपास पहुंचना शुरू कर दिया। प्रथम विश्वयुद्ध यहूदियों के लिए आदर्श हालात लेकर आया, 1917-18 में अंग्रेज सरकार ने यहूदियों के सपने को समर्थन दिया। ब्रिटेन ने दिसंबर 1917 में यरुशलम पर कब्जा किया, ओटोमन साम्राज्य का क्षेत्र से नियंत्रण खत्म हुआ।
6 दिन का युद्ध और उसके बाद
तीसरा अरब-इस्राइल युद्ध इस्राइल ने एकतरफा जीता। 5 से 10 जून 1967 तक चले इस 6 दिन के युद्ध के बाद वह एक ताकतवर देश बन चुका था। उसने पहले हमले कर पड़ोसी देशों की वायु शक्ति को तकरीबन पूरी तरह खत्म कर दिया था। उसने काफी भूभाग मिस्र से अपने कब्जे में लिया, जॉर्डन और सीरिया को भी शांति समझौते करने पड़े। युद्ध में 20 हजार अरब और करीब 1 हजार इस्राइली मारे गए। विवादित वेस्ट बैंक और गाजा में 2013 में 1.20 करोड़ लोग रह रहे थे, इनमें दोनों समुदायों की आबादी करीब आधी-आधी है। आबादी को यहूदी और अरब क्षेत्रों में बांटा गया है, लेकिन हिंसा और दंगे होते रहते हैं।
इतिहास
539 ईसा पूर्व फारसी साम्राज्य के शासक साइरस महान ने यहूदियों को अपने राज्य लौटने, वहां खुद का शासन करने और अपने मंदिर बनाने की अनुमति दी। अगले करीब 600 साल उनके लिए अनुकूल रहे। लेकिन बाद में सिकंदर, रोमनों और बाइजेंटाइन साम्राज्य ने यहूदियों को जीता, उनके शहर जरुशलम व मंदिरों को तोड़ा। 5वीं शताब्दी तक इस क्षेत्र में ईसाई धर्म बहुसंख्यक हो गया, अधिकतर यहूदियों ने पलायन किया। सातवीं शताब्दी में अगले 600 साल के लिए इस्लामी खलीफा का शासन आया। 11वीं शताब्दी में मुस्लिम व ईसाइयों में धर्म युद्ध शुरू हुए, जिसका अहम लक्ष्य पवित्र जरुशलम को इस्लामी शासन से मुक्त करवाना था। साल 1516 में ओटोमन साम्राज्य ने क्षेत्र पर कब्जा किया। तब तक युद्धों और विकट हालात की वजह से फारसी समय में 10 लाख के मुकाबले आबादी 3 लाख रह गई, लेकिन यहूदियों की मौजूदगी बनी रही।
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