वाशिंगटन। अपनी जीत के तुरंत बाद दुनिया में टैरिफ वॉर (Tariff War) छेड़ने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने अब अपना ध्यान अमेरिकी डॉलर पर केंद्रित कर दिया है। उनका मानना है कि अमेरिका के मैन्युफैक्चरिंग क्राइसेस (Manufacturing Crisis) के लिए मजबूत डॉलर दोषी है। अब वह इसे ठीक करना चाहते हैं। अमेरिकी पूंजी बाजारों की मजबूती ने निवेशकों के लिए डॉलर को एक सुरक्षित दांव बना दिया है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि दुनिया के केंद्रीय बैंकों के भंडारों में 59% हिस्सा डॉलर का है। यह नहीं, वैश्विक व्यापार का लगभग आधा हिस्सा अमेरिकी डॉलर के जरिये होता है।
इस साल डॉलर इंडेक्स 5.7% गिरा
जनवरी के मध्य में, ब्लूमबर्ग डॉलर इंडेक्स ने 109.96 के कई साल के शिखर को छुआ था। जनवरी से अब तक, डॉलर इंडेक्स 5.7% गिरकर 103.72 पर आ गया है। इसके कारणों को तलाशना बहुत मुश्किल नहीं है। ट्रंप की टैरिफ थोपने वाली घोषणाओं ने अमेरिकी उपभोक्ता खर्च को खासा नुकसान पहुंचाया है। वहां की अर्थव्यवस्था धीमी हो गई है और मंदी के बादल छाने लगें हैं। श्रम बाजार में भी काफी गिरावट आई है। अब बाजारों को उम्मीद है कि फेडरल रिजर्व जल्द ही ब्याज दरों में कटौती करेगा।
वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी विदेशी खिलाड़ियों द्वारा अमेरिकी संपत्ति खरीद पर शुल्क लगाने की बात कर रहे हैं, जिसमें लोकप्रिय ट्रेजरी बांड भी शामिल हैं। उनका तर्क है कि इससे अमेरिकी ट्रेजरी बांड अनाकर्षक हो जाएंगे और डॉलर कमजोर हो जाएगा।
यही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1985 के ‘प्लाजा समझौते’ की तरह ‘मार-ए-लागो समझौते’ पर विचार किया जा रहा है। सितंबर 1985 में, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और पश्चिम जर्मनी के अधिकारियों ने न्यूयॉर्क में मुलाकात की और डॉलर के पांच साल में 50% बढ़ने के बाद नॉन-यूएस डॉलर करेंसी के मूल्य को व्यवस्थित करने पर सहमति व्यक्त की। इसके चलते डॉलर में जल्द ही भारी गिरावट आ गई थी।
मौजूदा माहौल ज्यादा चुनौतीपूर्ण
टैरिफ थोपने की अपनी इकतरफा रणनीति के साथ ट्रंप ने अपने सहयोगियों के साथ सहयोग पाने के अवसरों पर रोक लगा दी है। सहयोगी 1985 की तरह मिलकर संकट का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं।
कमजोर डॉलर से भारत को होगा फायदा
आज इस समीकरण में चीन भी शामिल है। चीन अपनी करेंसी को मजबूत नहीं होने देगा और अपने निर्यात को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। भारत जैसे उभरते बाजारों को कमजोर डॉलर से लाभ होता है, क्योंकि उनके आयात सस्ते हो जाते हैं और पूंजी प्रवाह बढ़ जाता है। लेकिन उनके पास ट्रंप की मदद करने के लिए ताकत नहीं है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि डॉलर को कमजोर करने का कोई भी कृत्रिम कदम महंगा और अस्थिरता पैदा करने वाला होगा।
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