मध्यप्रदेश के ही उपचुनावों की तर्ज़ पर होते नज़र आ रहे है ,२०२१ में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव भी। जैसे मध्यप्रदेश में सिंधिया के साथ उनके २२ विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और धीरे धीरे बाग़ी विधायकों की संख्या २५ तक भी पहुँची थी ठीक वैसे ही पश्चिम बंगाल(West Bengal) में ये व्यवस्था शुरू हो चुकी है ,पहले मंत्री अपने पद से इस्तीफ़ा दिया जा रहा है फिर इंतज़ार करते है की उनकी पार्टी का कोई बड़ा नेता उनसे बात करके उनकी असंतुष्टि को दूर करेगा और नहीं कर पाया तो भाजपा (BJP) तो सबका सहारा बन के खड़ी ही है।
जैसे हाल ही में वहाँ के MLA मिहिर गोस्वामी ने यही किया है ,पहले पद छोड़ा फिर पार्टी और अब आकर बीजेपी से जुड़ चुके है और उनके बाद अब दिग्गज नेता सुवेंदु अधिकारी जो कि टीएमसी के चुनिंदा नेताओ में से एक रहे है उन्होंने ने भी पद छोड़ दिए है बस उनके पार्टी छोड़ने का इंतज़ार किया जा रहा है।
आज कल राजनीति में जैसे ही चुनाव नज़दीक आते है , बिना सोचे चाहे जो राज्य हो,चाहे किसी भी सरकार हो पार्टियों की कार्यशैली में दो ही चीज़ें देखने को मिलती है पहली ये की वहाँ की जो भी वर्तमान सरकार है यदि वो bjp नहीं है तो उसको मिलकर कैसे भी bjp की बनवाने की कोशिश करना और और यहाँ तक की मध्यप्रदेश में तो बनी बनाई सरकार के कार्यकाल में बिना चुनाव के चुनाव की स्थिति बना दी गयी क्यूँकि bjp को सत्ता में वापस आना था और दूसरी चीज़ ये की किसी भी नेता को ,चाहे जितने भी साल हो गए अपनी पार्टी के साथ वो अपना ईमान,अपना समर्पण व अपना समय सब ताक पर रखकर इस जद्दोजहत में लगा रहता है कि जैसे ही कोई दूसरी पार्टी अच्छा ऑफ़र देगी तो पिछली को ये बोलकर छोड़ देंगे की उसने वो सम्मान नहीं दिया जो उसको देना चाहिए था। बस ऐसे ही चलाई जा रही है ,हमारे देश में राजनीति और यही तो है नए दौर की नयी राजनीति अब आगे देखना यह है कि west Bengal में कितने और नेता TMC को गवाने है और किसी दूसरी पार्टी को पाने।
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