नई दिल्ली। जब पूरी दुनिया मंदी (recession) की चपेट में आने वाली हो, तो भारत उससे कैसे अछूता रह सकता है? हालांकि जानकार एक बात जरूर बताते हैं कि भारत (India) पर वैसा असर नहीं होगा जैसा बाकी दुनिया (World) में देखा जाएगा या देखा जा रहा है. भारत में कुछ संकेत इस बात की ओर इशारा देने लगे हैं कि भविष्य में स्थिति बिगड़ सकती है. जैसे, वस्तुओं के निर्यात में पिछले साल दर्ज हुई तेजी इस साल सितंबर में थमी है. सितंबर में वस्तुओं के निर्यात में 3.5 प्रतिशत की गिरावट आई है.
दूसरा बड़ा संकेत ये है कि मौजूदा वित्त वर्ष के पहले छह महीने में व्यापार घाटा करीब दोगुना हो गया है. तीसरा संकेत देखें तो जुलाई में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) की वृद्धि सुस्त पड़कर 2.4 प्रतिशत रही है. चौथा, अगस्त में बुनियादी उद्योग की वृद्धि नौ माह के निचले स्तर 3.3 प्रतिशत पर आ गई है. इसके अलावा ऊर्जा क्षेत्र की महंगाई को भी ले सकते हैं. दिनों दिन ईंधन और गैसों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं जिससे उलटा असर आर्थिक वृद्धि दर पर देखा जा सकता है.
मंदी की आहट के बीच देश के औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) में सुस्ती देखी जा रही है. जुलाई के दौरान औद्योगिक उत्पादन (Industrial Production) में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. एक साल पहले जुलाई, 2021 के दौरान आईआईपी में 11.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. पिछले एक साल के हिसाब से इस वृद्धि में बड़ी सुस्ती देखी जा रही है. आंकड़ों के अनुसार, जुलाई, 2022 में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का उत्पादन 3.2 प्रतिशत बढ़ा. इसके अलावा खनन उत्पादन में जुलाई के दौरान 3.3 प्रतिशत की गिरावट, जबकि बिजली उत्पादन में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
अंतिम फैक्टर ऊर्जा क्षेत्र की महंगाई को देख सकते हैं. देश-दुनिया में ईंधन के रेट बढ़ रहे हैं. खासकर कच्चे तेल के भाव पहले की तुलना में अभी भले कुछ कम हो, लेकिन इसकी महंगाई चरम पर देखी जा रही है. इधर घरेलू स्तर पर भी यही हाल है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक देश में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में अगस्त 2022 में क्रमशः 3.3 परसेंट और 0.9 परसेंट की गिरावट दर्ज की गई. एक तरफ गिरावट तो दूसरी ओर नेचुरल गैस के दामों में उछाल देखा जा रहा है. सीएनजी और पीएनजी के दाम में लगातार बढ़ोतरी जारी है.
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