नई दिल्ली: हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका यानी पीएलआई दाखिल हुई, जिसके बाद कोर्ट रूम में एक ही सवाल था कि क्या आप यह अपराध नहीं रहा. असल में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि अननेचुरल सेक्स और सोडोमी जैसे अपराध नए कानून बीएनस के तहत अपराध बने रहेंगे. क्योंकि इस अपराध को लेकर नए कानून में कोई धारा नहीं है. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इन अपराधों के पीड़ित के लिए कानूनी उपाय की अनुपस्थिति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह प्रावधान कहां है? कोई प्रावधान ही नहीं है. कुछ तो होना चाहिए. अब सवाल यह है कि अगर कोई अपराध नहीं है और अगर इसे हटा दिया जाता है, तो क्या यह अपराध है?
इस याचिका को हाईकोर्ट में फाइल करने वाले वकील गन्तव्य गुलाटी का कहना है कि नए कानून BNS में IPC की पुरानी धारा 377 वाला प्रावधान ही नहीं है. इसके तहत पहले अप्राकृतिक यौन संबंध कवर होते थे. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में दिये अपने ऐतिहासिक फैसले में 377 को आपसी सहमति से बने अप्राकृतिक संबंधों के लिए आपराधिक कृत्य के दायरे से बाहर कर दिया था, लेकिन अगर कोई जबरदस्ती ऐसे संबंध बनाता है तो उसके मामले में क्या होगा?
उनके कानूनी अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है. इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये जानना चाहा कि क्या BNS में जबरन बनाए गए अप्राकृतिक यौन संबंधों के लिए कोई धारा है या अब ऐसा प्रतीत होता है कि इस कानून की जरूरत नहीं है. कोर्ट में मौजूद केंद्र सरकार के वकील अनुराग अहलूवालिया ने कहा कि इस मुद्दे पर उन्हें दिशा निर्देश लेने के लिए समय दिया जाए, जिसके बाद कोर्ट ने 27 अगस्त की तारीख तय कर दी है.
वहीं क्रिमिनल मामलों के जानकार वकील अमित सहानी का कहना है कि section 377 के रिपील होने के बाद ऐसा कोई प्रावधान नहीं है की इस बारे सजा दी जा सके. पर अगर अप्राकृतिक संबंध किसी पुरुष द्वारा महिला के साथ बनाए जाते है तो ऐसे अपराध बीएनएस की धारा 63 में कवर होते है और दोषी को बीएनएस की धारा 64 के तहत सजा दी जा सकती है और अगर अप्राकृतिक संबंध किसी बच्चे के साथ बनाए जाते है तो उन्हें उपरोक्त धाराओं के साथ साथ पॉक्सो में भी सजा दी जा सकती है.
सवाल यह है कि ऐसे मामले जिसमे अप्राकृतिक संबंध सेम सेक्स व्यस्कों के बीच होता है त्ज्ञै ऐसे मामले बीएनएस के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आते और अगर ऐसे मामले सेम सेक्स में होते है और जिनमे विक्टिम माइनर है तो पॉक्सो एक्ट के तहत सजा मिल सकती है. वकील अरुण राघव का कहना है कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि तब तक उन मामलों का क्या होगा? कानून में धारा नहीं होते के चलते ऐसे मामलों पुलिस से पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा. अब देखना होगा कि केन्द्र सरकार का इस मामले में जवाब क्या होगा. सरकार के जवाब के बाद पीड़ित अदालत का भी दरवाजा भी खटखटा सकेगा ताकि उसे इंसाफ मिल सके.
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि मात्रा हम स्पष्ट रूप से तय नहीं कर सकते हैं, लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध जो बिना सहमति के है, उसका ध्यान विधायिका को रखना चाहिए. इस पर केंद्र सरकार के वकील को जवाब दाखिल करने के लिए 28 अगस्त का समय दिया गया है. हाईकोर्ट वकील गन्तव्य गुलाटी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें बीएनएस कानून में सेक्शन नहीं होने की वजह से ‘आवश्यक कानूनी कमी’ को दूर करने की मांग की गई थी.
याचिकाकर्ता की मांग है कि आईपीसी की धारा 377 की तर्ज पर कोई समान अपराध या दंडात्मक प्रावधान नहीं है. गुलाटी ने बताया कि आईपीसी की धारा 377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के बाद से दो वयस्कों के बीच गैर-सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध, नाबालिगों के खिलाफ यौन गतिविधियों और पशुता के लिए सजा बरकरार रखी गई है.
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