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    वक्फ बोर्ड संशोधन बिल JPC को भेजना BJP की रणनीति है या विपक्ष के आगे हथियार डालना?

  • August 09, 2024

    नई दिल्ली. मोदी सरकार (modi government) ने गुरुवार को वक्फ बोर्ड एक्ट (Wakf Board Act) में बदलाव के लिए संशोधन विधेयक लोकसभा (Lok Sabha) में पेश किया. सरकार पहले से ही जानती थी कि इस बिल को लेकर सदन में काफी हंगामा होने वाला है. विपक्ष (opposition) ने जमकर हंगामा किया तो वहीं सत्तापक्ष की तरफ से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू (Minister Kiren Rijiju) ने बिल के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने तमाम तर्कों और उदाहरणों को देकर बताया कि क्यों इस विधेयक को लाना जरूरी है.भारतीय जनता पार्टी को इस मुद्दे पर अपने दोनों बड़े सहयोगियों जनता दल यू (JDU) और तेलुगुदेशम पार्टी (TDP) का भी साथ मिला.



    सरकार चाहती तो ये बिल दोनों सदनों से पास करा सकती थी. पर इसके बावजूद अचानक रिजिजू ने बिल को जेपीसी को भेजने की घोषणा कर दी. इसके पहले असदुद्दीन ओवैसी ने बिल पर डिवीजन की मांग रखी थी. इस पर स्पीकर ओम बिरला ने सवाल उठाया था कि इस पर डिवीजन कैसे बनता है. ओवैसी ने कहा कि हम तो शुरू से डिवीजन की मांग कर रहे हैं. किरेन रिजिजू ने कहा कि हम भागने वाले नहीं हैं. उन्होंने विधेयक पेश करते हुए कहा कि इस बिल को यहां से पास कर दीजिए. इसके बाद इसमें जो भी स्क्रूटनी करनी हो, हम तैयार हैं. ये बिल बनाकर आप जेपीसी को भेज दीजिए. हर दल के सदस्य उस कमेटी में हों. पर असल सवाल यह उठता है कि क्या विपक्ष के विरोध के आगे सरकार ने हार मान ली या जेपीसी को भेजने के पीछे भी भारतीय जनता पार्टी की कोई रणनीति है. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की पिछले 10 सालों में यह रणनीति रही है कि जो बिल सदन में लाए उसको पास जरूर कराया है. अचानक इस तरह का हृदय परिवर्तन राजीनितक विश्वलेषकों को पच नहीं रहा है. आइये देखते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की इसमें क्या रणनीति हो सकती है?

    दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने इस बिल का मीडिया ट्रायल कराकर ये समझ लिया है कि देश की आम जनता इस बिल को पसंद कर रही है. पार्टी को यह भी पता चल चुका है कि मुस्लिम समुदाय में भी इस बिल में सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है. शायद यही सोचकर केंद्र ने इस बिल को लटका दिया है. पार्टी चाहती है कि इस बिल पर और बहस हो . क्योंकि जितनी बहस होगी लोग पार्टी के पक्ष में और पोलराइज्ड होंगे. पार्टी चाहती है कि इस बिल की अच्छाइयां आम जनता तक पहुंचे. जेपीसी की जब जब बैठकें होंगी इस बिल का मीडिया ट्रायल होगा. बिल की छोटी-छोटी बातों पर बहस होगी. इस तरह जितनी चर्चा होगी, उतना ही पार्टी के पास मौका होगा कि वह आम जनता से बीजेपी को सपोर्ट करने को कहे. दूसरी बात इस बिल को लेकर खूब हिंदू मुसलमान भी होगा. विशेषकर कांग्रेस जो पहले इस बिल का विरोध नहीं करना चाहती थी उसे भी हिंदुओं के बीच पार्टी खलनायक घोषित कर सकेगी. सीएए का विरोध न करके कांग्रेस ने बीजेपी को हिंदू-मुस्लिम करने का मौका ही नहीं दिया था. पर इस बार कांग्रेस फंस गई है. उसे अपने सांसदों के दबाव में आना पड़ गया है. बीजेपी इसी का लाभ उठाना चाहती है.

    भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर बनवाकर समझ चुकी है किसी भी समस्या के समाधान हो जाने के बाद जनता के लिए वह मुद्दा खत्म हो जाता है. अगर राम मंदिर बनने में कोई समस्या रह गई होती तो हो सकता है कि कम से कम उत्तर प्रदेश में तो बीजेपी को लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त का सामना नहीं करना पड़ता. बीजेपी यह जानती है कि वक्फ बोर्ड पर अगर अभी कानून बन गया तो इसका फायदा चुनावों में नहीं उठाया जा सकता. इसलिए पुराने जमाने की कांग्रेस की तरह बीजेपी ने भी सीख लिया है मुद्दे को जीवित रखना है तो मुद्दे का कभी समाधान नहीं करना है. इसी रणनीति के तहत शायद उत्तर प्रदेश में नजूल भूमि विधेयक भी रोक दिया गया. क्योंकि उत्तर प्रदेश के दोनों सदनों में पार्टी का बहुमत है. पार्टी जो चाहे कानून पास करा सकती है.

    वक्फ बोर्ड संशोधन से जुड़े बिल पर गुरुवार को विपक्ष ने भी जमकर हंगामा काटा था और इस बिल को जेपीसी के पास भेजने की मांग की थी. एनसीपी (शरद पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने कहा, ‘मैं सरकार से अनुरोध करती हूं कि या तो इस विधेयक को पूरी तरह से वापस ले या इसे संसद की किसी समिति को भेज दें.

    नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लोकसभा में कई मुद्दों पर जेपीसी की मांग करते रहे हैं और सरकार उनकी मांग से इनकार करती रही है. पर इस बार विपक्ष की यह भी मांग सरकार ने पूरी कर दी है. वो भी राहुल गांधी के डिमांड करने के पहले ही. इसके पहले राहुल गांधी ने एग्जिट पोल के बाद शेयर बाजार के चढ़ने और लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के दिन शेयर बाजार के धड़ाम होने की जांच की मांग की थी. राहुल गांधी ने कहा था कि मार्केट में गिरावट से 30 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. ये पैसा पांच करोड़ रिटेल इन्वेस्टर्स का था. उन्होंने इस पूरे मामले की जेपीसी से जांच कराने की मांग की थी. अडानी- हिंडनबर्ग मामले में भी विपक्ष ने जेपीसी जांच की मांग की थी. इससे पहले कि राहुल गांधी वक्फ बोर्ड पर जेपीसी की मांग करते सरकार ने पहले ही वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को जेपीसी को भेज कर राहुल गांधी को बोलने का मौका ही नहीं दिया.

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