– डॉ. रमेश ठाकुर
अल्जाइमर को हल्के में लेने की भूल कतई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसी के चलते न्यूरोजेनरेटिव यानी भूलने की बीमारी का आरंभ होता है। चिकित्सीय रिपोर्टस् की माने तो मौजूदा समय में प्रत्येक दसवां इंसान अल्जाइमर से किसी न किसी रूप में ग्रस्त है जिसका मुख्यः कारण, इंसानों की अस्त-व्यस्त जीवनशैली, भागदौड़ व चुनौतियों से जूझती लाइफ, साथ ही खुद के लिए वक्त न निकालना और खानपान की बुरी आदतें आदि के चलते ही इंसानों की स्मरण शक्तियां और दिमागी क्षमता उम्र से पहले जवाब देने लगी है। गुजरे दो दशकों के भीतर अल्जाइमर ने भारत में अन्य बीमारियों के मुकाबले तेजी से पांव पसारे हैं। यह बीमारी कितनी खतरनाक है, इसलिए ही अल्जाइमर की रोकथाम और निदान के संबंध में आम जनों को जागरुकता करने के मकसद से सालाना सितंबर की 21 तारीख को ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ मनाते हैं। अल्जाइमर मनोभ्रंश दुश्मन है। स्मृति हानि और अन्य संज्ञानात्मक क्षमताओं के लिए एक सामान्य शब्द जो दैनिक जीवन में हस्तक्षेप करने के लिए गंभीर होता है उसे जन-जन तक पहुंचाने का काम आज का खास दिन करता है।
ऐसा नहीं है कि अल्जाइमर रोग से भारतीय ही पीड़ित हैं, बिल्कुल नहीं? बल्कि इससे समूचा संसार ग्रस्त है। वैसे, भूलने की बीमारी के कारण और भी बहुतेरे हैं। जैसे, महंगाई, कर्ज या अन्य घरेलू समस्याओं में जब इंसान फंसता है तो चिंता के समंदर में गोते लगाने लगता है। उस स्थिति में इंसान की मस्तिष्क कोशिकाएं कमजोर पड़ने लगती हैं। चिकित्सकों की माने तो प्रत्येक इंसान के दिमाग के भीतर एक हिस्सा ऐसा होता है जो सोचने, समझने व याद करने की प्रक्रिया को दुरुस्त करता है, अल्जाइमर इसी भाग पर सबसे पहले प्रहार करता है। समय रहते अगर इंसान रोकथाम या चिकित्सीय सलाह नहीं लेता, तो उसे अल्जाइमर अपने जाल में फंसा लेता है। ऐसी गलती कतई न करें, उसी की सीख देने के लिए आज का दिन मुकर्रर हुआ है। विश्व अल्जाइमर दिवस को गंभीरता लेने की जरूरत है, क्योंकि मामला सेहत से जुड़ा है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 55-60 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में डिमेंशिया का प्रसार 7.4 फीसदी तक है, जिसका मतलब है कि तकरीबन 8.8 मिलियन भारतीय वर्तमान में डिमेंशिया के साथ जी रहे हैं। जबकि, डिमेंशिया 2020 रिपोर्ट के 5.3 मिलियन के अनुमान से भी कहीं अधिक बताई गई है। इस रोग के सात चरण होते हैं। सातवां स्टेज अल्जाइमर का अंतिम चरण बताया गया है, क्योंकि ये एक लाइलाज बीमारी है। सातवें चरण में रोगी की मृत्यु होना निश्चित होता है। अंतिम चरण तक पहुंचते-पहुंचते रोगी संवाद करने की क्षमता पूरी तरह खो चुका होता है। अल्जाइमर से बचने के लिए डब्ल्यूएचओ, भारतीय शोधकर्ताओं व नामी चिकित्सकों ने कुछ बचाव और सुझाव दिए हैं, उन्हें अपना कर भी इस जानलेवा बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
आवश्यक बातें कुछ इस तरह हैं कि धूम्रपान व अल्कोहल के सेवन से सभी को बचना चाहिए। समय का उचित प्रबंधन करें, कार्यक्षमता अधिक बढ़ने पर तनाव मुक्ति वाले योगासान करें, दिमाग दुरुस्त करने वाले खेल खेलें, जैसे चेस व सुडोकू। खुशनुमा माहौल बनाएं अपने आसपास, दोस्तों संग मस्ती वाले क्षण उत्पन्न करें, पसंद की मूवी देखें, मनपसंद जगहों पर सैर-सपाटा जरूर करते रहें और यार-दोस्तों संग मासिक संगोष्ठियों को करना बिल्कुल भी न भूलें। दरअसल, ये ऐसे इंसानी जीवन के क्रियाकलाप हैं जो न सिर्फ अल्जाइमर से बचाते हैं, बल्कि डिप्रेशन, शुगर व मौसमी बीमारियों से भी दूर रखते हैं।
चिकित्सीय इतिहास में इस रोग की अभी तक कोई मुकम्मल दवा ईजाद नहीं हुई। हालांकि, अमेरिकी खाद्य व औषधि प्रशासन ने एक दवा को मंजूरी दी है जिसका नाम ‘अबूहेंम’ है। दशकों में ऐसा पहली मर्तबा हुआ है, जब अल्जाइमर की दवा को मंजूरी मिली है। हालांकि ये दवा अब भी आसानी से उपलब्ध नहीं होती। इसलिए जीवनशैली को अपने तय प्रबंधन से खर्च करें, भागदौड़ से जितना हो सके बचें?
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद
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