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    शेख हसीना को बांग्लादेश प्रत्यर्पित करने के लिए मजबूर है भारत?, जानिए कौनसी है संधि

  • August 22, 2024

    ढाका: बांग्लादेश (Bangladesh) की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना (Prime Minister Sheikh Hasina) भारत (India) में शरण ली हुई हैं। वहीं, बांग्लादेश में उनके खिलाफ मुकदमों का अंबार लग गया है। शेख हसीना पर हत्या, हत्या की साजिश रचने से लेकर नरसंहार तक के आरोप लगाए गए हैं। इस बीच बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने शेख हसीना पर देश में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन को बाधित करने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है।


    मोहम्मद यूनुस की सरकार करेगी अनुरोध?

    यह नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार का आधिकारिक रुख नहीं है। लेकिन, शेख हसीना की अवामी लीग के मैदान से हटने के बाद अब बीएनपी ही बांग्लादेश की मुख्य राजनीतिक पार्टी बची है। दबे सुर में यह भी आरोप लगाए जा रहे हैं कि पर्दे के पीछे बीएनपी ही मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को चला रही है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि यूनुस पर भी शेख हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध करने को लेकर दबाव है।

    शेख हसीना की सुरक्षा भारत की जिम्मेदारी क्यों

    भारत और बांग्लादेश में प्रत्यर्पण संधि है। इस संधि के तहत दोनों देश एक दूसरे के देश में मौजूद आरोपियों का प्रत्यर्पण करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत के पास बांग्लादेश के आधिकारिक अनुरोध को अस्वीकार करने का अधिकार है। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हसीना बांग्लादेश में अपने लंबे प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान भारत की एक वफादार मित्र रही हैं। उनका भारत के प्रति दोस्ताना रवैया नई दिल्ली के लिए रणनीतिक महत्व रखता है। ऐसे में हसीना को बांग्लादेश को सौंपना आसान नहीं होगा, क्योंकि वहां उनकी जान को भी खतरा हो सकता है।

    भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि

    बांग्लादेश और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि पूर्वोत्तर में उग्रवाद को खत्म करने की कोशिश के दौरान की गई थी। दशकों से, पूर्वोत्तर और पश्चिम बंगाल में सक्रिय उग्रवादी नेता कानून से बचने के लिए भारत-बांग्लादेश की सीमा को पार कर जाते थे। इस संधि पर पहली बार 2013 में हस्ताक्षर किए गए थे और 2016 में इसमें संशोधन किया गया था। इस संधि से भारत और बांग्लादेश को लाभ हुआ है, जिसे जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) जैसे आतंकी समूहों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस समूह से जुड़े आतंकी पश्चिम बंगा और असम में छिपे पाए गए थे।

    प्रत्यर्पण संधि से दोनों देशों को लाभ

    भारत इसी संधि की मदद से 2015 में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के शीर्ष नेता अनूप चेतिया को बांग्लादेश से प्रत्यर्पित करवा सका। भारत ने भी इस संधि के माध्यम से कुछ बांग्लादेशी भगोड़ों को प्रत्यर्पित किया है। इस संधि में प्रत्यर्पण के लिए शर्तें और अपराध सूचीबद्ध हैं। इसमें लिखा है कि भारत और बांग्लादेश को उन भगोड़ों को प्रत्यर्पित करना चाहिए “जिनके खिलाफ कार्यवाही की गई है” या “जिन पर आरोप लगाए गए हैं या जो दोषी पाए गए हैं, या जिनके लिए वांछित हैं। हालांकि, केवल न्यूनतम एक वर्ष की कारावास की सजा वाले अपराध ही प्रत्यर्पणीय अपराध हो सकते हैं, जिनमें वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित अपराध भी शामिल हैं।

    प्रत्यर्पण संधि की प्रमुख शर्त क्या है

    भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के संचालन में एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि किसी अपराध को प्रत्यर्पित करने के लिए दोहरी आपराधिकता के सिद्धांत को पूरा किया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए। संधि का अनुच्छेद 7 इस बात से संबंधित है कि प्रत्यर्पण योग्य अपराध क्या है और दोनों देशों के अधिकारी प्रत्यर्पण के अनुरोध पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे।

    भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के अपवाद

    हालांकि, भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि को उन मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है जो “राजनीतिक प्रकृति के” हैं। संधि के अनुच्छेद 6 में अपवाद के रूप में राजनीतिक अपराधों की एक सूची है। संधि के अनुच्छेद 8 में अन्य अपवादों का उल्लेख किया गया है – जो भारत और बांग्लादेश दोनों को कुछ परिस्थितियों में अनुरोधों को अस्वीकार करने की अनुमति देता है। यदि प्रत्यर्पण अनुरोध “सद्भावना से नहीं किया गया है” और “न्याय के हित में” नहीं है, तो उसे अस्वीकार किया जा सकता है।

    अनुच्छेद 8 में कहा गया है कि प्रत्यर्पण के अनुरोध को अस्वीकार किया जा सकता है, यदि संबंधित व्यक्ति अनुरोधित देश को इस बारे में संतुष्ट कर सके कि
    “उस पर जिस अपराध का आरोप लगाया गया है या उसे दोषी ठहराया गया है, उसकी प्रकृति कितनी मामूली है,” या,
    “उस पर आरोप लगाया गया है कि उसने अपराध किया है या वह अवैध रूप से फरार हो गया है,” या,
    “उस पर लगाए गए आरोप न्याय के हित में सद्भावनापूर्वक नहीं लगाए गए हैं,”
    “जिस अपराध का उस पर आरोप लगाया गया है या उसे दोषी ठहराया गया है, वह एक सैन्य अपराध है जो सामान्य आपराधिक कानून के तहत भी अपराध नहीं है”।

    साथ ही, यदि कोई व्यक्ति अनुरोधित देश में किसी आपराधिक मामले का सामना कर रहा है या किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, तो प्रत्यर्पण के अनुरोध को अस्वीकार किया जा सकता है।

    क्या भारत हसीना के प्रत्यर्पण को अस्वीकार कर सकता है?

    बांग्लादेश की पुलिस और अदालती फाइलों में हसीना के खिलाफ लगाए गए आरोपों में हत्या, गैर इरादतन हत्या, हमला, विस्फोट करना, किसी व्यक्ति द्वारा जीवन को खतरे में डालने के इरादे से विस्फोटक पदार्थ या हथियार बनाना या रखना; गिरफ्तारी का विरोध करने या रोकने के इरादे से हथियारों का उपयोग करना; जीवन को खतरे में डालने के इरादे से संपत्ति को नुकसान पहुंचाना; अपहरण या बंधक बनाना; हत्या के लिए उकसाना; और आतंकवाद से संबंधित अपराध शामिल हैं।

    भारत को खोजना होगा नया रास्ता

    ये अपराध राजनीतिक प्रकृति के अपराधों के अपवादों के अंतर्गत नहीं आते हैं। इसलिए, एक राजनीतिक व्यक्ति होने के बावजूद, हसीना का मामला इस अपवाद के अंतर्गत नहीं आ सकता है। साथ ही, ये न तो मामूली आरोप हैं और न ही इतना समय बीत चुका है कि अनुच्छेद 8 लागू किया जाए। हालांकि, इसी अनुच्छेद में प्रत्यर्पण अनुरोध को यह कहकर अस्वीकार करने के प्रावधान की भी बात की गई है कि हसीना के खिलाफ लगाए गए आरोप “सद्भावना में” हैं और “न्याय के हित में” नहीं हैं।

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