डेस्क: ईरान ने अपनी एक चाल से अमेरिका के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं. इराक में करीब एक साल से खाली संसद स्पीकर के पद पर गुरुवार को नियुक्ति कर दी गई है. इराक ने इस पद के लिए एक प्रमुख सुन्नी नेता को चुना है जिनके ईरान के साथ बेहद करीबी संबंध हैं.
महमूद अल-मशहदानी, जिन्होंने इससे पहले भी 2006 से 2009 तक स्पीकर के तौर पर सेवा दी थी उन्हें संसद में उपस्थित 269 में से 182 सांसदों के वोट से चुन लिया गया. इराक के राजनीतिक दलों के बीच कई महीनों से जारी गतिरोध के बाद यह आश्चर्यजनक फैसला लिया गया.
इससे पहले पिछले साल नवंबर में पूर्व स्पीकर मोहम्मद अल-हलबौसी को इराक की सुप्रीम कोर्ट ने पद से हटा दिया था क्योंकि उन पर एक लॉ-मेकर लैथ अल-दुलामी ने एक केज दर्ज कराया था. दुलामी ने हलबूसी पर इस्तीफे में नकली हस्ताक्षर का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले का आधार बताए बिना हलबौसी और दुलामी दोनों को ही पद से बर्खास्त कर दिया.
लेबनान की तरह इराक में भी सत्ता की ताकत को विकेंद्रित करने के लिए अलग-अलग समुदायों के लिए पद आरक्षित हैं. इराक में स्पीकर का पद सुन्नी नेता के लिए, प्रधानमंत्री का पद शिया और राष्ट्रपति का पद कुर्द समुदाय के लिए तय है. ऐसे में नया स्पीकर सुन्नी समुदाय का ही चुना जाना था लेकिन इराकी संसद ने मशहदानी को चुना जो सुन्नी लीडर के साथ-साथ ईरान के करीबी हैं.
संसद में स्पीकर का पद काफी अहम होता है, यह राजनीतिक गुटों के बीच मध्यस्थ के तौर पर काम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आर्थिक सुधारों को प्राप्त करने और आंतरिक तनाव को कम करने के सरकार के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण होगा.
दरअसल इराक को बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और आंतरिक विभाजन का भी सामना करना पड़ रहा है. ईरान समर्थक शिया राजनीतिक गुट और पूर्व स्पीकर हलबौसी के करीबी सुन्नी गुट के विधायकों ने स्पीकर के लिए अल-मशहदानी पर समझौता कर लिया है. जाहिर तौर पर यह इस उम्मीद में किया गया है कि वह राजनीतिक गुटों में आम सहमति बनाने में सक्षम होंगे.
नए संसद अध्यक्ष का चुनाव ऐसे समय में हुआ है जब इराक बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है. उनमें से मुख्य, मध्य पूर्व में युद्धों के नतीजों को नेविगेट करने और ईरान और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने का प्रयास करना, जो क्षेत्रीय संघर्ष में विरोधी दलों का समर्थन कर रहे हैं.
वहीं ईरान के करीबी राजनीतिक गुटों और विद्रोही गुटों के पास इराक में महत्वपूर्ण शक्ति है. ये विद्रोही गुट ने नियमित तौर पर इराक और सीरिया में अमेरिकी सैन्य बेस पर ड्रोन हमले करते हैं. यह गाजा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह के खिलाफ युद्ध का बदला है, क्योंकि इस जंग में वॉशिंगटन, इजराइल का खुला समर्थन करता रहा है. हाल के महीनों में उन्होंने सीधे इजराइल में साइटों को भी निशाना बनाया है.
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