नहीं है ना-उमीद ‘इक़बाल’ अपनी किश्त-ए-वीरां से,
जऱा नम हो तो ये मिट्टी बहुत जऱख़ेज़ है साक़ी
हिंदुस्तानी बर्रेसग़ीर के अज़ीमुश्शान शायर अल्लामा इकबाल के नाम से भोपाल में चल रही इक़बाल लायब्रेरी मामूली सरकारी इमदाद और मेम्बरों की बहुत कम तादात के चलते बुरे दौर से गुजऱ रही है। लाखों बेशकीमती किताबों को अपने भीतर समेटे इस इक़बाल लायब्रेरी को 26 अगस्त 2017 को हुई घनगोर बारिश ने बहुत नुकसान पहुंचाया था। इक़बाल मैदान के डायस के नीचे बनी इस लायब्रेरी में बारिश का पानी घुस गया था। तब हज़ारों बेशक़ीमती किताबेँ ज़ाया हो गईं थीं। लायब्रेरी के अराकीन ने बहुत मेहनत करके किताबो को सुखाया था। उनमे से ज़्यादातर पढऩे लायक नहीं बचीं। आइये इस तारीखी इक़बाल लायब्रेरी के बारे में कुछ जानते हैं। अल्लामा इक़बाल के 1938 में इंतकाल के बाद भोपाल के सहाफी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आसिफ शाहमीरी साहब ने अल्लामा की याद को मुस्तकि़ल बनाने के लिए 1 अक्टूबर 1939 को इसे शुरु किया था। अल्लामा के इंतकाल के डेढ़ बरस बाद उनकी याद में खुलने वाला ये पूरी दुनिया मे पहला इदारा था। मरहूम आसिफ शाहमीरी का खय़ाल था कि अल्लामा की याद में कोई ताज़्याती प्रोग्राम करने के बजाय लायब्रेरी खोल कर खिराजे अक़ीदत पेश करना ज़्यादा बेहतर था। उस वक्त इस लायब्रेरी की बुनियाद के लिए उनका साथ अब्दुल लतीफ खान, मोहम्मद इलियास और अब्दुल वदूद साहब ने दिया था। 1939 में ये लायब्रेरी इब्राहिमपुरे के एक छोटे से मकान में कायम हुई थी।
बरसा बरस ये लायब्रेरी वहीं चलती रही। 10 नवंबर 2002 को साबिक़ मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और काबीना मिनिस्टर आरिफ अकील साब ने इसे इक़बाल मैदान में शिफ्ट करवाया। शाहमीरी साहब के इंतकाल के बाद मरहूम ममनून हसन खां ने इस लायब्रेरी को बचाने और बढ़ाने बहुत मेहनत करी। उनके बाद उमर अंसारी साहब ने अपनी जि़न्दगी का बड़ा हिस्सा इक़बाल लायब्रेरी के लिए लगा दिया। उमर साहब के इंतकाल के बाद इक़बाल लायब्रेरी का निज़ाम रशीद अंजुम साब देख रहे हैं। रशीद साब बिना पैसा लिए इस लायब्रेरी का वजूद बचाने में लगे हुए हैं। रशीद अंजुम साब का मानना है कि इस डिजिटल दौर में पढऩे वालों की तादात बहुत कम हो गई है। लिहाज़ा मेम्बर भी काफी कम हो गए हैं। इसकी साज सम्हाल के लिए फण्ड की बहुत कमी हो गई है। स्टेट गवर्नमेंट और उर्दू अकादमी की जानिब से मिलने वाली माली मदद से लायब्रेरी के 6 मुलाजीमो की तनख्वाह बमुश्किल निकल पाती है। इक़बाल लायब्रेरी के आजीवन मेम्बर सौ से कुछ ज़्यादा है जो 600 रुपये साल देते हैं। रोज़ 50 के करीब विजि़टर यहां आते हैं जो अखबार पढऩे आते हैं। कालिजों के तालिबे इल्म भी अपने सिलेबस की किताबें पढऩे लायब्रेरी आते हैं। कुलमिलाकर इक़बाल लायब्रेरी मुफ्त में अपनी सेवाएं दे रही है। यहां उर्दू, फ़ारसी, अरबी, हिंदी और मराठी ज़ुबानों की कई नायाब किताबें मौजूद हैं। बरसों पहले बंद हो चुके कई उर्दू रिसाले भी यहां हैं। यहां एवाने उर्दू, किताबनामा, नया दौर, साहिर, इंशा, उर्दू दुनिया जैसे तमाम रिसाले एक जगह पढऩे को मिल जाएंगे। ज़रूरत इस बात की है कि सरकार की तरफ से इक़बाल लायब्रेरी की इमदाद बढ़ाई जाए। वहीं इसके वजूद को कायम रखने के लिए खुद लोगों को आगे आना होगा। जितने ज्यादा इसके मेंबर होंगे उतना ही ये तारीखी इदारा मज़बूत होगा। पढ़ो भोपाल वालों पढ़ो।
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