भोपाल। प्रदेश में मिलावटी सामान और मिलावटखोरों के खिलाफ सरकार लगातार अभियान चलाए हुए है। इस कारण प्रदेश में हर साल हजारों मिलावटी समानों की जब्ती होती है। लेकिन प्रदेश में एक विसंगति यह देखने को मिल रही है कि मिलावटी खाद्य पदार्थों की जांच करने के लिए राज्यस्तरीय प्रयोगशाला में पर्याप्त साधन होने के बाद भी विभागीय अफसर इस पर यकीन नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि लीगल सैंपलों की जांच निजी प्रयोगशाला में कराई जा रही है। इससे विभाग को भारी भरकम राशि भी खर्च करनी पड़ रही है। गौरतलब है की प्रदेश में हर साल बड़ी संख्या में मिलावटी खाद्य पदार्थों के मामले सामने आते हैं। जब्त किए गए खाद्य पदार्थों की जांच राज्यस्तरीय प्रयोगशाला में की जाती है। लेकिन जब मामला कोर्ट में जाता है तो सैंपल की जांच निजी प्रयोगशाला में कराई जाती है। संयुक्त नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन अभिषेक दुबे का कहना है कि प्रदेश से खाद्य पदार्थों के नमूने बड़ी संख्या में आ रहे हैं। ऐसे में सरकारी के साथ ही निजी लैब में भी जांच करानी पड़ रही है। वर्तमान में एक हजार से अधिक सैंपलों की जांच राज्यस्तरीय प्रयोगशाला में होती है। यह कहना गलत है कि सभी सैंपल निजी लैब में भेजे जा रहे हैं।
30-40 गुना महंगी जांच
सरकारी लैब में खाद्य पदार्थ की जांच में जहां सौ से डेढ़ सौ रुपए खर्च आता है, वहीं निजी प्रयोगशाला में यह 3850 रुपए है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह सरकारी पैसा संसाधन होने के बाद भी बहाया जा रहा है। वहीं, दूसरी तरफ खाद्य पदार्थों की जांच में लगे कर्मचारियों सहित अन्य को पिछले तीन माह से वेतन ही नहीं मिल सका है। वेतन क्यों नहीं मिला इसका जवाब किसी के पास नहीं है। राज्य में मिलावट से मुक्ति अभियान चलाया जा रहा है। पूर्व में प्रदेश भर से बड़ी संख्या में लीगल व सर्विलेंस सैंपल आ रहे थे। उस समय लैब में कर्मचारी भी नहीं थे, ऐसे में सैंपलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए निजी लैब की मदद लेने के निर्देश जारी किये गये थे। इसके बाद आउट सोर्स पर कर्मचारी तैनात किये गये। यही नहीं मोबाइल लैब भी चलाई गई। जिससे सर्विलेंस सैंपलों की जांच समय पर हो सके। इससे सैंपलों की पेंडेंसी काफी कम हो गई। बावजूद इसके निजी लैब में जांच कराने का मोह नहीं छूट सका। अब अफसर सर्विलेंस सैंपल की जांच राज्यस्तरीय प्रयोगशाला में करा रहे हैं, वहीं लीगल सैंपल के लिए निजी लैब भेजे जा रहे हैं।
अब वेतन के लाले
एक तरफ निजी लैब को लगातार सैंपल भेज कर उपकृत किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ राज्यस्तरीय प्रयोगशाला व मोबाइल वैन में लगे कर्मचारियों वेतन के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इन कर्मचारियों को अच्छा काम करने के बाद भी वेतन के लिए तीन-तीन माह इंतजार करना पड़ रहा है। जबकि यह कर्मचारी उस समय आए थे, जब प्रयोगशाला में नमूनों का अंबार लगा हुआ था। हालांकि यह सभी कर्मचारी कारण नहीं हो सका है। आउटसोर्स के माध्यम से लगाए गये हैं। जिस कंपनी के माध्यम से कर्मचारी लगाए गये हैं, उसका कहना है कि उन्हें ही भुगतान नहीं हुआ है। ऐसे में वो तीन माह से वेतन नहीं दे सके हैं। राज्य स्तरीय प्रयोगशाला में खाद्य पदार्थों के अलग-अलग रेट हैं। यहां पर घी और मावा की जांच 150 सौ रुपए में हो जाती है। वहीं पोहा और मूंगफली की बात करें तो इसकी जांच में महज 100 रुपए खर्च आता है। वहीं निजी लैब में प्रत्येक खाद्य पदार्थ की. जांच के लिए 3850 रुपए फिक्स है।
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