नई दिल्ली: हर साल आज (5 सितंबर) के दिन ‘इंटरनेशनल डे ऑफ चैरिटी’ दुनियाभर में मनाया जाता है. यह दिवस 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित किए गए जाने के बाद मनाया गया, जिसका उद्देश्य था परोपकारी गतिविधियों में भाग लेना और ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना. ऐसा करने से ना केवल लोगों में सामाजिक जुड़ाव बनता है, बल्कि युवा पीढ़ी को उदारता के बारे में सीख मिलती है.
इंटरनेशनल डे ऑफ चैरिटी का इतिहास
यह दिन मदर टेरेसा की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में 5 सितंबर को मनाया जाता है. बता दें कि उन्हें 1979 में गरीबी और संकट को दूर करने के लिए संघर्ष में किए गए कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया था. मदर टेरेसा का जन्म 1910 में ग्रीस के मैसेडोनिया में हुआ था. तब उनका नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु हुआ करता था. वे पहली बार 1928 में भारत का दौरा कीं और संकटग्रस्त और जरूरतमंदों की मदद के लिए 1950 में उन्होंने कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की.
इंटरनेशनल डे ऑफ चैरिटी थीम
2015 में संयुक्त राष्ट्र के ‘सतत विकास एजेंडा 2030’ में अत्यधिक गरीबी और गरीबी उन्मूलन को दुनिया की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती मानी गई और इसके लिए सतत विकास की जरूरत को महसूस किया गया. इस एजेंडे में सतत विकास लक्ष्यों को छह श्रेणियों में बांटा गया जो हैं- पीपल, प्लानेट, प्रोस्पैरिटी, पीस और पार्टनरशिप यानी कि लोग, ग्रह, समृद्धि, शांति और साझेदारी.
इंटरनेशनल डे ऑफ चैरिटी का महत्व
चैरिटी की मदद से शिक्षा, आवास और बाल संरक्षण में मदद मिल सकती है. यह सांस्कृतिक , प्राकृतिक विरासत, विज्ञान और खेल को संरक्षित करने में मदद कर सकता है. चैरिटी की मदद से हाशिए पर और वंचितों के अधिकारों को बढ़ावा देने में मदद की जा सकती है. यह युवाओं में उदारता के भाव को बढ़ाता है और इंसानों के बीच एकजूटता बढ़ाता है.
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