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    अपमान हुआ, खासगी ट्रस्ट सुप्रीम कोर्ट जाएगा

  • October 07, 2020

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    • ट्रस्ट के सचिव राठौर ने फैसले की टिप्पणियों पर आपत्ति जताई
    • सम्पत्ति विक्रय के हर फैसले पर संभागायुक्त से लेकर शासन के प्रतिनिधियों तक के हस्ताक्षर
    • शासन ने ही लीज डीड में संशोधन कराया और ट्रस्ट को अधिकार सौंपे

    इंदौर। हाईकोर्ट के फैसले को लेकर खासगी ट्रस्ट के संचालकों में असंतोष है। उनका कहना है कि वे अदालत के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेंगे। ट्रस्ट की संपत्ति के विक्रय को लेकर दिए गए फैसले और की गई टिप्पणी पर एतराज जताते हुए ट्रस्ट के वकील जहां सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जाने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं ट्रस्ट के सचिव का कहना है कि कोर्ट के फैसले से ईमानदारी से काम कर रहे ट्रस्ट संचालकों का अपमान हुआ है। अदालत ने ट्रस्ट द्वारा दिए गए कई तर्कों पर विचार नहीं किया हैै, जिसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय मेें अपील दायर की जाएगी।

    ट्रस्ट के सचिव राठौर ने कहा कि खासगी ट्रस्ट की संपत्ति विक्रय के हर फैसले पर संभागायुक्त से लेकर शासन के प्रतिनिधियों तक के हस्ताक्षर थे। वहीं शासन के ही सर्वोच्च पद पर आसीन प्रमुख सचिव द्वारा ट्रस्ट डीड में संशोधन कराकर संपत्तियों के विक्रय का अधिकार ट्रस्ट को सौंपा गया था। इसके बावजूद ट्रस्ट द्वारा हर फैसला समस्त ट्रस्टियों की बैठक में लिया गया, जिसमें इंदौर के संभागायुक्त से लेकर शासन के प्रतिनिधि भी शामिल रहे। हर प्रस्ताव में संपत्ति की स्थिति की जानकारी देते हुए विक्रय के लिए आए प्रस्तावों पर विचार के उपरांत सामूहिक रूप से फैसला लिया गया। शासन द्वारा दायर किए गए वाद में ट्रस्ट द्वारा हर स्थिति की जानकारी ट्रस्ट ने अपने जवाब दावे में वकीलों के माध्यम से प्रस्तुत कराई थी, जिनमें से कई स्थितियों का परीक्षण नहीं किया गया। इस कारण अदालत द्वारा दिए गए फैसले में कई खामियां नजर आती हैं। इसी को लेकर ट्रस्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी की जा रही है। ट्रस्ट के सचिव ने कहा कि शासन द्वारा प्रारंभिक वर्षों में खासगी संपत्तियों के रखरखाव के लिए मात्र 2 लाख रुपए से कम की राशि दी जाती थी और बाद में तो कई वर्षों से उक्त राशि भी ट्रस्ट को नहीं दी जा रही है। ट्रस्ट द्वारा खासगी संपत्तियों का संचालन संपत्तियों के किराए से मिलने वाली राशि के साथ ही प्रमुख ट्रस्टी महारानी उषाराजे के परिवार के खुद के पैसों से किया जा रहा है। ट्रस्ट द्वारा उन्हीं संपत्तियों का विक्रय किया गया, जिन पर वर्षों से लोगों का कब्जा रहा और वे न तो किराया दे रहे थे और न ही प्रशासन द्वारा उनके कब्जे हटाए जाने के लिए कोई कार्रवाई की जा रही थी।

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