- विधानसभा में शहरी पेयजल प्रोजेक्ट पर उठे सवाल के बाद पहली बार सरकार का फैसला
- उज्जैन, नागदा सहित प्रदेश के सात जिलों के इंजीनियरिंग कालेजों को प्रोजेक्ट के आडिट की जवाबदारी सौंपी
उज्जैन। मध्यप्रदेश सरकार को शहरी क्षेत्रों में चल रहे या पूरे हो चुके प्रोजेक्ट का तकनीकी परीक्षण कराने के लिए पहली बार अपने ही तकनीकी विभागों की जगह इसके लिए उज्जैन सहित प्रदेश के सात जिलों के इंजीनियरिंग कॉलेजों को यह जिम्मेदारी सौंपी हैं।
मध्य प्रदेश में पेयजल प्रोजेक्ट पर विधानसभा में सवाल उठने के बाद पहली बार उज्जैन-नागदा सहित सात जिलों के इंजीनियरिंग कॉलेजों से प्रोजेक्ट का ऑडिट का कराया जा रहा है। विधानसभा के मानसून सत्र में शहरी पेयजल प्रोजेक्ट पर उठे सवालों के बाद अब सरकार ने तकनीकी संस्थाओं से इनका ऑडिट कराने की तैयारी कर ली है। अब सरकार योजनाओं में हुई देरी से लेकर दूसरी गड़बडिय़ों का ब्यौरा जुटाएगी। टेक्निकल ऑडिट इन बड़े और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में अफसरों की लापरवाही भी उजागर करेगा। इन योजनाओं की वास्तविक हकीकत भी सामने आ जाएगी। टेक्निकल ऑडिट के लिए नगरीय प्रशासन संचालनालय ने प्रदेश के सात प्रमुख सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों को गाइडलाइन भेज दी है, वहीं इंजीनियरिंग कॉलेज भी जल परियोजनाओं के ऑडिट के लिए तैयारी में जुट गए हैं। विधानसभा में प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में जल परियोजनाओं पर विधायकों के सवालों के बाद अब नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने गंभीरता दिखाई है। प्रदेश में जल जीवन मिशन के अमृत-1 के अंतर्गत 31 शहरों में चल रहे या पूरे हो चुके वॉटर प्रोजेक्ट का ऑडिट कराने की तैयारी कर ली है। जल परियोजनाओं का टेक्निकल ऑडिट कराने के लिए सरकार के तकनीकी दक्षता वाले विभाग और अधिकारियों को इससे दूर रखा गया है। विभाग ने यह काम भोपाल मैनिट सहित प्रदेश के 7 इंजीनियरिंग कॉलेजों से कराने जा रहा है। मैनिट को भोपाल के अलावा सीहोर, नर्मदापुरम और बैतूल, एसजीएस आईटीएस इंदौर को इंदौर शहर के साथ ही देवास, खंडवा और पीथमपुर शहरों के वॉटर प्रोजेक्ट सौंपे गए हैं, वहीं रीवा इंजीनियरिंग कॉलेज के विशेषज्ञ रीवा, सतना और सिंगरौली, उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज नागदा, नीमच, मंदसौर में जबकि जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज छिंदवाड़ा, जबलपुर, कटनी शहरों में तकनीकी सर्वेक्षण करेंगे। सागर स्थित इंदिरा गांधी इंजीनियरिंग कॉलेज को छतरपुर के वॉटर प्रोजेक्ट का टेक्निकल ऑडिट दिया गया है। परियोजनाओं का तकनीकी ऑडिट नगरीय प्रशासन विभाग के अपर आयुक्त डॉ. परीक्षित संजयराव झाड़े के अनुसार तकनीकी ऑडिट विभाग के इंजीनियर इन चीफ की निगरानी में कराया जा रहा है। इसके लिए इंजीनियरिंग कॉलजों को गाइडलाइन भी दी गई है। पहले मैदानी जानकारी एकत्रित की जाती है। इसके साथ ही स्ट्रक्चर, पानी के फ्लो का पता लगाते हैं कि सप्लाई आखिरी घर तक पहुँच रही है या नहीं, पेयजल के लिए बिछाई गई पाइप लाइन की गुणवत्ता, उसे बिछाने के लिए जरुरी गहराई का ध्यान रखा गया या नहीं यह भी अहम होता है। इन सभी बिंदुओं पर जानकारी एकत्रित कर एक्सपर्ट पैनल रिपोर्ट तैयार करेगा।
तकनीकी आडिट से यह फायदा होगा
जल परियोजनाओं पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि जल आपूर्ति हर कनेक्शनधारी तक पहुँचे। इसके लिए पाइपलाइन बिछाने के साथ पर्याप्त दबाव के साथ पानी छोडऩे की आवश्यकता होती है। अभी प्रदेश भर में जल परियोजनाओं को लेकर शिकायतें सामने आ रही हैं। पहाड़ी संरचना वाले शहरों में किसी हिस्से में पानी कम दबाव से सप्लाई होने से लोगों को पर्याप्त दबाव के साथ पानी छोडऩे की आवश्यकता होती है। अभी प्रदेश भर में जल परियोजनाओं को लेकर शिकायतें सामने आ रही हैं। पहाड़ी संरचना वाले शहरों में किसी हिस्से में पानी कम दबाव से सप्लाई होने से लोगों को पर्याप्त नहीं मिल पा रहा है तो कहीं कॉमन लाइन से लगातार पानी बहकर बर्बाद होता है। यह बात भी सामने आई कि प्रदेश के 26 शहरों में जलापूर्ति कम दबाव से हो रहा है। इस वजह से पम्पिंग स्टेशन से दूर स्थित वार्डों में लोगों को मुश्किल हो रही है। तकनीकी ऑडिट से यह सब विसंगतियाँ सामने आने से उनमें सुधार कराया जा सकेगा। वहीं प्रोजेक्ट तैयार करने वाली कंपनी की गड़बड़ी, तकनीकी खामियाँ और उपयोग की गई सामग्री, उपकरणों की गुणवत्ता का भी पता चल पाएगा। इससे भविष्य में योजना अपने लक्ष्य के अनुरुप लोगों को लाभ पहुँचा सकेगी।
इंजीनियरिंग कॉलेजों को इसलिए दिया जिम्मा
अब तक ऐसे बड़े प्रोजेक्ट की तकनीकी जाँच के लिए विभागीय स्तर पर कमेटी बनाई जाती रही है। इससे अकसर जाँच रिपोर्ट पर सवाल उठते रहे हैं। इससे बचने और जरुरत के मुताबिक सुधार कराने नगरीय विकास विभाग ने अब जल परियोजनाओं के तकनीकी ऑडिट की जवाबदारी इंजीनियरिंग कॉलेजों को सौंप दी है। इससे सरकारी विभागों से दूर विशेषज्ञ जाँच कर रिपोर्ट विभाग को उपलब्ध करा पाएँगे। इससे अफसरों पर भी सवाल नहीं उठेंगे और जरूरी सुधार भी हो पाएंगे।