नई दिल्ली: अमेरिकी विमान कंपनी बोइंग (Boeing) अगले महीने अपने अत्याधुनिक एफ-18 सुपर हॉर्नेट लड़ाकू विमान (F-18 Super Hornet fighters) भारत भेजेगी. भारतीय नौसेना गोवा में INS हंसा के तटीय टेस्ट सेंटर पर इनका परीक्षण करेगी. अगर सब कुछ ठीक रहा तो इन विमानों की भारत के नए स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) पर मुख्य हथियार के तौर पर तैनाती हो सकती है. INS विक्रांत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त को सेना को समर्पित करने वाले हैं. युद्धपोत पर तैनाती के लिए नेवी 26 लड़ाकू विमान खरीदने की तैयारी में है.
हिंदुस्तान टाइम्स ने दिल्ली और वॉशिंगटन से मिली जानकारी के आधार पर बताया कि आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) से 21 मई को एफ-18 की उड़ान का ट्रायल किया जा सकता है. विक्रमादित्य का डेक 928 मीटर लंबा है और ये भारत का इकलौता एयरक्राफ्ट कैरियर है. इस पर एफ-18 का परीक्षण अमेरिका से हवा में विमान में ईंधन भरने के टैंकर भेजे जाने के बाद गोवा में किया जाएगा. आईएनएस विक्रमादित्य को पिछले करीब एक साल से मरम्मत करके नया रूप देने का काम चल रहा है. जल्द ही ये समुद्र में फिर से सक्रिय भूमिका निभाने लगेगा. इस वक्त आईएनएस विक्रांत के कड़े समुद्री परीक्षण चल रहे हैं. इस पर फिलहाल कुछ समय के लिए मिग-29के लड़ाकू विमान तैनात किए गए हैं.
आईएनएस विक्रांत और विक्रमादित्य पर एफ-18 और मिग-29के के अलावा राफेल-एम की तैनाती पर भी विचार किया जा रहा है. नेवी ने इस साल जनवरी में युद्धपोत पर राफेल का परीक्षण किया था. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, नेवी इस समय 26 लड़ाकू विमान खरीदने पर विचार कर रही है क्योंकि युद्धपोत के डेक से उड़ान भरने में सक्षम दो इंजन वाले देसी लड़ाकू विमान को तैयार होने में 2030 तक का वक्त लग सकता है. भारत को कम से कम दो विमानवाहक पोतों की जरूरत है क्योंकि चीन अपना तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बना रहा है. भारत के लिए हिंद महासागर में अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए यह जरूरी है. भारत की योजना है कि एक विमानवाहक पोत को पश्चिमी किनारे पर और दूसरे को पूर्वी किनारे पर तैनात किया जाए.
एफ-18 की बात करे तो इसे मौजूदा 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमानों में काफी अच्छा माना जाता है. आईएनएस विक्रांत के डेक से ऐसे 8 एफ-18 विमानों को लॉन्च किया जा सकता है. अगर इसके पंख फोल्ड किए जाएं तो ये युद्धपोत के ऊपरी हिस्से में भी फिट हो सकता है. इसके उलट दो सीटों वाले राफेल-एम के साथ ये सुविधाएं नहीं है. राफेल को तटीय आधारित केंद्र से ही ऑपरेट किया जा सकता है. इससे इसकी लड़ाकू क्षमता में कमी आ जाती है. वैसे तो दोनों ही विमान कई तरह की मिसाइलें और गोला बारूद लेकर चल सकते हैं, लेकिन एफ-18 में चार एंटी सबमरीन मिसाइल भी फिट हो सकती हैं, जो इसे ज्यादा बेहतर बनाता है.
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