• img-fluid

    आधुनिकता में विदेशी जीवनमूल्यों का प्रवाह

  • July 28, 2024

    – हृदयनारायण दीक्षित

    आधुनिकता प्रायः आकर्षण होती है। नई होती है और ताजी प्रतीत होती है। लेकिन वास्तविक आधुनिकता विचारणीय है। आधुनिकता नकली भी होती है। दरअसल आधुनिकता स्वयं में कोई निरपेक्ष आदर्श या व्यवहार नहीं है। इसका सीधा अर्थ ही प्राचीनता का अनुवर्ती है। आधुनिकता प्राचीनता के बाद ही आती है। इसलिए हरेक आधुनिकता की एक सुनिश्चित प्राचीनता होती है। इसी तरह प्राचीनता की भी और प्राचीनता होती है। आधुनिकता को और आधुनिक कहने के लिए उत्तर आधुनिकता शब्द का चलन बढ़ा भी है। सच बात तो यही है कि प्राचीनता और आधुनिकता के विभाजन ही कृत्रिम हैं। काल अखण्ड सत्ता है। काल में न कुछ प्राचीन है और न ही आधुनिक। हम मनुष्य ही काल संगति में प्राचीनता या नवीनता के विवेचन करते हैं। प्राचीनता ही अपने अद्यतन विस्तार में नवीनता और आधुनिकता है। हम आधुनिक मनुष्य अपने पूर्वजों का ही विस्तार हैं। वे भी अपनी विषम परिस्थितियों में अपने पूर्वजों से प्राप्त जीवन मूल्यों को झाड़ पोछकर अपने समय की आधुनिकता गढ़ रहे थे। ऐसा कार्य सतत प्रवाही रहता है।


    गतिशील समाज वर्तमान से संतुष्ट नहीं रहते। वे उसे और सुंदर बनाने के स्वप्न देखते हैं। कर्म भी करते हैं। वे राजव्यवस्था से भी संतुष्ट नहीं होते। जनतंत्री देशों में चुनाव होते हैं। राजव्यवस्था के कर्ताधर्ता एक निश्चित अवधि बाद चुनाव में जाते हैं। समाज उन्हें बदल देता है या फिर से उन्हें ही काम करने का जनादेश देता है। लेकिन समाज व्यवस्था के बदलने का कोई चुनाव नहीं होता। सामाजिक असंतोष को दूर करने का समयबद्ध उपाय नहीं है। सत्य की प्रतिष्ठा शाश्वत जीवन मूल्य है। असहमति के आदर से समाज की गतिशीलता बढ़ती है। सभी संस्कृतियों में प्राचीन के साथ संवाद की परंपरा है। लेकिन कथित प्रगतिवादी प्राचीन को कालवाह्य बताते हैं। लेकिन सारा पुराना कालवाह्य कूड़ा करकट नहीं होता। वह पूरा का पूरा बदली परिस्थितियों में उपयोगी भी नहीं होता। पुराने के गर्भ से ही नया निकलता है। नवजात में पुराने के अंश भी होते हैं। सत्य, शिव और सुंदर के लिए कर्म चला करते हैं। इन्हीं तीनों की त्रयी विवेचन का मूल आधार बनती है। आधुनिकता का आग्रह स्वाभाविक है। लेकिन स्वाभाविक आधुनिकता भी प्राचीनता के गर्भ से ही आती है। हमें जीवन मूल्यों का आयात नहीं करना चाहिए। यों आधुनिकता कोई जीवन मूल्य नहीं है और प्राचीनता भी नहीं। दोनों समय और परिस्थिति का ही बोध कराते हैं।

    विज्ञान और दर्शन के विकास ने देखने और सोचने की नई दृष्टि दी है। इससे प्राचीनता को सुंदर नूतन परिधान मिले हैं। ऋग्वेद प्राचीनतम ज्ञान कोष है। हम ऋग्वेद के समाज को प्राचीन कहते हैं। ऐसा उचित भी है। ऋग्वेद में उसके भी पहले के समाज का वर्णन है। ऋग्वेद जैसा मनोरम दर्शन और काव्य अचानक नहीं उगा। निश्चित ही उसके पहले भी दर्शन और विज्ञान के तमाम सूत्र थे। वैदिक पूर्वजों ने अपने पूर्वजों से प्राप्त परंपरा का विकास किया। ऋग्वेद की कविता वैदिक काल की आधुनिकता का दर्शन-दिग्दर्शन है। यही बात उपनिषद् और महाकाव्य काल पर भी लागू होती है। महाभारत में धर्म, सत्य और लोकव्यवहार की मान्यताएं बदल गई हैं। इसीलिए उसी समय गीता दर्शन का उदय हुआ। अर्जुन ने उस समय विद्यमान तमाम प्रश्नों और चुनौतियों को मौलिक प्रश्न बनाया। श्रीकृष्ण ने उनके उत्तर दिये। महाभारत काल के लोग गीता दर्शन के उदय को आधुनिक काल कहते थे। श्रीमद् भागवत उसी समय की आधुनिकता का भाव प्रवण चित्रण हैं। इसमें प्रेमरस, भावरस और भक्ति रस का प्रीतिपूर्ण प्रवाह है। लेकिन महाभारत काल की आधुनिकता में भी वैदिक परंपरा की निरंतरता है। सांस्कृतिक निरंतरता पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। असली बात सांस्कृतिक निरंतरता है।

    वैदिक काल की निरंतरता का विकास हड़प्पा सभ्यता है। इसे स्वतंत्र सभ्यता बताने वाले गलती पर हैं। कोई भी सभ्यता या संस्कृति शून्य से नहीं उगती। हड़प्पा की सभ्यता नगरीय सभ्यता है। नगरीय जीवन खाद्यान्न सहित तमाम मूलभूत आवश्यकताओं के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर होते हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था या खेती किसानी के विकास का भी इतिहास है। कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ ईसा के लगभग 325 वर्ष पूर्व की सूचना देता है। इस अर्थशास्त्र में भी वैदिक दर्शन की परंपरा है। ‘अर्थशास्त्र’ के रचनाकाल का समाज भी अपने समय आधुनिक ही था। अब वह स्वाभाविक ही प्राचीनकाल का भाग है। आधुनिक भारत का समाज प्राचीन भारत के पूर्वजों के सचेत या अचेत परिश्रम का परिणाम है। आधुनिकता में प्राचीनता की चेतना होनी चाहिए लेकिन अंग्रेजी राज के दीर्घकाल में प्राचीनता को अंधविश्वास और पिछड़ापन बताया गया। पूर्वज आर्यों को भी विदेशी पढ़ाया गया। एक अस्वाभाविक आधुनिकता का विकास किया गया। बावजूद इसके कि अनेक यूरोपीय विद्वान भी भारतीय दर्शन और संस्कृति के पक्षधर थे, लेकिन अंग्रेजी सत्ता संस्कृतिहीन समाज बना रही थी। उन्होंने स्वयं को आधुनिक बताया और भारतीय सभ्यता को पिछड़ा।

    आधुनिकता भारतीय प्राचीनता की ही पुत्री है। प्राचीनता मां है और आधुनिकता पुत्री। माता पूज्य है और पुत्री आदरणीय। दोनो स्वतंत्र सत्ता नहीं हैं। आधुनिकता को यथासंभव मां के सद्गुणों का अवलम्बन करना चाहिए और देशकाल परिस्थिति के अनुसार स्वयं का पुनर्सृजन व विकास भी करना चाहिए। प्राचीनता पिछड़ापन नहीं है। प्राचीनता का विवेचन जरूरी है। प्राचीनता की गतिशीलता में ही हम आधुनिक होते हैं। गति के साथ अनुकूलन करना और अनुकूलन व अनुसरण में ही प्रगतिशील होते जाना काल का आह्वान है। वर्तमान समाज व्यवस्था व जीवन शैली संतोषजनक नहीं है। इसका मुख्य कारण प्राचीनता से अलगाव है। आयातित आधुनिकता ने हमारी स्वाभाविक संस्थाएं भी तोड़ी हैं। परिवार, प्रीति और आत्मीयता के बंधन टूट रहे हैं। असंतोष विषाद बन रहा है और विषाद अवसाद। इसलिए लोकमत निर्माण में लगे सभी विद्वानों, पत्रकारों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ता और मूल्यनिष्ठ राजनेताओं को ध्येयनिष्ठ, स्वाभाविक आधुनिकता के सृजन में जुटना चाहिए।

    भारतीय प्राचीनता और परंपरा से ही आधुनिकता का विस्तार होता तो हम अपने जीवन मूल्यों और संस्कृति के प्रति आग्रही भाव में आधुनिक होते लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हमारी आधुनिकता ‘वास्तविक’ नहीं है। यह उधार की है। विदेशी है। यह विदेशी सत्ता के प्रभाव में विकसित हुई है। भारत की स्वाभाविक आधुनिकता के विकास के लिए विवेकानंद, दयानंद, गांधी, डाॅ. हेडगेवार और डाॅ. आम्बेडकर, पं. दीनदयाल उपाध्याय आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तमाम प्रयास किए। लोकमत का परिष्कार और संस्कार भी हुआ। इसके तमाम सकारात्मक लाभ भी हुए। विश्व सम्पर्क से भारत की समझ भी बढ़ी। भारतीय सम्पर्क से विश्व का भी ज्ञानवर्द्धन भी हुआ लेकिन भारत में लोकमत के संस्कार का काम संतोषजनक नहीं है। हम भारत के लोग बहुधा दुनिया के अन्य देशों की जीवनशैली की प्रशंसा करते हैं। विदेशी सभ्यता को अपनी सभ्यता से श्रेष्ठ बताने वाले भी हैं यहां। संप्रति भारतीय आधुनिकता भारतीय नहीं जान पड़ती। यह प्राचीनता का स्वाभाविक विस्तार नहीं है। इस आधुनिकता में विदेशी जीवनमूल्यों का प्रवाह है। यह भारत के स्वयं को आत्महीन बना रही है। इसलिए मूल परंपरा से संवाद जरूरी है।

    (लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

    Share:

    Ind vs Sri: भारत ने पहले टी20 में श्रीलंका को 43 रन से हराया, श्रृंखला में 1-0 की बढ़त

    Sun Jul 28 , 2024
    पल्लेकल (Pallekal)। तीन मैचों की टी20 श्रृंखला (Three match T20 series) के पहले मुकाबले में भारत (India ) ने श्रीलंका (Sri Lanka) को 43 रन से हरा (beat 43 runs) दिया है। भारतीय टीम (Indian team) के लिए पहली बार कप्तानी कर रहे सूर्यकुमार यादव (Suryakumar Yadav) ने शानदार अर्धशतक बनाया। वहीं आखिर में रेयान […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    रविवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved