नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक को खोजा है, जिसके जरिये केवल एक ही नमूने से इन्फ्लूएंजा ए, बी और कोरोना वायरस संक्रामक रोगों की पुष्टि हो सकेगी। अभी तक यह तकनीक अमेरिका, चीन, जापान और रूस जैसे देशों के पास भी मौजूद नहीं है। यूरोप में एक तकनीक है, लेकिन वह एंटीजन आधारित है, जिसे इलाज के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के वैज्ञानिकों ने मल्टीप्लेक्स सिंगल ट्यूब रीयल टाइम आरटी पीसीआर तकनीक की खोज की है। इस आरटी पीसीआर तकनीक से प्राप्त रिपोर्ट को सबसे बेहतर और गुणवत्तायुक्त माना जाता है। इसकी पुष्टि के आधार पर ही चिकित्सक रोगी का इलाज तय करता है। इस तकनीक के जरिये मरीज में पुन: संक्रमण या फिर एक ही मरीज में सह संक्रमण का पता भी चल सकता है। जल्द ही इसकी किट बाजार में उपलब्ध होगी।
खोजकर्ता एनआईवी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वर्षा पोतदार ने बताया, मरीजों पर इसके परिणाम जानने के लिए कुछ क्लीनिकल ट्रायल किए, जिनमें 100 से ज्यादा रोगियों के नमूने लिए गए। इसमें पता चला कि तकनीक ने इन्फ्लूएंजा ए, बी और कोरोना वायरस पर क्रमश: 98, 99 और 100 फीसदी सही परिणाम दिए। इसकी किट को -20 डिग्री तापमान पर लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं। इसकी एक्सपायरी अवधि एक वर्ष है, जिसे बढ़ाने के लिए अलग से शोध चल रहा है।
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल के अनुसार, हाल ही में कोरोना वायरस और अलग-अलग तरह के इन्फ्लूएंजा संक्रमण ने बड़ी आबादी को अपनी चपेट में लिया। इन संक्रामक रोगों के एक जैसे लक्षणों ने डॉक्टरों को भी भ्रमित किया। यह पता करना मुश्किल था कि किसी मरीज में कौन सा संक्रमण है? इसलिए अलग-अलग जांच की सलाह दी जाती है, लेकिन अब इसकी जरूरत हमें नहीं है।
आईसीएमआर ने भारत में इस तकनीक से जांच किट को बनाने के लिए निजी कंपनियों से प्रस्ताव मांगा है। आईसीएमआर के अनुसार, जिस तरह उन्होंने कोरोना का टीका खोजने के बाद उसके उत्पादन और वितरण के लिए भारत बायोटेक कंपनी के साथ करार किया था। इसी तरह अब यह तकनीक भी हस्तांतरित की जाएगी, जिसके लिए सभी कानूनी दस्तावेज तैयार किए गए हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved