नई दिल्ली। घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए महंगाई अब भी जोखिम बना हुआ है। इसे लेकर केंद्र सरकार और आरबीआई, दोनों सतर्क हैं। इस बीच, अगले साल फिर से मंदी का खतरा मंडराने लगा है। वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को जारी अक्तूबर की आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा कि कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में हालिया नरमी और मुख्य महंगाई में लगातार गिरावट से मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने में मदद मिली है। केंद्रीय बैंक भी इस स्थिति से वाकिफ है। उसके संकेतकों के मुताबिक, उच्च कीमतों से राहत देने के लिए बहुत जरूरी होने पर ब्याज दरों में और बढ़ोतरी हो सकती है।
वैश्विक मंदी के मोर्चे पर समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि भू-राजनीतिक तनाव के बीच खाद्य और ऊर्जा की उच्च कीमतों से अनिश्चितता का जोखिम बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं के निर्यात में गिरावट से वैश्विक कारोबार पर दबाव पड़ने की आशंका है। इन तथ्यों को देखते हुए 2024 में मंदी के जोखिम की आशंका जताई जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक सुस्ती के दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। इसकी मुख्य वजह घरेलू स्तर पर मांग में मजबूती है।
अर्थशास्त्रियों का दावा है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में सालाना आधार पर 80-100 आधार अंक तक की गिरावट आ सकती है। इसकी प्रमुख वजह बाहरी मांग का कमजोर होना बताया जा रहा है। इसके अलावा, असमान बारिश, आम चुनावों के कारण सरकारी पूंजीगत खर्च की गति में संभावित मंदी और मौद्रिक सख्ती का भी जीडीपी के आंकड़ों पर असर दिखेगा।
रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का अनुमान है कि जीडीपी की वृद्धि दर दूसरी तिमाही में 7 फीसदी रह सकती है। यह आरबीआई के 6.5 फीसदी के अनुमान से अधिक होगी। बार्कलेज ने 6.8 फीसदी का अनुमान लगया है। उसने कहा, यह अनुमान उपयोगिता क्षेत्रों (खनन व बिजली उत्पादन) और विनिर्माण, निर्माण व सार्वजनिक खर्च के कारण है। सरकार दूसरी तिमाही के जीडीपी के आंकड़े 30 नवंबर को जारी कर सकती है।
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