नई दिल्ली । बढ़ती महंगाई (rising inflation) आम और खास सबके लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। आमतौर पर माना जाता है कि मांग अधिक होने और आपूर्ति कम रहने पर महंगाई में तेजी आती है, लेकिन हाल के दिनों में थोक और खुदरा (wholesale and retail) महंगाई के आंकड़ों ने विशेषज्ञों को भी हैरान कर दिया है। आपूर्ति के मुकाबले मांग कम रहने पर भी कुछ क्षेत्रों में महंगाई तेजी से बढ़ी है।
इतना ही नहीं एक तरफ थोक महंगाई से छोटे कारोबारी परेशान हैं तो दूसरी ओर खुदरा महंगाई उपभोक्ताओं के लिए चुनौती बनी हुई है। महंगाई से निटपने के लिए रिजर्व बैंक ने दरों में वृद्धि की शुरुआत भी कर दी है जिससे आर्थिक रफ्तार सुस्त पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
मांग घटने पर कैसे बढ़ रही महंगाई
आर्थिक जगत में यही माना जाता रहा है कि मांग अधिक होने और आपूर्ति घटने पर महंगाई बढ़ती है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के इस साल मार्च के आंकड़ों को देखें तो उसमें उपभोक्ता उत्पाद और उससे जुड़ी श्रेणियों में गिरावट आई है, जबकि अन्य में इजाफा हुआ है। इसका सीधा मतलब है कि उपभोक्ता खर्च घटा है। यानी मांग घटी है।
इसी तरह रिजर्व बैंक के उपभोक्ता सर्वे (सीसीएस) के आंकड़ों के मुताबिक मार्च के आंकड़ों को कीमतों में वृद्धि वर्ष 2013 के सितंबर और दिसंबर के बराबर है। जबकि उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता मौजूदा समय में ज्यादा घटी है और आय एवं रोजगार को लेकर भी संभावनाएं सबसे निचले स्तर पर हैं। अब मांग घटने पर महंगाई बढ़ने की बात विशेषज्ञों को भी हैरान करने वाली है।
आपूर्ति 13 साल के शीर्ष पर
विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का पीएमआई सूचकांक जुलाई और अगस्त 2021 से लगातार वृद्धि की राह पर है। वहीं आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक उद्योग अपनी कुल क्षमता का 72.4 फीसदी उपयोग कर रहा है जो वर्ष 2013 के बाद सबसे अधिक है। उस समय में यह 73.7 फीसदी था। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि उत्पादन क्षमता 13 साल के शीर्ष पर, मांग घटी है तो यूक्रेन-रूस संकट की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बढ़ने से भारत में लगातार महंगाई कैसे बढ़ सकती है। उनका कहना है कि इसके लिए वृहद् आंकड़ों की जरूरत होगी।
खुदरा महंगाई से उपभोक्ता और थोक से छोटे कारोबारी परेशान
अप्रैल में खुदरा महंगाई बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गई, जो मई 2014 में दर्ज 8.3 प्रतिशत के बाद से सबसे अधिक है। वहीं थोक महंगाई 15 फीसदी के पार पहुंच गई। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल के मध्य से भोजन, आवास, परिवहन और स्वास्थ्य देखभाल की लागत में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मुद्रास्फीति ने भारत के गरीबों और मध्यम वर्ग को तब प्रभावित किया जब वह अभी तक नौकरी गंवाने और महामारी के परिणामस्वरूप वेतन में कटौती से उबर नहीं पाए थे।
उच्च ईंधन की कीमतों ने अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को बढ़ा दिया है। भू-राजनीतिक तनाव के कारण वैश्विक तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गई हैं। इस बीच रिजर्व बैंक ने चार मई को रेपो दर को 40 आधार अंकों से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत कर दिया कर्ज लेने की लागत भी बढ़ गई है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में कोई भी वृद्धि लोगों को अपनी प्राथमिकताओं में कटौती करने के लिए मजबूर करेगी। विशेषज्ञों को संदेह है मौद्रिक नीति आपूर्ति-संचालित मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सक्षम होगी।
मुद्रास्फीति ने परिवारों को अपने मासिक बजट को संशोधित करने और खर्च करने की आदतों को बदलने के लिए मजबूर किया है। जब भोजन, तेल और परिवहन जैसी आवश्यकताओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो अधिकांश उपभोक्ता मनोरंजन और मनोरंजन पर विवेकाधीन खर्च को कम करने का विकल्प चुनते हैं।
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