नई दिल्ली। सरकार (government) की ओर से महंगाई (Dearness) पर अंकुश के लिए खाद्य तेलों (edible oils) पर आयात शुल्क (Import duty) घटाने, गेहूं के निर्यात (wheat export) पर रोक और जमाखोरी के खिलाफ सख्ती के अलावा रिजर्व बैंक (reserve Bank) की ओर से उठाए गए कदमों का असर दिखना शुरू हो गया है। इससे खुदरा महंगाई (Retail inflation) मार्च 2023 तक पांच फीसदी (5% by March 2023) के करीब पहुंच जाएगी। एसबीआई ईको रैप रिपोर्ट (SBI Eco Wrap Report) में यह अनुमान जताया गया है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान पिछले महीने जीएसटी दरों में बदलाव के फैसले का भी महंगाई पर असर देखा जा सकता है। हालांकि यह असर बहुत ज्यादा नहीं रहने वाला है। जीएसटी की दरों में बदलाव से महंगाई 0.15-0.20 फीसदी तक बढ़ सकती है। एसबीआई इकोरैप रिपोर्ट में 299 चीजों की महंगाई का आंकलन किया गया है, जिसमें से करीब 200 चीजों में सप्लाई की दिक्कतों की वजह से महंगाई में बढ़त देखी गई।
इस ट्रेंड को देखते हुए यह भी आनुमान जताया गया है कि रिजर्व बैंक आने वाले महीनों में ब्याज दरों में फिर इजाफा कर सकता है, जिससे बढ़ती महंगाई पर काबू पाया जा सकेगा। साथ ही जैसे ही भविष्य में सप्लाई की दिक्कतें खत्म हुईं, महंगाई में भी इसका असर देखने को मिलेगा।
मांग के मुकाबले आपूर्ति की दिक्कतों से बढ़ी महंगाई
महंगाई बढ़ने की ज्यादा बड़ी वजह आपूर्ति की दिक्कतें हैं न कि मांग बढ़ना। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई महंगाई में करीब 64 फीसदी चीजों के दाम आपूर्ति की दिक्कतों की वजह से बढ़े हैं। बाकी 36 फीसदी चीजों पर मांग का दबाव देखा जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध को देखते हुए वैश्विक सप्लाई चेन में रुकावट आई है और इसी वजह से महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है।
दुनियाभर में महंगाई से चिंता
वैश्विक स्तर पर बढ़ती महंगाई को भी चिंताजनक बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ये न सिर्फ कोरोना महामारी के बाद पैदा हुई मांग से बढ़ रही है बल्कि वैश्वि मोर्चे पर सप्लाई की दिक्कतों से भी बढ़ रही है। दुनियाभर में खाने पीने की चीजों, बर्तन, कपड़ों, गाड़ियों, मोबाईल फोन और बिजली की कीमतें बढ़ रही हैं।
भारत पर मंदी जैसे हालात नहीं
विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका में मंदी की आहट पहले से ही दिखाई दे रही है और वो चार दशकों की भयंकर महंगाई भी झेल रहा है। हालांकि, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप से पहले इन हालातों से उबर आएगा। आर्थिक मामलों के जानकार योगेंद्र कपूर के मुताबिक इन हालातों में अमेरिका की भारत पर निर्भरता बढ़ जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन अपने मौजूदा ढांचे और बचत की प्रवृत्ति के कारण मंदी की हालत तक नहीं पहुंचेंगे।
हालांकि भारत सरकार को महंगाई पर सतत निगरानी रखनी चाहिए और इसे सात 7 फीसदी के ऊपर नहीं जाने देना चाहिए। साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि निचले और मध्यम आय वर्ग के लोगों की आमदनी पर बुरा असर न पड़ने पाए। नहीं तो लोगों की बचत और उपभोग पर सीधा असर होगा और उससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
अमेरिका से ज्यादा यूरोप में मंदी की आशंका
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ प्रणब सेन के मुताबिक मंदी जैसे हालात आते हैं या नहीं यह अमेरिका और दूसरे देशों के केंद्रीय बैंकों पर निर्भर करेगा। हालांकि, अमेरिका में मंदी की आशंका बहुत कम है। इस बात की संभावना है कि बढ़ती महंगाई को काबू में करने के लिए वहां का फेडरल रिजर्व बड़े पैमाने पर ब्याज दरें बढ़ाए।
उनके मुताबिक मौजूदा परिस्थितियों में अमेरिका के मुकाबले यूरोप में मंदी की आशंका ज्यादा है। इन वैश्विक हालातों में भारत में अर्थव्यवस्था की रफ्तार में गिरावट देखने को मिल सकती है। यहां जीडीपी ग्रोथ चार से 4.5 फीसदी तक भी जा सकती है। प्रणब सेन के मुताबिक किसी भी सूरत में वैश्विक मंदी आई तो उसका असर भारत में इस साल देखने को नहीं मिलेगा। हालांकि, इस बात कि आशंका जरूर है कि ऐसे हालात में कॉरपोरेट जगत अपनी निवेश योजनाओं की रफ्तार धीमी कर दे, जिससे अगले साल इसका असर दिख सकता है।
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