इंदौर। कोरोना की तीसरी लहर (third wave of corona) का जो डर भारत सहित पूरी दुनिया में बना हुआ था, उससे अब लोग बाहर आ गए हैं। तीसरी लहर ने संक्रमितों के आंकड़े तो सर्वोच्च स्तर पर पहुंचाए, लेकिन पिछली दो लहरों की तरह तबाही (Destruction) नहीं मचाई। हालत यह है कि इस बार कोरोना की चपेट में आने वाले लोग चार दिनों में ही ठीक हो रहे हैं और पांचवें दिन ही उनकी रिपोर्ट निगेटिव (report negative) आ रही है, वहीं 100 रुपए से भी कम की दवाई खाकर लोग घर में ही ठीक हो रहे हैं।
संक्रमितों के इतनी जल्दी वायरस से मुक्त होकर स्वस्थ होने की पुष्टि शहर के प्रमुख लैब कर रहे हैं। शहर में कोरोना की जांच करने के साथ ही एयरपोर्ट (Airport) पर दुबई जाने वाले यात्रियों की भी तुरंत जांच कर रिपोर्ट देने वाले इंस्टा लैब के डायरेक्टर ने बताया कि इस बार वायरस बहुत ही माइल्ड है। इसके फैलने की गति बहुत तेज है, लेकिन यह शरीर को पहले की तरह नुकसान नहीं पहुंचा रहा है। उन्होंने बताया कि कोरोना के लक्षण वाले मरीज लगातार उनके लैब पर आते हैं।
जांच करवाने पर कई पॉजिटिव पाए जाते हैं। ऐसे मरीजों ज्यादातर मरीज चार से पांच दिन बाद दोबारा जांच करवा रहे हैं और पांचवे दिन ज्यादातर निगेटिव (mostly negative) भी आ रहे हैं। कई लोगों के साथ मुसीबत यह है कि उनके एक दिन पहले टेस्ट जहां निगेटिव आते हैं, वहीं दूसरे दिन पाजिटिव आ जाते हैं। ऐसे मरीजों में कोरोना के कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं। इसलिए वे अपने आप को संक्रमित महसूस नहीं करते हैं। इन लोगों की तादाद काफी ज्यादा नजर आ रही है। इसलिए विदेश (Foreign) जाने की तैयारी करने वाले लोग बेफिक्र होकर एयरपोर्ट जाते हैं, लेकिन कई बार पाजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें लौटना पड़ता है।
19 रुपए की दवा में हो गए ठीक
कटारिया ने बताया कि उनके एक मित्र को हल्की सर्दी-खांसी थी। जांच में कोरोना की पुष्टि हुई। डॉक्टर को दिखाने पर डॉक्टर ने उन्हें एक एजिथ्रोमाइसिन और एक डोलो दवा दी। चार दिन की दवा महज 19 रुपए की आई। वे चार दिन दवा लेने पर बिल्कुल ठीक हो गए। पांचवे दिन उनकी दोबारा जांच करवाई गई तो रिपोर्ट भी निगेटिव आई।
वैक्सीनेशन से मिली मदद
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पंकज तिवारी (Senior Doctor Dr. Pankaj Tiwari) ने बताया कि वायरस का असर कम होने का सबसे बड़ा कारण वैक्सीनेशन रहा। इंदौर सहित देश में ज्यादातर लोगों को वैक्सीन लग चुका है। तीसरा डोज भी कई लोग ले चुके हैं। ऐसी स्थिति में वायरस से संक्रमित होने के बाद भी शरीर में एंटीबॉडी होने के कारण वायरस के दुष्प्रभाव नहीं हो रहे हैं। इसके कारण अस्पतालों में भी मरीजों की संख्या ना के बराबर है।
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